कई बार कोई नयी कविता लिखने पर साथी ब्लॉगर में से किसी का सवाल आता है .. ये कैसे लिखी!!
कभी कभी तो कोई चुटकी लेते हुए यह भी कह देता है कि क्या बात है!, बड़ी गहरी कवितायेँ लिखी जा रही हैं .....
सच कहूँ तो मैं आज तक समझ नहीं पायी कि मैं कविता कैसे लिखती हूँ .... कैसे शब्द जुड़ते हैं , कैसे विचार आते हैं ...कई बार हैरान हुई हूँ मैं कि मैंने ये लिखा कैसे ...जो मैं लिखती हूँ वह साहित्यिक दृष्टि से कविता है भी या नहीं... ये भी पता नहीं ...बस मैं इतना ही जानती हूँ कि जो विचार दिमाग में इकट्ठा होते हैं , बिना लाग लपेट उन्हें शब्दों में ढालने की कोशिश करती हूँ ,
कई बार दिमाग में चल रहे सवाल , जाने कहाँ कब सा अटका हुआ कोई शब्द , कही पढ़ी हुई कोई तहरीर , कोई वाकया या कोई काल्पनिक परिस्थिति में कोई पात्र कैसा महसूस करता होगा ...यही सब कुछ तो लिख जाता है ...उतर आते हैं शब्दों में और एक कविता बन जाती है ...ये अनायास लिखी जाने वाली कविताओं का आकलन है ...जो सायास लिखा जाता है वहां हर शब्द तौल कर , सोच कर लिखा जाता है ...और सोचने , समझने से तो अपना छत्तीस का आंकड़ा है ...
मन किया कि जरा कवियों की नजर से ही जान लिया जाए कि आखिर कविता क्या है ...कैसे लिखी जाती है ...मेरे साथ आप लोंग भी पढ़ लीजिये ....
कविवर पन्त के शब्दों में ...
"वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान, उमड़ कर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान.."
कहा जाता है कि कवि समाज में खुद को स्थापित करने के लिए तुष्टिकरण के संवेग में कविता लिखता है ..समाज की भाषा में खुद को स्थापित करने की कोशिश करता है..और निरंतर करता रहता है . ...
प्रभाकर माचवे जी ने कहा है कविता के बारे में ...
कविता क्या है? कहते हैं जीवन का दर्शन है - आलोचन,
(वह कूड़ा जो ढँक देता है बचे-खुचे पत्रों में के स्थल)।
कविता क्या है ? स्वप्न श्वास है उन्गन कोमल,
(जो न समझ में आता कवि के भी ऐसा है वह मूरखपन)
कविता क्या है ? आदिम-कवि की दृग-झारी से बरसा वारी-
(वे पंक्तियाँ जो कि गद्य हैं कहला सकती नहीं बिचारी) !
हेमन्ती सन्ध्या है, सूरज जल्दी ही डूबा जाता है-
मन भी आज अकारज चिर-प्रवास से क्यों ऊबा जाता है ?
फ़सल कट गयी, कहीं गडरिया बचे-खुचे पशु हाँक रहा है,
सान्ध्य-क्षितिज पर कोई अंजन, म्लान-गूढ़ छवि आँक रहा है ।
बचे-खुचे पंछी भी लौटे, घर का मोह अजब बलमय है,
मानव से प्रकृति की छलना, प्रकृति से मानव छलमय है !
फुरसतिया जी ने कहा है कविता के लिए देखिये यहाँ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने बहुत विस्तार से लिखा है ...." कविता मनुष्य के हृदय को उन्नत करती है और ऐसे ऐसे उत्कृष्ट और अलौकिक पदार्थों का परिचय कराती है जिनके द्वारा यह लोक देवलोक और मनुष्य देवता हो सकताहै।"
कुमार अम्बुज कहते हैं ..." केवल भाषा से, शब्दों भर से कविता संभव नहीं होगी। वह कुछ और चमत्कृत कर सकनेवाली चीज हो तो सकती है मगर कविता नहीं। जहाँ तक कविता में लोकशब्दों की आवाजाही का प्रश्न है तो यह शब्द-प्रवेश अपनी परंपरा, बोध और सहज आकस्मिकता की वजह से होगा ही। "कवि की अपनी पृष्ठभूमि और उसके जनपदीय सांस्कृतिक जुड़ाव से शब्द-संपदा स्वयमेव तय होती है। ठूँसे हुए शब्द अलग से दिखते हैं, चाहे फिर वे अंग्रेजी के हों, महानगरीय आधुनिकता में पगे हों या फिर लोक से आते दिखते हों। इसलिए महत्वपूर्ण यही है कि कविता में वे किस तरह उपस्थित हैं।...
