उतरना प्रेम का .....
दो भिन्न भाव उतरने के!!
उतर रहा सूर्य प्रेम मद भर कर
पहने सतरंगी झालर हो जैसे!
आरक्त कपोल लजवन्ती हौले
खोलती धरा पट घूंघट जैसे!
उतर रहा प्रेम मद रिस कर
घट रहा जल घट का जैसे!
सूखी सरिता मीन तड़पती
मन बंजर धरती का जैसे!
दो भिन्न भाव उतरने के!!
उतर रहा सूर्य प्रेम मद भर कर
पहने सतरंगी झालर हो जैसे!
आरक्त कपोल लजवन्ती हौले
खोलती धरा पट घूंघट जैसे!
उतर रहा प्रेम मद रिस कर
घट रहा जल घट का जैसे!
सूखी सरिता मीन तड़पती
मन बंजर धरती का जैसे!