खूबसूरत स्मृतियाँ तो अंगराग -सी ही हैं जो छूट जाने पर भी खुशबू और रंगत ही देती हैं ...
फिर भी कभी किसी शाम तन्हाई आकर करीब बैठ जाए तो फिर तन्हाई , शाम , उदासी और हम ...फिर तन्हा रहा कौन !!

हर रोज क्षितिज पर
जब धरती आसमान से
गले मिल कर जुदा होती है ...
आसमान में घिर रहा हल्का अँधेरा
शाम की आँखों से बह रहा हो काज़ल जैसे ...
धीरे धीरे शाम ढलती है स्याह अँधेरे में
अपने साये से लिपटकर
उदास शाम के साथ
अपनी उदासी भी भाती है तबसे ....
एक ही राह के हमसफ़र
जो बन गये हैं
उदासी , तन्हाई , शाम और हम ...
बिना गले मिले
बिछड़े थे हम जबसे
शाम इतनी ही उदास तन्हा है तबसे !!!