सुदामा पाण्डेय धूमिल जी कह गए अपनी आखिरी कविता में ...
शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है या
मिट्टी में गिरे हुए ख़ून
का रंग।
लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।
ब्लॉग अड्डा पर पल्लवी त्रिवेदी जी दिल्लगी कर रही हैं ....कवि कैसे बना जाता है
यहाँ विश्वानन्द जी बता रहे हैं कविता के बारे में ....कविता क्या है
जैसा कि राजभाषा -हिंदी पर मनोज जी ने बताया .... कविता
कविता सिर्फ वही नहीं होती, जो कवि लिख देते हैं। कविता आत्मा की फुसफुसाहटों से बनी वह महानदी भी है, जो मनुष्यता के भीतर बहती है। कवि सिर्फ इसके भूमिगत जल को क्षणभर के लिए धरातल पर ले आता है, अपनी खास शैली में, अर्थों और ध्वनियों के प्रपात में झराता हुआ। "
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कभी कभी तो कोई चुटकी लेते हुए यह भी कह देता है कि क्या बात है!, बड़ी गहरी कवितायेँ लिखी जा रही हैं .....
सच कहूँ तो मैं आज तक समझ नहीं पायी कि मैं कविता कैसे लिखती हूँ .... कैसे शब्द जुड़ते हैं , कैसे विचार आते हैं ...कई बार हैरान हुई हूँ मैं कि मैंने ये लिखा कैसे ...जो मैं लिखती हूँ वह साहित्यिक दृष्टि से कविता है भी या नहीं... ये भी पता नहीं ...बस मैं इतना ही जानती हूँ कि जो विचार दिमाग में इकट्ठा होते हैं , बिना लाग लपेट उन्हें शब्दों में ढालने की कोशिश करती हूँ ,
कई बार दिमाग में चल रहे सवाल , जाने कहाँ कब सा अटका हुआ कोई शब्द , कही पढ़ी हुई कोई तहरीर , कोई वाकया या कोई काल्पनिक परिस्थिति में कोई पात्र कैसा महसूस करता होगा ...यही सब कुछ तो लिख जाता है ...उतर आते हैं शब्दों में और एक कविता बन जाती है ...ये अनायास लिखी जाने वाली कविताओं का आकलन है ...जो सायास लिखा जाता है वहां हर शब्द तौल कर , सोच कर लिखा जाता है ...और सोचने , समझने से तो अपना छत्तीस का आंकड़ा है ...
मन किया कि जरा कवियों की नजर से ही जान लिया जाए कि आखिर कविता क्या है ...कैसे लिखी जाती है ...मेरे साथ आप लोंग भी पढ़ लीजिये ....
कविवर पन्त के शब्दों में ...
"वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान, उमड़ कर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान.."
कहा जाता है कि कवि समाज में खुद को स्थापित करने के लिए तुष्टिकरण के संवेग में कविता लिखता है ..समाज की भाषा में खुद को स्थापित करने की कोशिश करता है..और निरंतर करता रहता है . ...
प्रभाकर माचवे जी ने कहा है कविता के बारे में ...
कविता क्या है? कहते हैं जीवन का दर्शन है - आलोचन,
(वह कूड़ा जो ढँक देता है बचे-खुचे पत्रों में के स्थल)।
कविता क्या है ? स्वप्न श्वास है उन्गन कोमल,
(जो न समझ में आता कवि के भी ऐसा है वह मूरखपन)
कविता क्या है ? आदिम-कवि की दृग-झारी से बरसा वारी-
(वे पंक्तियाँ जो कि गद्य हैं कहला सकती नहीं बिचारी) !
हेमन्ती सन्ध्या है, सूरज जल्दी ही डूबा जाता है-
मन भी आज अकारज चिर-प्रवास से क्यों ऊबा जाता है ?
