
बहुत आती है
घर में कदम रखते ही
पिता की याद
पिता के जाने के बाद...
पिता के जाने के बाद...
ड्राइंगरूम की दीवारों पर
रह गए हैं निशान
वहां थी कोई तस्वीर उनकी या
जैसे की वो थे स्वयं ही
जैसे की वो थे स्वयं ही
बड़ी बड़ी काली आँखों से मुस्कुराते
सर पर हाथ फेर रहे हो जैसे
जो उन्होंने कभी नही किया
जब वो तस्वीर नहीं थे
स्वयं ही थे....
कभी कभी उतर आते हैं
मकडी के जाले उन पर
मकडी के जाले उन पर
कभी कभी धूल भी जमा हो जाती है
नजर ठहर जाती है उनकी तस्वीर पर
क्यों लगता है मुझे
कम होती जाती है उनकी मुस्कराहट
कम होती जाती है उनकी मुस्कराहट
स्मृतियों से झाँक लेते हैं वे पल
जब वो तस्वीर नही थे
स्वयं ही थे.....
स्वयं ही थे.....
व
बिखरे तिनकों के बीच देखा एक दिन
एक चिडिया तस्वीर के पीछे
अपना घर बनाते हुए...
अपना घर बनाते हुए...
सोचा मन ने कई बार
काश मैं भी एक चिडिया ही होती
दुबककर बैठ जाती उसी कोने में
महसूस करती उन हथेलिओं की आशीष को...
और एक दिन घर में कदम रखते ही
बहुत आयी पिता की याद
बहुत आयी पिता की याद
तस्वीर थी नदारद
रह गया था एक खाली निशान
कैसा कैसा हो आया मन ...
आंसू भर आए आँखों में
आंसू भर आए आँखों में
पर पलकों पर नहीं उतारा मैंने
उनका कोई निशान
उनका कोई निशान
चिडिया करती थी बहुत परेशान
फट गया था तस्वीर के पीछे का कागज भी
सबकी अपनी अपनी दलीलें
लगा दी गयी गहरे रंगों से सजी पेंटिंग कोई
किसीको नजर आती उसमे चिडिया
किसीको नजर आता उसमें घोंसला
घोंसले में दुबके हुए
चिड़िया के बच्चों की गिनती के बीच
मुझे तो नजर आता था
तस्वीर के पीछे का बस वही खाली निशान....
कई दिन गुजर गए यूं ही
देखते हुए खाली निशान
देखते हुए खाली निशान
अब भी बहुत आती थी
घर में कदम रखते ही
पिता की याद....
घर में कदम रखते ही
पिता की याद....
चिड़िया की बहुरंगी पेंटिंग के स्थान पर
एक दिन फिर से सज गयी
नए फ्रेम में तस्वीर पिता की
भर गया है फिर से खाली निशान....
मगर अब भी घर में कदम रखते ही
बहुत आती है पिता की याद
और याद आता है
तस्वीर के पीछे का वही खाली निशान
तस्वीर के पीछे का वही खाली निशान
रह गया है जिन्दगी में जो खाली स्थान
पिता के जाने के बाद...
पिता के जाने के बाद...
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पिता का साया आगे बढने का संबंल देता है। उनकी क्षत्र छाया में पाल्य अपना जीवन गढते हैं।
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ब्लॉ.ललित शर्मा
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कोमल अनुभूति
जवाब देंहटाएंएक प्रभावपूर्ण स्नेहिल व्यक्तित्व के पिता की यादें क्यों न बार बार आये -नयी तस्वीर पर मेरा भी श्रद्धा सुमन !
जवाब देंहटाएंhriday ko sparsh kar rahi hai ye yaad ....!!
जवाब देंहटाएंभावों को भर पाना कठिन होता है..
जवाब देंहटाएंपापा अक्सर याद न आते
जवाब देंहटाएंपर जब आते, खूब रुलाते !
उनके गले में बाहें डाले , प्यार सीखते , मेरे गीत !
पिता की उंगली पकडे पकडे, सीख लिए थे मैंने गीत !
स्मृतियों में वे अब भी मौजूद हैं ! प्रियवरों की दुनिया में उनकी इस उपस्थिति को नश्वरता का कोई भय नहीं !
जवाब देंहटाएंएक भावुक प्रस्तुति !
