प्रेम होने में जो है ,
शब्दों में कहीं अधिक है !
शब्दों से कहीं अधिक है !!
जरुरी है प्रेम का होना ,
शब्दों के सिवा ही !
शब्दों के सिवा भी !
(एक दिन कविता की यह शाख सूख जायेगी )
प्रेम शब्दों से फिसलकर
रिश्तों में साकार होगा
या कि
पतझड़ के सूखे पातों-सा
बिखर जाएगा .
होगा यह या वह
इन शब्दों के परे
इन शब्दों के इर्द गिर्द ही मगर !!