फ़सल कट गयी, कहीं गडरिया बचे-खुचे पशु हाँक रहा है,
सान्ध्य-क्षितिज पर कोई अंजन, म्लान-गूढ़ छवि आँक रहा है ।
बचे-खुचे पंछी भी लौटे, घर का मोह अजब बलमय है,
मानव से प्रकृति की छलना, प्रकृति से मानव छलमय है !
फुरसतिया जी ने कहा है कविता के लिए देखिये यहाँ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने बहुत विस्तार से लिखा है ...." कविता मनुष्य के हृदय को उन्नत करती है और ऐसे ऐसे उत्कृष्ट और अलौकिक पदार्थों का परिचय कराती है जिनके द्वारा यह लोक देवलोक और मनुष्य देवता हो सकताहै।"
कुमार अम्बुज कहते हैं ..." केवल भाषा से, शब्दों भर से कविता संभव नहीं होगी। वह कुछ और चमत्कृत कर सकनेवाली चीज हो तो सकती है मगर कविता नहीं। जहाँ तक कविता में लोकशब्दों की आवाजाही का प्रश्न है तो यह शब्द-प्रवेश अपनी परंपरा, बोध और सहज आकस्मिकता की वजह से होगा ही। "कवि की अपनी पृष्ठभूमि और उसके जनपदीय सांस्कृतिक जुड़ाव से शब्द-संपदा स्वयमेव तय होती है। ठूँसे हुए शब्द अलग से दिखते हैं, चाहे फिर वे अंग्रेजी के हों, महानगरीय आधुनिकता में पगे हों या फिर लोक से आते दिखते हों। इसलिए महत्वपूर्ण यही है कि कविता में वे किस तरह उपस्थित हैं।...
सुदामा पाण्डेय धूमिल जी कह गए अपनी आखिरी कविता में ...
शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है या
मिट्टी में गिरे हुए ख़ून
का रंग।
लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।
ब्लॉग अड्डा पर पल्लवी त्रिवेदी जी दिल्लगी कर रही हैं ....कवि कैसे बना जाता है
यहाँ विश्वानन्द जी बता रहे हैं कविता के बारे में ....कविता क्या है
जैसा कि राजभाषा -हिंदी पर मनोज जी ने बताया .... कविता
कविता सिर्फ वही नहीं होती, जो कवि लिख देते हैं। कविता आत्मा की फुसफुसाहटों से बनी वह महानदी भी है, जो मनुष्यता के भीतर बहती है। कवि सिर्फ इसके भूमिगत जल को क्षणभर के लिए धरातल पर ले आता है, अपनी खास शैली में, अर्थों और ध्वनियों के प्रपात में झराता हुआ। "
---बेन ओकरी (बुकर पुरस्कार से सम्मानित नाइजीरियन कवि एवं उपन्यासकार)
अनुवाद : गीत चतुर्वेदी
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कविता या काव्य क्या है इस विषय में भारतीय साहित्य में आलोचकों की बड़ी समृद्ध परंपरा है—
जवाब देंहटाएंसाहित्य दर्पण में आचार्य विश्वनाथ का कहना है, 'वाक्यम् रसात्मकं काव्यम्' यानि रस की अनुभूति करा देने वाली वाणी काव्य है।
पंडितराज जगन्नाथ कहते हैं, 'रमणीयार्थ-प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' यानि सुंदर अर्थ को प्रकट करने वाली रचना ही काव्य है।
पंडित अंबिकादत्त व्यास का मत है, 'लोकोत्तरानन्ददाता प्रबंधः काव्यानाम् यातु' यानि लोकोत्तर आनंद देने वाली रचना ही काव्य है।
आचार्य श्रीपति के शब्दों में कहा जा सकता है कि -
शब्द अर्थ बिन दोष गुण, अंहकार रसवान
ताको काव्य बखानिए श्रीपति परम सुजान
संस्कृत के विद्वान आचार्य भामह के अनुसार "कविता शब्द और अर्थ का उचित मेल" है। "शब्दार्थो सहितों काव्यम्"
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने "कविता क्या है" शीर्षक निबंध में कविता को "जीवन की अनुभूति" कहा है।