फ़ादर्स डे तो एक बहाना है, ये लोग तो ज़िन्दगी के हर क्षण याद आते रहते हैं। पर उनके दिखाए मार्ग हर पल सही मार्ग पर ले जाते हैं।
जवाब देंहटाएंमाता पिता की छत्रछाया में सुकून मिलना स्वाभाविक है. जब अकेलापन काट खाने को दौड़ता है. शांति का यही तरीका कामयाब होता है.
जवाब देंहटाएंआज तो वैसे भी फादर्स डे है. अत्यंत भावपूर्ण प्रस्तुति.
पिता कभी अकेला नहीं छोड़ते ..
जवाब देंहटाएंपिता एक संबल
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी के उबड़ खाबड़ रास्तों पर
समतल विश्वास
नारियल सा व्यक्तित्व
.......... यादों के मध्य यह सच प्रस्फुटित होता रहता है . बहुत ही खूबसूरत यादों की चहारदीवारी बनाई है
पिता की कमी को कोई पूरा नही कर सकता,,,वो भले ही हमारे बीच नही है लेकिन उनकी यादे तो हमारे साथ है,,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत भावुक प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
घोंसला प्यारा लगता है बड़ी तस्वीर के पीछे ||
जवाब देंहटाएंसादर नमन ||
मन भीगा भीगा सा हो गया.........
जवाब देंहटाएंयादों में नमी कुछ ज्यादा थी शायद.....
सादर नमन.
अनु
खाली निशान में भी पिता की छवि ही उभरती रही ॥बहुत कोमल भावों से सँजोयी है ये रचना ... पितृ दिवस की शुभकामनायें .... पिता का एहसास ज़िंदगी भर साथ रहता है ।
जवाब देंहटाएंक्या बात है!!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 18-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-914 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
Bahut badhiya ....sundar rachna ..isme chupa dard bhi mahssos Huwa ..pita ki yaado ko bhulaya nahi jaa sakta .hamare liye to wahi Role Model hai ...photo wapas lagne se khushi mahsoos hui ..
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण!
जवाब देंहटाएंसमझ सकती हूँ क्योंकि गुजरी हूँ इन्ही लम्हों से तभी आज कुछ ऐसे ही भाव मेरे भी उमड आये है मेरे ब्लोग पर्।
जवाब देंहटाएंहाँ बहुत सही लिखा है शायद यही हर उस बेटी और बेटे का दर्द है जो पिता को खो कर जी रहे है. वैसे तो ये नियति है कि सबको जाना है लेकिन जब सर का घना साया छीन जाए तो फिर तपती धूप से कौन बचाए? वो एक शीतल छाया का अहसास होते थे.
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी...वे यादें हमेशा अंतर्मन में बसी रहती हैं....
जवाब देंहटाएंhe pita , shat shat naman
जवाब देंहटाएंपिता की स्मृति को समर्पित भाव विह्वल कर गये ..........
जवाब देंहटाएंपिता की यादों को कौन विस्मृत कर सकता है भला
जवाब देंहटाएंआँखें नम हुयीं पढ़कर .... भावपूर्ण , हृदयस्पर्शी
जवाब देंहटाएंभावुक कर गयी कविता!
जवाब देंहटाएंसतरंगी यादों के मार्मिक भाव!!
जवाब देंहटाएंपिता को अदभुत श्रद्धांजलि!! शुभकामनाएं
नि:शब्द हूँ! कविता अपने भाव अभिव्यक्त करने में सफल रही है। सचमुच जिनके गिर्द हमारा जीवन बना और पनपा हो, उन्हें सामने साक्षात न पाना कितना कठिन होता होगा! मेरी ओर से श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंकुछ भी शब्द नहीं हैं ... मन के कोरों को छू गयी आपकी मधुर रचना ... श्रधांजलि है मेरी ...
जवाब देंहटाएंsach men ye yaaden hi to ham betiyon ki dharohar hai...
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति.. मन भर आया....वाणी जी..
जवाब देंहटाएंभावुक करती कविता
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ! अपनी कहानी जैसी ही लगी ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंहमेशा आएगी उनकी याद तो... आखें नम हुईं पढ़कर ...
जवाब देंहटाएंनमन
तब भी नहीं पढ़ पाई थी ...आज भी नहीं पढ़ पाई पूरी कविता.
जवाब देंहटाएंश्रद्धा के साथ नमन।
जवाब देंहटाएंयादें, वह भी पिता की, कहाँ विस्मृत हो पाती हैं....बहुत भावपूर्ण..विनम्र नमन..
जवाब देंहटाएंपुनः स्मृतियों से जुड़ना अच्छा लगा
जवाब देंहटाएं