कविता घर -घर की !!
सर दुखता है , दबा दूं ...
भूख लगी है , खाना लगा दूं ...
मैले लिहाफ बदल दूं ...
आँगन बुहार लूं ...
दोस्तों के लिए चाय -नाश्ता बना दूं
रिश्तेदारों को मना लूं ...
बच्चों को नींद से जगा दूं
बिखरी किताबें रैक में लगा दूं ...
महीने का राशन लाना है
बिजली का बिल भर देना ...
कितना बोलती हो
तुम कुछ कहते क्यों नहीं ...
गुलदस्ते में फूल सजा दूं
पौधों को पानी पिला दूं ..
छनका दूं चूड़ी या पायल
संवर लूं कि भा जाऊं ...
चलो कही घूम आयें
मंदिर में दर्शन ही कर आयें ..
हम कितने खुश हैं ...
अभी कितना झगडे थे !
प्रेम क्या इसके सिवा
कुछ और भी है !!!
और
प्रेम यदि इसके सिवा कुछ और भी है ...
मैंने- तुमने जाना नहीं तो
अब शिकायत कैसी
कुसूर किसका !!!
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