नव वर्ष की पूर्व संध्या में
दो मंजिले नए पुते
घर के एक कोने में
कड़कड़ाती सर्दी
हीटर से गर्म कमरों में
केक , पेस्ट्री , मिठाई
कभी गर्म प्याले कॉफी
कभी ढल रहे ज़ाम!
खेलते -कूदते बच्चों से
गुलज़ार घर में !
घर के ही एक कोने में
विधवा वृद्धा माँ
पका कर खाना
नल के ठन्डे पानी से
बरतन धो
अभी निकली है
अबोलेपन में
गली के नुक्कड़ तक !
मिट्टी के चूल्हे पर
फटे -पुराने कपड़ों में
हाथ सेक लेने की मनुहार करती
नुक्कड़ पर ढाली खटिया
खानाबदोश परिवार
चूल्हे पर सिकती रोटियां
संग हाथ सेकती वृद्धा माँ!!
माँ कहती है शब्दों में
कट जाता है गरीबों का समय
सहारा मिल जाता है इनको
दो घडी बतिया लेने में !
रुक जाती है जुबान
मन में कहते
कहाँ बैठी हो माँ !!
बेटी पढ़ती है
आँखों की भाषा
किसका कौन सहारा माँ !
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