प्रथम किश्त में इस संकलन के १२ रचनाकारों की काव्य प्रतिभा से परिचित हुए , अब आगे ...
13. मीनाक्षी मिश्रा तिवारी -- अपनी कविता जीवन में जीवन को चिरस्मृत बनाने की प्रेरणा देती हैं .
दर्द की रामबाण दवा है मुस्कराहट और वो एक दिन जो अपने अस्तित्व के भान का कारण बना हो , मुस्कराहट बनकर होठो पर सज जाता है .
प्रेम की जादुई शक्ति पतझड़ को भी मधुमास -सी सरस बना देती है .
जीवन संघर्षों की गणितीय परिभाषा लिखती है समाकलन में . जब समीकरण जीवन का बन जाता है तब उसमे ही जीना है , अवकलन का कोई विकल्प नहीं रह जाता तब .
14. मुकेश गिरी गोस्वामी -- प्रेम की स्मृतियाँ कस्तूरी- सी ही होती है , इनसे सरोबार इन्हें भूले भी तो कैसे . अब तलक तेरी खुशबू आती है , मुझे जीना सिखाती हो तुम , तुम्हारा साथ होता तो श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती .
प्रेम में संस्कारों को त्यागा नहीं गया और संस्कारों के बोझ तले प्रेम विरह में बदल गया " तुमसे कभी रोया ना गया " . इश्क में गैरत- ए- जज़बात ने रोने न दिया की याद दिलाती है यह कविता .
15. रजत श्रीवास्तव -- प्रेम के सर्वश्रेष्ठ रिश्ते मौन में ही निभते हैं , बादल और धरती प्रेम में किस भाषा का प्रयोग करते हैं भला!
तुम्हारे रहते स्वप्न सीमाहीन है या स्वप्नों की सीमा तुम हो .
इनका मर्यादित प्रेम अपनों के दिलो की टूटी तहरीर पर नहीं लिख पायेगा , बंदिशों ने एक दूसरे से दूर किया हो मगर दूर रहकर भी मैं तुमसे अलग नहीं .
मुहब्बत की इंतिहा तो यही है कि महबूब आकर मुझमे ही समा जाए , वही मुहब्बत और वही जुस्तुजू " देख ले " गज़ल में .
16. रश्मि प्रभा - अंतरजाल पर सर्वाधिक लोकप्रिय कवयित्रियों में शामिल रश्मि प्रभा जी तथा उनकी रचनाओं से कौन अपरिचित रहा है . पत्र -पत्रिकाओं और पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हो चुकी इनकी काव्य प्रतिभा अब किसी परिचय की मोहताज नहीं रही है .
इनकी कविताओं में प्रेम आध्यात्म के उच्च शिखर पर है तो सामाजिक सरोकार , निर्देश भी कविताओं के जड़ से छूटे नहीं है .
मुश्किल है में क्रूर मानवीय षड्यंत्रों के कारण माँ अपने कलेजे के टुकड़े को लोरी ना सुना पाए तो अपने गीत को काली के उद्घोष में बदल लेती है . ऐसे में रचना या कर्म के सिद्धांत और आदर्श की बात व्यर्थ हो जाती है .
हरिनाम में विषमताओं से भरे जीवन में कृष्ण ने रिश्तों का असली रूप दिखाया , निस्सारता का पाठ पढाया .
समझदार होने के क्रम में मासूमियत पीछे रह जाती है , आगे बढ़ने के दौर में निश्छलता ,निष्कपटता भी खो ना जाए, यही सन्देश है परेशानियाँ तो दरअसल समझदारी में है .
उन्नति के शिखर की ओर कदम बढ़ाते कई बार मन सोचता है कि मैं बनकर जो मिला , क्या वाकई वह एक उपलब्धि ही है . ए तुम! क्या हो तुम एक नाम के सिवा . धीरे- धीरे सब मेरा मौलिक छूट जाता है , जो बचता है वह सिर्फ एक औपचारिकता है नाम की , नाम भर की .
