ईश्वर ने रचे रात्रि दिवस
संग अनादि दृश्य प्रपंच था !
ब्रह्माण्ड आच्छादित चन्द्र सूर्य
तारक समूह नभ आलोकित था !!
बाग़ बगीचे , झरने कलकल
पहाड़ नदियाँ थार मरुस्थल !
वसुधा के आँचल पर काढ़े
वनस्पतियों का विस्तार सघन था !!
बसंत नव पल्लव शरद शिशिर
पतझड़ पीला पात मर्मर था !
ग्रीष्म आतप दग्ध था भीषण
रिमझिम पावस जलतरंग था !!
मधुर मदालापी मीन मधुप
खग- मृग कलरव किलोल था !
चातक चकोर सुक खंजन
नील सरोवर उत्पल व्याकुल था !!
मुग्ध दृष्टि सृष्टि पर रचता
ह्रदय शिरा मस्तिष्क संचित था!
प्रथम स्त्री रची शतरूपा
प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु था !!
प्रेम न उपजे पण तो यह था
किन्तु यह न्यायोचित न था !
पवन वेग से अग्नि शिखा का
वन में दावानल घटना था !!
ईश्वर ने रची रचना भिन्न थी
उस पर प्रेषित निर्देश भिन्न था!
कहत नटत रीझत खीझत सा
क्या ईश्वर का उद्देश्य भिन्न था !!
चित्र गूगल से साभार ....