विषकन्या वे कन्याएं होती थी जिन्हे मौर्य शासन काल((321–185 B.C.E.)) में अभेद्य सुरक्षा से घिरे दुश्मन राजा अथवा महत्वपूर्ण पदों पर आसन्न शासन प्रबंधकों की हत्या के लिए चुना जाता था ....सुना है मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के प्रमुख सलाहकार और प्रधानमंत्री चाणक्य ने कोटिल्य के अ
र्थशास्त्र में इन विष कन्याओं के प्रयोग के बारे में जानकारी दी है(प्रमाणिक नहीं है ) ...कहा जाता है नन्द ने चन्द्रगुप्त की हत्या के लिए विषकन्या भे
जी थी जिसे उसके चौकस प्रधानमंत्री चाणक्य ने पहचान लिया और उसका उपयोग शत्रु प्रवर्तक की हत्या के लिए किया था ....
हिन्दू पौराणिक गाथा कल्कि पुराण में एक विष कन्या सुलोचना (गन्धर्व चित्रग्रीव की पत्नी )का जिक्र किया गया है जिसके सिर्फ देखने भर से दुश्मन मृत्यु को प्राप्त हो जाता था...
विषकन्या बनाने के लिए बहुत छोटी उम्र से ही कन्याओं को बहुत सूक्ष्म मा
त्र में विष दिया जाना शुरू किया जाता था , जिसमे कई बार उनकी मृत्यु भी हो जाती थी .... जिस कन्या का शरीर विष को जज्ब कर लेता था वह आगे चलकर विषकन्या में तब्दील कर दी जाती थी और उनका उपयोग दुश्म
नों को रास्ते से हटाने के लिए किया जाता था ...
सभ्यता के विकास के साथ एक ओर जहाँ परिवारों में कन्याओं के प्रति खान पान,शिक्षा और मौलिक अधिकारों में
जागृति आयी है वही दूसरी ओर लिंग परिक्षण कर कन्या भ्रूण हत्या कर उन्हें जन्म लेने के अधिकार से ही वंचित किया जा रहा है ... समाज में व्याप्त लिंग भेद से उपजी असमानता , अपमान ,उत्पीडन और उपेक्षा के कारण बालिकाओं में असुरक्षा और विद्वेष का भाव उपजता रहा है ...बहुत छोटी अवस्था से ही लगातार अवमा
नना इन कन्यायों को बिना विष के ही विषकन्या में तब्दील करता जा रहा है ...जो इस पूरी सभ्यता और नस्ल के लिए बहुत घातक है ...
अच्छा होगा कि समय रहते चेत कर भारतीय
संस्कृति के गुरु मंत्र
" यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता " को पुनः प्रतिष्ठापित करते
हुए कन्याओं को उचित मान सम्मान का अधिकारी बनाया जाए ... वर्ना लगातार विष कन्या में तब्दील होती नारियों की यह खेप इस पूरे सभ्यता के लिए घातक साबित होगी ...
विषकन्या

कन्यायेंयूं ही नहींरातो रात चुप चापतब्दील हो जाती हैविषकन्याओं में...बहुत छोटी उम्र से
पीती हैं विष के छोटे छोटे घूंटइस तरह भरा जाता हैउनकी रगों मेंकि कोई साक्ष्य ना रहे
कभी उनके पालितों द्वारा ही
कभी उनके रक्षकों द्वारा ही
पहला घूंट विष कामर्मान्तक पीड़ा देता है
भय से दर्द सेरोम रोम कंपा देता हैदम तोड़ देती है कई बार
इस पहले घूँट से ही
मगर जो बच जाती हैं
और सीख जाती है
आंसू पीकर मुस्कुरानाउपेक्षा सहकर खिलखिलानादर्द सह कर गुनगुनानाप्यार के बिना जीना
अंततः वे ही बदलती हैविषकन्याओं में .....ये बदलती हैउन आसुओं का अंश लेकर
कोख में ही दफ़न कर दी गयीआहों का असर लेकर ...और अंततः होती हैं अभिशापित
पायें जिसे चाहे नहीं ....
चाहे जिसे पाए नहीं ....
आक्रान्ताओं ...
इन पर हंसो मत
इनसे लड़ो मत
इनसे डरो .....
ये करने वाली है
तुम्हारे नपुंसक दंभ को खंडिततुम्हारी सभ्यता को लज्जितइसलिए
इन्हें प्यार दोइन्हें सम्मान दो
ये चाहे तो भीना चाहे तो भीमांगे तो भी
ना मांगे तो भी ............
बचा सकते हो तो बचा लोइस धरा पर अपने होने का प्रमाण
वर्ना नहीं दूर है
अब एक पूरी सभ्यता का अवसान ..........**********************************************************************************
चित्र अदाजी के सहयोग से ...