हमेशा मैं ही हौसले की बात क्यों करूँ ...कोमल कंधे कब तक मजबूती से दूसरों का सहारा बने रहे थकान , निराशा , कंधे की दरकार तो मुझे भी है , कब तक मैं ही कहती रहूँ कि मैं हूँ ना !
17. राहुल सिंह --राहुल का स्वयं का कोई ब्लॉग नहीं है . ये अपने फेसबुक पेज काव्यधारा द्वारा अपनी रचनाएँ अंतरजाल पर साझा करते हैं .
आज़ाद होने की वर्षगाँठ मनाते मन के भीतर कही कुछ चुभता है . आज़ादी के नारे देते हुए कई बार सोचना होता है कि दासता से मुक्ति पाने का कार्य सम्पूर्ण रूप से सफल नहीं हुआ तो हम आज़ाद कहा रहे, अभी गरीबी , अशिक्षा , भ्रष्टाचार , कुपोषण , कुविचार से सफल नहीं हुए तो कार्य सफल कैसे हुआ , दासता से मुक्त होने का नारा असफल कार्य ही कहलाया .
अपनी कविता " भारत -दर्शन " में उनकी अपने देश के प्रति निष्ठां और गर्व उभरता है जब वे विश्व भ्रमण की बनिस्पत भारत-भ्रमण को प्राथमिकता देना चाह्ते हैं .
जीने की मर्यादा में एक इंसान के स्वाभिमान को प्रदर्शित करती है जो अपने लिए दयनीय दृष्टि नहीं , बल्कि सम्मान चाहता है , अभिमान भी नहीं .
ऐसा भी दिन आता है में दुःख के दिन कैसे भी हो , बीत ही जाते हैं का सन्देश दिया है .दर्द का इतना बढ़ जाना कि खुद दवा हो जाने जैसा ही !
बुरे दिनों के दौर में मन चिंतित यही सोचता कहता है , कब आएगी शाम सुनहरी ?
18. रिया - ओहदे से स्वयं को कवयित्री नहीं मानने वाली रिया दुनिया से कदमताल करते हुए कई बार उसके दिखावटी रंग में उसके साथ नहीं ढाल पाने का अफ़सोस दुनिया छलिया बन छल गयी में अभिव्यक्त करती हैं .
दिल और दिमाग के बीच की कशमकश में कांपते हाथों और भटकते शब्दों में कुछ लिख पाना कठिन ही है इसलिए वे कहती है शायद लिख नहीं पाउंगी .
वो हाथों का मिलना हमने संभाल कर रखा है कविता में प्रेम के खूबसूरत पल सहेजे हुए हैं .
पड़ोस की वृद्धा की चीख बेचैनी
भरती है कि आखिर यह शरीर की यह अवस्था अभिशाप है या बीमारी , डर और चिंता दोनों ही इस कविता में मुखर हुई हैं .
19. वंदना गुप्ता - वंदना जी भी अंतरजाल पर सक्रिय सशक्त हस्ताक्षर हैं जिन्होंने प्रिंट मीडिया में भी विशिष्ट रचनाकार के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज की है . कृष्ण के प्रेम में राधा हो जाने वाली वंदनाजी की काव्य लेखन की अपनी विशिष्ट शैली है. कस्तूरी में संकलित उनकी पांच कविताओं में अभिव्यक्ति के विभिन्न रंगों की भीनी खुशबू है .
प्रेमी का इंतज़ार पोर- पोर में टीस उत्पन्न करता है , सुई और उसके चुभन की पीड़ा का बिम्ब है " इंतज़ार की सिलाई नहीं होती " में .
प्रेम पढ़ाई जीवन के पन्ने पलट लेने भर जैसा सरल नहीं है , हर्फ़- दर- हर्फ़ हर पन्ना एहतियात से पढना और समझना होता है ,तभी तो यूँ ही डिग्रियां नहीं मिलती प्रेम में ...
