मन के मौसम ख़्वाबों की मखमली जमीन पर पलते हैं ....ख़्वाबों में पलते अहसास ही बदलते हैं मौसम को--- पतझड़ से बहार में , जेठ की दुपहरी को सावन में !
खुशनुमा यादों का मौसम!
ग्रीष्म की तपती दुपहरी में
उलट पुलट गये सारे मौसम .
झरने की रिमझिम फुहार जैसा
हौले से छुआ यूँ उसके एहसास ने
मन हिंडोले झूल रहा
शीतल बयार मदमस्त बहकी
सावन द्वार पर आ ठिठका
वसंत ने कूंडी खटखटायी
गुलज़ार हुआ मन का हर कोना
अगर-कपूर - चन्दन खुशबू
दिवस हुए मधुरिम चांदनी जैसे
रुत और कोई इतनी सुहानी नहीं
जितना है
खुशनुमा यादों का मौसम!
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जिया जब झूमे सावन है ....
सूखी ताल तलाई से
मेघों को तकते सूखे नयन
सायं सी चलती पवन
रेत के बन गए जैसे महल
भरभरा कर गिर ही जाते ...
तभी पवन चुरा लाई
आसमान में अटका
रूई के फाये सा
बादल का एक टुकड़ा
रंगहीन अम्बर भरा रंगों से
सफ़ेद ,काला , नीला ,आसमानी
गर्म तवे पर छीटों सी
पहली बारिश की कुछ बूँदें
रेत पर जैसे कलाकृति
भाप बन कर उड़ जाती
सौंधी खुशबू मिट्टी से
नृत्य कर उठा मन मयूर ...
रुत खिजां की यूँ बदलती बहार में ...
कुछ यूँ ही
रिश्तों की जब नमी सूखती
मन हो जाता है मरुस्थल
दूर तक फ़ैली तन्हाई
ग्रीष्म के तप्त थपेड़े सा सूनापन
टूटती शाखाओं से झडते पत्ते
जीवन जैसे ठूंठ हो रहा वृक्ष
बदले मन का मौसम पल में
जीवन में थम जाता पतझड़ ...
चुपचाप मगर नयन बरसाते
पहली बारिश का जैसे जल
मन के रेगिस्तान में
स्मृतियों की धूल पर
खुशबू यादों की सौंधी मिट्टी -सी
ह्रदय के कोटरों में
नन्हे पौधों से उग आते
स्मृतियों के पुष्प
मन मयूर के नर्तन से
बदल जाती रुत क्षण में
भीगा तन -मन
ग्रीष्म हुआ जैसे सावन में ...
कह गया चुपके से
कौन कानों में
मौसम मन के ही है सारे
जिया जब झूमे सावन है ....
चित्र गूगल से साभार !