गुलाब
यूँ ही नहीं उग जाते होंगे !
काँटों से बिंधे हुए हुए
कुछ हाथ
खुरपी की मार से
गांठें जिन पर!
गोबर और मिली जुली पत्तियों की सड़ांध
कुछ बदबूदार रसायन
नथुने में भर रही जिनके
कपड़ों में उनके रचती होगी दुर्गन्ध
वही हाथ उगाते होंगे
खुशबूदार गुलाब!
पत्तियां बिखरने तक निहारते
हथेलियों की खुशबू में डूब कर
सोच में रहती हूँ अक्सर ...
कविता गुलाब के होने से है!
कि
गुलाब खिलता है कविता से !
ये सब कीचड़ में कमल खिलने जैसा ही है !
जवाब देंहटाएंसच ...वही हाथ तो उगाते हैं .... सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंआँखों में चमक का होना आसान भी तो नहीं .....
जवाब देंहटाएंगुलाब जीवन का प्रतीक है, काँटों से आच्छादित सौंदर्य - कितनी आसानी से हम तोड़ लेते हैं उसे, पर एक काँटा हल्का चुभ जाए तो कराह उठते हैं … उस कराह में जिसे गुलाबों का रुदन सुनाई देता है, वह लिखता जाता है - एक कविता,
जवाब देंहटाएंसौंदर्य-सुरक्षा-पीड़ा से परिपूर्ण
सौंदर्य ,सुरक्षा और पीड़ा की अभिव्यक्ति भी समझता वही है , जो गुलाब की पृष्ठभूमि देख पाता है। गहन दृष्टि !
हटाएंrachne ki prakriya kee sundar parinati... badhiya kavita
जवाब देंहटाएंहां...सोचनेवा ली बात है ये. लेकिन ये भी सच है, कि हर मेहनतश के बदन से पसीना गमकता है, और हाथ सने होते हैं,खाद-मिट्टी में.. वे खुश्बू के मोहताज नहीं होते, केवल हमें खुश्बू से सराबोर करते रहते हैं...सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंदोनों एक दूसरे से है .. पर गेहूं सब पर भारी है.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण कविता.
आपकी सोच ने ....गुलाब और कविता दोनो को सम्मान दिया है
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है
दोनों ही पूरक हैं ... कविता और गुलाब ... और साथ ही व्वो हाथ जो रचते हैं गुलाब को ... या फिर कविता को भी ...
जवाब देंहटाएंबचपन में कोर्स की किताब में पढा था एक वाक्य - चमन में फूल खिलते हैं, वन में हँसते हैं! उन खुरपी की मार, कठोर हाथ, काँटे, बदबू, सड़ाँध, रसायन, दुर्गन्ध के बिना भी गुलाब गमलों में उगाए जा सकते हैं. लेकिन तब क्या गुलाब का सौन्दर्य वही होगा जो उन सारी विषम परिस्थितियों को झेलकर वन में जन्मने वाले गुलाब में दिखता है!
जवाब देंहटाएंवैसे ही कविता जब अनुभव की सड़ाँध, समाज की बदबू, दु:खों के काँटे और तकलीफ़ों के रसायन से होकर गुज़रती है तभी महँकता गुलाब कहलाती है!!
(वैसे ऊपर कही गई बात में अनुभव महत्वपूर्ण है)
खुरपी की मार, कठोर हाथ, काँटे, बदबू, सड़ाँध, रसायन, दुर्गन्ध आदि गमले में खिलने वाले गुलाब की भी पृष्ठभूमि हैं :)
हटाएंआपकी व्याख्या कविता को निखार देती है!!
आभार !
ड्राइंग रूम में सजे गुलाबों की कलम नर्सरी से लाकर (परोक्ष में वो सब जो उसने सहा) लगा दी जाती है गमले में... जैसे शेरवुड से निकल कर कोइ नेता देश की बदबू, सडांध आदि को हटाने का दावा करता है।
हटाएंआपकी कविता कई आयाम दिखा जाती है, उनसे भी परे जो सिर्फ शब्दों में झलकता हो।
अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंवाह,गहन भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार !
जवाब देंहटाएंअथक प्रयास और उससे उपजा फल ....इस जीवन में कुछ भी निरर्थक नहीं .......!!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसार्थक सच को उजागर करती सुन्दर रचना ---
सादर ---
आब-दार रचना ।
जवाब देंहटाएंgahan abhiwayakti .......
जवाब देंहटाएंबदबूदार खाद से खुशबूदार गुलाब उगाने का काम एक कलाकार के हाथ ही कर सकते है, बहुत सुन्दर लगी रचना !
जवाब देंहटाएंकहीं पढ़ा था कविता भाषा का फूल है...तब तो कविता लिखने से गुलाब खिलता ही है और श्रमिक का श्रम जीवन का फूल भी तो है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता , एक कलम के साथ भाव उगाते हैं गुलाब और खुरपी और मिटटी से सने हाथ ही उगाते है गुलाब -- एक सामंजस्य को दर्शाती अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चिन्तन । मज़ा आ गया ।
हटाएंजीवन में दोनो पक्षों का महत्व है -सारा श्रम,कष्ट-सहन और धैर्य गुलाब उगाने के लिए है .उसी में सार्थकता है .मिट्टी,खाद के बीच निरंतर प्रयास के बाद जो मिलता है वही उद्देश्य है और उपलब्धि भी.
जवाब देंहटाएं" अबे सुन बे गुलाब
जवाब देंहटाएंभूल मत गर पाई खुशबू रँगो आब
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर इतरा रहा है कैप्टिलिस्ट ।"
निराला
क्या बात वाह!
जवाब देंहटाएंकितनी समानता है गुलाब और कविता के सृजन में...बहुत गहन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और गहन रचना है.....एक पंक्ति पर मनन करके आपने रच डाली कविता !
जवाब देंहटाएंअनु
वाह सुंदर कविता गुलाबों की। आप मेरे फोटो ब्लॉग पर जायें इस बार गुलाब ही मिलेंगे।
जवाब देंहटाएं- क्या बात है वाह बहुत सही लिखा है दीदी आप ने......दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
जवाब देंहटाएं