जयशंकर प्रसाद ने सत्य की अनुभूति को ही कविता माना है। संसार के सुख-दुख से परे कविता का मधुर और अनूठा संसार मनुष्य को सुख सन्तोष प्रदान करता हैं वे इसी काव्य जगत में डूबे रहने की कामना करते हुए कहते हैं -
ले चल मुझे भुलावा दे कर मेरे नाविक धीरे-धीरे
जिस निर्जन में सागर लहरी, अम्बर के कानों में गहरी
निश्चल प्रेम कथा कहती हो तज कोलाहल की अवनि रे
महादेवी वर्मा ने कविता का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा कि - "कविता कवि विशेष की भावनाओं का चित्रण है।"
प्रसाद ने कामायनी में जिस महाप्रलय का चित्रण किया है वह काल्पनिक होकर भी वास्तविक रूप धारण कर लेता है। वास्तव में कवि की प्रतिभा यत्र-तत्र बिखरे सौन्दर्यको संकलित करके एक नई आनन्दमयी सृष्टि की रचना करती है। हर युग में कवि अपनी कविता के माध्यम से युग सत्य के ही दर्शन कराता है। कविता में सत्य, शिव और सौन्दय्र की ऐसी अलौकिक रस धार प्रवाहित होती है, जो सबको एक समान आनन्दित करती चलती है। कविता समाज को नई चेतना प्रदान करती है, आनन्द का सही मार्ग दिखाती है और मानवीय गुणों की प्रतिष्ठा करती है। तुलसीदास, सूरदास, प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त जैसे महान कवियों की रचनाऍं इस कथन की सत्यता प्रमाणित करती है।
कविता की परिभाषा यहाँ से ली गयी है..
http://wapedia.mobi/hi/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट। जीवन की जटिलता को अनुभूति की आंच में सहजता से पकाकर पाठक को परोस देना भी कविता कहा जा सकता है।
जवाब देंहटाएंहमारे राजभाषा हिंदी ब्लॉग को भी इस चर्चा में शामिल करने के लिए आभार।
अच्छा विश्लेषण किया है..सब की अलग अलग सोच...
जवाब देंहटाएंमहादेवी वर्मा ने कविता का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा कि - "कविता कवि विशेष की भावनाओं का चित्रण है।
जवाब देंहटाएंइस मामले में अनपढ हूँ... जो दिल ने महसूस किया शिद्दत से, जो हाथों ने लिख डाला बस वही कविता बन गई... इन मनीषियों के विचार, परिभाषाएँ सुनकर, पढकर अच्छा लगा. यदि ज्ञान सामर्थ्य होता तो इसपर कुछ कहता, बस गुन रहा हूँ. इतनी कविताएँ आए दिन लिखी जा रही हैं यहाँ भी, इसपर आपने कविता कहते किसे हैं को रेखांकित करके बड़ा अकअच्छा काम किया है. धन्यवाद आपका!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी। मुझे लगता है कि पूर्व में कविता प्रेम का साधन थी लेकिन आज इसकी परिभाषा बदल गयी है। समाज के शोषण को दिखाने वाला वृत्त चित्र हो गयी है कविता। इसलिए जहाँ कविता से पूर्व में प्रेम की उत्पत्ति होती थी अब दुख की उत्पत्ति होती है। हृदय में आनन्द के स्थान पर विक्षोभ उत्पन्न हो रहा है। लेकिन सभी की अपनी मान्यताएं हैं और अपनी परिभाषाएं हैं।
जवाब देंहटाएंइस विषय पर मेरे लिये भी कुछ कहना सम्भव नही। मेरे हिसाब से तो जो आदमी भोगता है या समाज मे देखता सुनता है उन से मन मे कुछ अनुभूतियां उपजती हैं जो कविता बन जाती हैं। ये जरूरी नही हर कविता की हर स्थिती कवि ने खुद ही भोगी हो। कविता संवेदनाओं का अथाह सागर है जो उसमे तैरना जानता है वही उसमे से खुछ मोती, कुछ कंकर शब्दों के् रूप मे समाज के सामने रख देता है। धन्यवाद। गहरे भाव का अर्थ है कि जो बिम्ब या साक्षात लिखा है उसमे बहुत गहरे भाव, कोई उस कविता के माध्यम से सन्देश भी हो सकते हैं। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंइस प्रश्न का उत्तर उतना ही कठिन है जितना कविता लिख द्ना सरल।
