कविता कम शब्दों में गहरी बात कहने में सक्षम होती है । ये कवि की कोरी कल्पना हो जो शब्दों के सिर चढ़कर अनदेखे , अनचीन्हे मधुरिम काल्पनिक लोक की सैर करा लाये या शब्दों से टपकती क्रूर निर्मम हकीकत , मुझे कवितायेँ बहुत लुभाती हैं .
ब्लॉग दुनिया में प्रवेश करते ही सर्व प्रथम
हिमांशुजी और
रश्मि प्रभा जी की कविताओं /रचनाओं से परिचय हुआ था , इसलिए कविताओं के लिए
कविताकोश के बाद सबसे ज्यादा इन दोनों कवि /कवियत्री का ब्लॉग ही पढ़ा अब तक । बहुत समय पहले इन दोनों से ही अपने ब्लॉग पर इनकी कवितायेँ प्रकाशित करने की अनुमति ले ली थी। बहुत कुछ लिखा या संकलित रह जाता है आजकल करते हुए , कोशिश कर रही हूँ एक- एक कर पोस्ट कर दूं ...
आज
हिमांशुजी की कवितायेँ...कविता की कल्पनाशीलता और रचना की उपयोगिता , दोनों अलग भाव है इन कविताओं में !
“रचना क्या है, इसे समझने बैठ गया मतवाला मन
कैसे रच देता है कोई, रचना का उर्जस्वित तन ।
लगा सोचने क्या यह रचना, किसी हृदय की वाणी है,
अथवा प्रेम-तत्व से निकली जन-जन की कल्याणी है,
क्या रचना आक्रोश मात्र के अतल रोष का प्रतिफल है
या फिर किसी हारते मन की दृढ़ आशा का सम्बल है ।
’किसी हृदय की वाणी है’रचना, तो उसका स्वागत है
’जन-जन की कल्याणी है’ रचना, तो उसका स्वागत है
रचना को मैं रोष शब्द का विषय बनाना नहीं चाहता
’दृढ़ आशा का सम्बल है’ रचना तो उसका स्वागत है ।
’झुकी पेशियाँ, डूबा चेहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
’मानवता पर छाया कुहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
विषय बनाना हो तो लाओ हृदय सूर्य की भाव रश्मियाँ
’दिन पर अंधेरे का पहरा’ ये रचना का विषय नहीं है ।
रचना की एक देंह रचो जब कर दो अपना भाव समर्पण
उसके हेतु समर्पित कर दो, ज्ञान और अनुभव का कण-कण
तब जो रचना देंह बनेगी, वह पवित्र सुन्दर होगी
पावनता बरसायेगी रचना प्रतिपल क्षण-क्षण, प्रतिक्षण ।
---------------------------------------------------
मैं हुआ स्वप्न का दास मुझे सपने दिखला दो प्यारे ।
बस सपनों की है आस मुझे सपने दिखला दो प्यारे ॥
तुमसे मिलन स्वप्न ही था, था स्वप्न तुम्हारा आलिंगन
जब हृदय कंपा था देख तुम्हें, वह स्वप्नों का ही था कंपन,
मैं भूल गया था जग संसृति
बस प्रीति नियति थी, नियति प्रीति
मन में होता था रास, मुझे सपने दिखला दो प्यारे ।
सपनों में ही व्यक्त तेरे सम्मुख था मेरा उर अधीर
वह सपना ही था फूट पडी थी जब मेरे अन्तर की पीर,
तब तेरा ही एक सम्बल था
इस आशा का अतुलित बल था
कि तुम हो मेरे पास , मुझे सपने दिखला दो प्यारे ।
सोचा था होंगे सत्य स्वप्न, यह चिंतन भी अब स्वप्न हुआ
सपनों के मेरे विशद ग्रंथ में एक पृष्ठ और संलग्न हुआ ,
मैं अब भी स्वप्न संजोता हूँ
इनमें ही हंसता रोता हूँ
सपने ही मेरी श्वांस, मुझे सपने दिखला दो प्यारे ।