ऋण स्नेह का
चुकाया साथ रह
चुपचाप ही !
मन बंजर
स्नेह वृष्टि से तर
उर्वर हुआ !
तुम्हारा आना
वसंत हुआ मन
पतझड़ में !
इश्क हकीकी
ना समझे है कभी
इश्क मिजाजी !
आँखें मीचें क्यों
भटकता है राही
मन कस्तूरी !
मौन की भाषा
पढ़े न सब कोई
मौन ही जाने !
नैनन देखे
पिया ही दिखे
झूठे दर्पण !
चढ़ते रहे
उम्र की थी सीढियाँ
जीवन भर !
रिश्तों की नमी
स्वार्थ की तीखी धूप
सुखा ही गई !
लफ्ज बेमानी
ख़ामोशी कह जाती
सारी कहानी !
मैं उदास हूँ
पढ़ा उसने कैसे
लिखे बिना ही !
हायकू वह विधा जहाँ पूरी बात 17 अक्षरों में कहनी हो। सिर्फ 17 अक्षर जोड़ देने से बात नहीं बनती , कम शब्दों में गहरी बात निकले तो बात होती है।
बंदिशों में लिखना थोडा मुश्किल है , कोशिश कर देखा ! कैसा है प्रयास ?!!