जवाब देंहटाएंजैसे आपने और बहुत से मित्रों ने विभिन्न कवि-आलोचकों के हवाले से बताया है, मेरा मानना है कि हर रचनाकार के लिए कविता की परिभाषा अलग होती है। जैसे मेरे प्रिय कवि ऋतुराज कहते हैं कि प्रेम करने की चीज है कविता में लिखने की नहीं और लगभग यही बात महाकवि रिल्के ने कही थी। हमारे प्रियतम कवि कृष्ण कल्पित ने अपने प्रसिद्ध गीत 'लेखक जी तुम क्या लिखते हो' में एक बंद में कविता या किसी भी रचना को इस प्रकार बताया है-
जवाब देंहटाएंकागज के सादे लिबास पर
स्याही की बूंदों का उत्सव
ठहर गया लोहू में जैसे
कोई क्षारा-खारा अनुभव
फूलों पर खुश्बू के लेखे
बंदूकों में डर लिखते हैं
सिंहासन की दीवारों पर
हम बागी अक्षर लिखते हैं
हम मिट्टी के घर लिखते हैं।
कविता को कवियों के अलावा इतर लोगों ने भी परिभाषित किया है । केदारनाथ सिंह की भी एक कविता है .." कविता क्या है हाथ की तरफ बढ़ा हुआ हाथ.. \" युवा कवि अरुण देव की भी एक रचना है , जाने कितने लोग कितनी परिभाषायें ।
जवाब देंहटाएंयहाँ कुछ परिभाषायें देख कर अच्छा लगा । अदा जी ने भी बहुत मेहनत करके कुछ वरिष्ठ कवियों की कविता विषयक परिभाषायें यहाँ प्रस्तुत की हैं । मैं जब भी कविता के बरे में सोचता हूँ , मुझे लगता है कविता से हटकर ज़िन्दगी हो ऐसा हो ही नही सकता । एक कविता मैने भी लिखी थी , कभी प्रस्तुत करूंगा ।
फिलहाल इस बात के लिए आपको धन्यवाद कि ऐसे कविताविहीन समय में आपने कविता पर बात तो की । इस संवाद को जारी रखें ।
बहुत ही अच्छा प्रयास किया है आपने इतने अच्छे विश्लेषण ने इस पोस्ट को बहुत नायाब बना दिया है .....कविता क्या है ? सवाल बड़ा कठीन है इतना ठोस विश्लेषण भी कर पाना मेरे लिए कठीन होगा ...मेरे लिए तो ये आत्मा से निकले वो भाव है जो ह्रदय से प्रवाहित होते हुए शब्दों और वाक्यों में सध जाते जिसे पढ़ कर पाठक भी सहज ही इन भावों में बहने लगा ....तो मैंने समझा ये कविता ही तो थी .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और सटीक विश्लेषण...... जानकारी परक भी है आपकी यह पोस्ट.....
जवाब देंहटाएंबहुत विश्लेष्णात्मक पोस्ट ....अप इतने बड़े बड़े लोगों की बातों से सहमत तो होना ही है ...सबने अपने अनुभवों से लिखा है ..
जवाब देंहटाएंमैं क्या लिखती हूँ और क्यों ?मैं स्वयं नहीं जानती ...
बस .......
चिंतन हो जब
किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में तिरोहित
कर जाऊं ।
सोच - विचारों की
शक्ति जब
कुछ उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं
कविता क्या ? इस विषय पर प्रभावशाली विश्लेषण!
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं...
आपके अपने विचार जो है कविता के बारे मे .....वो मुझे अपने विचारो से लगे........
जवाब देंहटाएंwaah bahut sahi likha hai ..meri taraf se yah ..
जवाब देंहटाएंज़िंदगी कविता ....
या
कविता ज़िंदगी...
यह सोचते सोचते
कई पन्ने रंग दिए
कई लम्हे गुज़ार दिए ...
