कई बार कोई नयी कविता लिखने पर साथी ब्लॉगर में से किसी का सवाल आता है .. ये कैसे लिखी!!
कभी कभी तो कोई चुटकी लेते हुए यह भी कह देता है कि क्या बात है!, बड़ी गहरी कवितायेँ लिखी जा रही हैं .....
सच कहूँ तो मैं आज तक समझ नहीं पायी कि मैं कविता कैसे लिखती हूँ .... कैसे शब्द जुड़ते हैं , कैसे विचार आते हैं ...कई बार हैरान हुई हूँ मैं कि मैंने ये लिखा कैसे ...जो मैं लिखती हूँ वह साहित्यिक दृष्टि से कविता है भी या नहीं... ये भी पता नहीं ...बस मैं इतना ही जानती हूँ कि जो विचार दिमाग में इकट्ठा होते हैं , बिना लाग लपेट उन्हें शब्दों में ढालने की कोशिश करती हूँ ,
कई बार दिमाग में चल रहे सवाल , जाने कहाँ कब सा अटका हुआ कोई शब्द , कही पढ़ी हुई कोई तहरीर , कोई वाकया या कोई काल्पनिक परिस्थिति में कोई पात्र कैसा महसूस करता होगा ...यही सब कुछ तो लिख जाता है ...उतर आते हैं शब्दों में और एक कविता बन जाती है ...ये अनायास लिखी जाने वाली कविताओं का आकलन है ...जो सायास लिखा जाता है वहां हर शब्द तौल कर , सोच कर लिखा जाता है ...और सोचने , समझने से तो अपना छत्तीस का आंकड़ा है ...
मन किया कि जरा कवियों की नजर से ही जान लिया जाए कि
आखिर कविता क्या है ...कैसे लिखी जाती है ...मेरे साथ आप लोंग भी पढ़ लीजिये ....
कविवर पन्त के शब्दों में ...
"वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान, उमड़ कर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान.."
कहा जाता है कि
कवि समाज में खुद को स्थापित करने के लिए तुष्टिकरण के संवेग में
कविता लिखता है ..समाज की भाषा में खुद को स्थापित करने की कोशिश करता है..
और निरंतर करता रहता है .
...
प्रभाकर माचवे जी ने कहा है कविता के बारे में ...
कविता क्या है? कहते हैं जीवन का दर्शन है - आलोचन,
(वह कूड़ा जो ढँक देता है बचे-खुचे पत्रों में के स्थल)।
कविता क्या है ? स्वप्न श्वास है उन्गन कोमल,
(जो न समझ में आता कवि के भी ऐसा है वह मूरखपन)
कविता क्या है ? आदिम-कवि की दृग-झारी से बरसा वारी-
(वे पंक्तियाँ जो कि गद्य हैं कहला सकती नहीं बिचारी) !
हेमन्ती सन्ध्या है, सूरज जल्दी ही डूबा जाता है-
मन भी आज अकारज चिर-प्रवास से क्यों ऊबा जाता है ?
फ़सल कट गयी, कहीं गडरिया बचे-खुचे पशु हाँक रहा है,
सान्ध्य-क्षितिज पर कोई अंजन, म्लान-गूढ़ छवि आँक रहा है ।
बचे-खुचे पंछी भी लौटे, घर का मोह अजब बलमय है,
मानव से प्रकृति की छलना, प्रकृति से मानव छलमय है !
फुरसतिया जी ने कहा है कविता के लिए देखिये
यहाँ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने बहुत विस्तार से लिखा है ....
" कविता मनुष्य के हृदय को उन्नत करती है और ऐसे ऐसे उत्कृष्ट और अलौकिक पदार्थों का परिचय कराती है जिनके द्वारा यह लोक देवलोक और मनुष्य देवता हो सकताहै।"
कुमार अम्बुज कहते हैं ...
" केवल भाषा से, शब्दों भर से कविता संभव नहीं होगी। वह कुछ और चमत्कृत कर सकनेवाली चीज हो तो सकती है मगर कविता नहीं। जहाँ तक कविता में लोकशब्दों की आवाजाही का प्रश्न है तो यह शब्द-प्रवेश अपनी परंपरा, बोध और सहज आकस्मिकता की वजह से होगा ही। "कवि की अपनी पृष्ठभूमि और उसके जनपदीय सांस्कृतिक जुड़ाव से शब्द-संपदा स्वयमेव तय होती है। ठूँसे हुए शब्द अलग से दिखते हैं, चाहे फिर वे अंग्रेजी के हों, महानगरीय आधुनिकता में पगे हों या फिर लोक से आते दिखते हों। इसलिए महत्वपूर्ण यही है कि कविता में वे किस तरह उपस्थित हैं।...
सुदामा पाण्डेय धूमिल जी कह गए अपनी आखिरी कविता में ...
शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है या
मिट्टी में गिरे हुए ख़ून
का रंग।
लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।
ब्लॉग अड्डा पर
पल्लवी त्रिवेदी जी दिल्लगी कर रही हैं ...
.कवि कैसे बना जाता है
यहाँ
विश्वानन्द जी बता रहे हैं कविता के बारे में ....
कविता क्या है
जैसा कि
राजभाषा -हिंदी पर मनोज जी ने बताया ....
कविता
कविता सिर्फ वही नहीं होती, जो कवि लिख देते हैं। कविता आत्मा की फुसफुसाहटों से बनी वह महानदी भी है, जो मनुष्यता के भीतर बहती है। कवि सिर्फ इसके भूमिगत जल को क्षणभर के लिए धरातल पर ले आता है, अपनी खास शैली में, अर्थों और ध्वनियों के प्रपात में झराता हुआ। "
---बेन ओकरी (बुकर पुरस्कार से सम्मानित नाइजीरियन कवि एवं उपन्यासकार)
अनुवाद : गीत चतुर्वेदी
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