ये तो बेहद वृहद विषय है और इस पर मनोज जी ने एक श्रृंखला भी लगाई थी ……………बस इतना ही कह सकती हूँ मन के मनोभावों को शब्दो मे व्यक्त करना ही कविता है ……………हर बंदिश से जो आज़ाद है वो है कविता………जैसे विचार आपको आते हैं सभी के साथ ऐसा होता है ना जाने कौन हाथ पकड कर लिखवा देता है और लगता ही नही कि ये हमने लिखा है बस वो ही भाव जो ऐसा करने पर विवश कर दे वो ही कविता है…………अभी इसी से मिलते विषय पर मैने भी लिखा था कि "शब्द" और "काव्य्"……………क्या है……………आपने हम सभी के भावो को एक जगह इकट्ठा कर दिया……ऽअभार्।
जवाब देंहटाएंबहुत विश्लेषणात्मक पोस्ट.वाकई कविता क्या है समझना बहुत मुश्किल है.मेरे ख़याल से जिस भावपूर्ण अभिव्यक्ति को पढ़ने सुनने में अच्छा लगे वो कविता है .
जवाब देंहटाएंकविता कहें या भावनाओं के गुबार .... जब आग लगती है तो धुंआ कैसे उठता है , इसे देखा जा सकता है, उसमें घिरा जा सकता है, पानी भी डालो तो कुछ देर टक यह उठता है ...
जवाब देंहटाएंकुहासों, अंधेरों , प्रकाश से गुजरता मन , रिश्तों से जुड़ता टूटता मन , बचपन को सोचता मन अनकहे शब्दों की माला पिरोता है... कविता कहो या गुबार पर कहनेवाले के दिल का सुकून है
रविन्द्र प्रभात जी ने कहा .....
जवाब देंहटाएंजब कोई कवि वस्तु जगत में स्थित किसी भाव, घटना या तत्त्व से संवेदित होता है तो वह उसे अपनी समर्थ काव्य भाषा द्वारा सहृदय तक संप्रेषित करने का उपक्रम करता है । वह आपने अभिप्रेत भाव को तद्भव रूप में संप्रेषित करने के लिए अपने सृजन क्षण में, शब्दों की सामर्थ्य एवं सीमा का शूक्ष्म संधान कर उसे प्रयुक्त करता है । काव्य रचना अपने आरंभिक क्षण से ही एक सायास क्रिया के रूप में आरंभ हो जाती है, क्योंकि कवि के मानस कल्प में शब्दों की होड़ सी लग जाती है । यही शब्द श्रृंखलाबद्ध होकर कविता का रूप ले लेता है । जिस काव्य में हमारे समय के महत्वपूर्ण सरोकारों, सवालों से टकराती एक विशेष रूप और गुणधर्म वाली बात परिलक्षित हो वही सही मायनों में कविता है, ऐसा मेरा मानना है !
हमारे प्राचीन ग्रन्थ में भी कविता की परिभाषा यह कहकर दी गयी है कि- " वाक्यं रसात्मकं काव्यं " अर्थात रसों से सरावोर वाक्य हीं काव्य है !
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कवि के मानस-जगत में उत्थित भाव और विचारों की इन्द्रियानुभूति विंबों में सफल अभिव्यक्ति ही कविता है । कवि को समकालीन बने रहने के लिए अपने सूक्ष्म भाव को व्यक्त करने हेतु इन्द्रिय ग्राह्य शब्दों का बड़ा ही सटीक प्रयोग करना होता है, क्योंकि उसके एक-एक शब्द पूरे प्रकरण में इस प्रकार फिट रहते हैं कि उनके संधान पर कोई अन्य पर्यायवाची शब्द रखने से पूरी की पूरी भाव श्रृंखला भरभरा जाती है ।
निष्कर्ष में यही कहा जा सकता है कि टूटते हुए मिथक और चटकती हुई आस्थाओं के बीच कविता कथ्य-शिल्प और भाव तीनों ही दृष्टिकोण से श्रेष्ठता कि परिधि में आ जाए तभी काव्य की सार्थकता है, अन्यथा नहीं । शब्दों की उपयुक्तता को ही ध्यान में रखकर पाश्चात्य विचारक कालरिज ने कविता को "श्रेष्ठतम शब्दों का श्रेष्ठतम क्रम" कहा है ।
() रवीन्द्र प्रभात
http://www.parikalpnaa.com/
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकविता को बहुत सुंदर ढंग से परिभाषित किया है।
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण किया है !
जवाब देंहटाएंजो खुद को लिखा ले ,महज लिखी न जाय कविता है .कवितायें ,अगर वे सचमुच कवितायें हैं तो लिखी नहीं जाती बल्कि खुद अपने को लिखा लेती हैं ,श्रेय सरस्वती के कृपा पात्र कवि को मिल जाता है ...
जवाब देंहटाएंफुरसतिया ,ये कौन कवि हैं जिन्हें आपने अच्छी खासी श्रेणी प्रदान कर डाली है !
कविता शब्दों की अक्षमता के सहारे भावों की सक्षम अभिव्यक्ति है.
जवाब देंहटाएंनेति नेति
बहुत ही जानकारी भरी पोस्ट...टिप्पणियों में भी नई व्याख्याएं मिलीं...
जवाब देंहटाएंमेरे हिसाब से ,हर कवि की अपनी व्याख्या है...
अंतस में आलोड़ित होता भावनाओं का ज्वार... जब निर्झर बन फूट निकले...बस वही कविता है...
पहले रस, छंद ओर अलंकार युक्त रचना को ही काव्य कहा जाता था। प्रयोगवादी कवियों ने भाव और बिम्ब विधान के सहारे नई कविता को जन्म दिया, जिसमें रस, छंद और अलंकार की कोई गुंजाइश नहीं। आज जो कविता लिखी जा रही है उसके संदर्भ में कहा जा सकता है कि कविता भाव, शब्द और शिल्प का समुच्चय है।
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण किया है..
जवाब देंहटाएंकविता पर और कविता के लिए बहुत सुन्दर विश्लेष्ण |
जवाब देंहटाएंटिप्पणियों के माध्यम से और अधिक ज्ञानवर्धन |
बहुत गहरी बाते है कविता के लिए
कुछ हलकी फुलकी सुनती हूँ ..
वार्तालाप ....
आग लगने पर हाय करने से आग बुझती नहीं
गम में आह भरने से पीर मिटती नहीं
कुढ़ते हुए मन ने अलसाये तन से कहा -
की हाथ पर हाथ धरने से
बात बनती नहीं
और अलसाये तन ने उत्तर दिया -
की खूबसूरत शब्दों के जल में
हमे न उलझाइये..
हमें है ये खबर की
कविता रच देने से भूख मिटती नहीं .......
आपनें बहुत मेहनत की है इस पोस्ट में , फिर अदा जी नें भी टिपियाने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर भाई शरद कोकास वर्तमान को कविताहीन समय क्यों कह गये ?
जवाब देंहटाएंमुझे कविता की समझ नहीं है और आपनें जिन विद्वानों के अभिमत दर्ज किये हैं वे इसके श्रेष्ठिजन हैं तो कुछ कहते हुए संकोच ही हो रहा है ! यहां कविता को दुःख / आह से उपजा गान ! भावनाओं का ज्वार /निर्झर / सुख का आलोडन /सत्य की अभिव्यक्ति /रस की अनुभूति वगैरह वगैरह कहा गया है और ये भी कि इसे रचा नहीं जाता यह स्वयमेव हो जाती हैं !
पर ना जानें क्यों मुझे ऐसा लगता है कि अभिव्यक्ति का जो भी फार्मेट कविता कहा जा सकता हो उसे स्वयमेव हो जाने तक सीमित कहना उचित नहीं है ! कविता एक सायास अभिव्यक्ति भी हो सकती है ,सौम्य भी , निष्ठुर भी ,दुःख, सुख, आक्रोश भी ,प्रेम का प्रतीक भी और क्रांति का हथियार भी !
मेरे ख्याल से उसे केवल मनुष्य जैसा होना है और इसके सिवा कैसा भी नहीं !
[ देर से आया पर गिरिजेश जी की टिप्पणी नें निराश किया संभव है मेरी टिप्पणी इस अवसाद से बच ना पाई हो अतः खेद सहित ]
रघुवीर सहाय के काव्य संकलन सीढि़यों पर धूप में की भूमिका में अज्ञेय ने कहा है - “काव्य सबसे पहले शब्द है। और सबसे अंत में भी यही बात बच जाती है कि काव्य शब्द है।"
जवाब देंहटाएंयह एक महत्वूपर्ण परिभाषा है। सारे कविधर्म इसी परिभाषा से निःसृत होते हैं। शब्द का ज्ञान और इसकी अर्थवत्ता की सही पकड़ से ही एक व्यक्ति रचनाकार से रचयिता बनता है। अज्ञेय का मानना था कि ध्वनि, लय छंद आदि के सभी प्रश्न इसी में से निकलते हैं और इसी में विलय होते हैं।
कविता में जिस अनुभूति का चित्रण होता है वह वैयक्तिक न होकर सामाजिक होती है। इस सामाजिक अनुभूति में जटिलता-संश्लिष्टता और तनाव रहता है। अतः कविता सामूहिक भाव-बोध की अभिव्यक्ति है।
आपका आभार। इस विषय पर एक सार्थक बहस के लिए मंच प्रदान करने के लिए।
जवाब देंहटाएंआपका आभार राजभाषा हिंदी ब्लॉग को उद्धृत करने के लिए।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं'कविताविहीन समय में आपने कविता पर विश्लेष्णात्मक प्रस्तुति दी .
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी , धन्यवाद
अच्छा विश्लेषण है .. हमें भी ही समझ आ रहा है कविता क्या है ....
जवाब देंहटाएंकविता पर इतना गहरा विश्लेषण और आते जाते कॉमेंट्स भी इसको और मथ रहे है और सार निकाल रहे है... पोस्ट बहुत कमाल की और ये गीत भी की मैं कही कवि न बन जाऊं ...
जवाब देंहटाएंअरे वाह कविता पर तो काफी विश्लेषण किया जा चूका है यहाँ पर.. बहुत ही ज्ञानदायक पोस्ट..\चलिए एक कविता मेरी भी हो जाए..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग इस बार मेरी रचना ...
स्त्री
jo jaisa smajhe aur kah de phir sukun mile wohi hai kavita shayad
जवाब देंहटाएंacha lekh
(वे पंक्तियाँ जो कि गद्य हैं कहला सकती नहीं बिचारी) !.....sehmat hun is baat se.
जवाब देंहटाएंआपका फारवर्दित मेल मिला था पर उस समय अन्यत्र संलग्नता के कारण नहीं आ सका था !
जवाब देंहटाएंकवि-फवि तो हूँ नहीं , पर एक पाठक के निमित्त से ही कुछ कहना चाहूँगा !
आपके लेख में बहस की आधारभूमि कमजोर है , क्योंकि काव्य-लक्षण , काव्य-हेतु और काव्य-प्रयोजन के बीच में गड्डमड्ड हो गया है ! 'कविता क्या है' में इस अंतिम के गीत का क्या औचित्य है नहीं समझ पाया !
आरंभिक टीप में कई लोगों के मत को तो रखा गया है , पर टीपकार को स्वयं नहीं पता है ( अथवा जहां से चीजें ली गयी हैं वहाँ पर भी ऐसा हो सकता है ) कि काव्यशास्त्रीय बहस दार्शनिक अक्ष पर शब्द और अर्थ पर केन्द्रित है न कि मोटे स्तर पर यहाँ पर गृहीत 'रचना' पर ! उन परिभाषाओं का परिप्रेक्ष्य अलग है !
फिलहाल एक बहस ही बहस ( भाव या विचार ) के निमित्त एक बात कहना चाहूँगा कि कविता भावपक्ष और विचारपक्ष का आवश्यक संतुलन-बिंदु है , जहां मार्मिकता प्राथमिक तौर पर किसी को खींचती है | 'कविता अपने अनावृत रूप में एक शुद्ध विचार है' ( ~ केदार नाथ सिंह ) ! आभार !
सुन्दर मीमांसा ।
हटाएंmain bhi yahi sochti hun aur likh daalti hun ...bahut sundar lekh
जवाब देंहटाएंरामधारी सिंह दिनकर ने कहा है....."कविता गाकर रिझाने के लिये नही ,समझ कर खो जाने के लिये है.."और मेरे ख्याल से कविता ना होती तो भावनाओ को आश्र्य कौन देता...?
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गीतों में यदि झंकार न हो, तो व्यर्थ रहे महफ़िल सारी !
जवाब देंहटाएंरचना के मूल्यांकन में है , इन शब्दों की जिम्मेदारी !
कवी की कल्पना का यथार्थ है । कविता ।
जवाब देंहटाएं" वाक्यम् रसात्मकम् काव्यम् ।"
जवाब देंहटाएंपण्डित राज जगन्नाथ
रचनाकार एक बार तो बताता ही होगा कि कविता क्या है ? ... अनन्त तक चलने वाला प्रश्न है ...
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