मां ! तुझमे एक बच्चा नजर आता है में वृद्धावस्था की ओर बढ़ती माँ की सारसंभाल करती बेटी जाने कब माँ की भूमिका में आ जाती है और दोनों की भूमिकाएं परस्पर बदल जाती है . माँ ने बचपन में बच्चों के लिए गलत -सही का निर्धारण अपने विवेक से करती है , बेटी भी अपनी माँ के लिए अच्छा बुरा सोचते माँ जैसी ही हो जाती है . सबका अपना दृष्टिकोण में गिलास आधा है या भरा है , यह प्रत्येक व्यक्ति के भिन्न दृष्टिकोण पर निर्भर करता है ,नज़ारे बहुत कुछ अपनी नजरों पर भी निर्भर होते हैं .
हर चीज की कीमत होती है बताती है कि बुलंद इमारतों के लिए मजबूत नींव जैसी ही तुम्हारी कामयाबी के पीछे भी हमारी क़ुरबानी और अधूरी हसरतों की लम्बी दास्ताँ है .
" अछूत हूँ मैं " में पुरुष के दंभ को पोषित नहीं करने वाली स्त्रियों को अपयश का भागी करार दिए जाने के षड़यंत्र का बखान है .
20. शिखा वार्ष्णेय -- पत्रकारिता और यात्रा संस्मरणों में अपना रसूख स्थापित करने वाली शिखा की लेखन वार्डरोब में ने बेहतरीन कवितायेँ
टंगी हैं .
मै और तू ...जीवन के संघर्ष मे साथ होते है , मै और तू एक साथ ही गुजरते है, मगर सुखी नजर आने वालो को देखकर उनके संघर्ष का अंदाजा सबको नहीं होता . स्त्री और पुरुष की की प्रेमाभिव्यक्ति के सूक्ष्म अन्तर को टाई और चेन का बिम्ब देकर दर्शाया है .
रद्दी पन्ना रिश्तो को बिखराव से बचाने के लिए ध्यान से सहेजे जाने का सन्देश देती है .कोरे पन्नो पर काले शब्दो को लिखना था एहतियात से , स्याही बिखरी नहीं पन्ना रद्दी हुआ ...
व्यस्त और स्वार्थ परक दुनिया में भावनाओं को अनदेखा किया जाना उन्हें नहीं भाता . भावनाएं हिंदी कविता की किताब सी , ढेरों उपजती हैं पर पढ़ी नहीं जाती . भावनाओं के ज्वर को मधुर बोल की ठंडी पट्टी और प्यार की टैबलेट की जरुरत होती है .
स्वयं से प्रेम कविता के अपने निरीह अस्तित्व के प्रति भी संवेदना जगाता है .
जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ , कहा वक़्त ने हो गयी देरी है ! गेय रचना है
गट्ठे भावनाओं के में कविता भावनाओं , संवेदनाओं , शब्दों , विचारों को कलछी , हलवा , आंच आदि के बिम्बों का छौंक लगाकर भरपूर स्वादिष्ट बनाई गई है .
प्रेम पुराना होता है , मगर खुशबू उसकी हर दम ताज़ा ही होती है ...कमीजें कितनी भी बदलो , पुरानी कमीज नुमा प्रेम नहीं बदला जाता ...
21. हरविन्दर सिंह सलूजा -- एक पूरी दुनिया जहाँ लेनदेन , मार -काट , हिंसा -प्रतिहिंसा में उलझी हुई है , कविताओं में ही सही. प्रेम निराशा के वातावरण के बीच एक उम्मीद जगाता है . हरविंदर जी की कवितायेँ ऐसे ही प्रेम के रंग रंगी है .
एह्सास उसकी खुशबू का .प्रेम कुछ लम्हो के लिये आये जिन्दगी मे , मगर खुश्बू उसकी हर जगह आयेगी.
कुछ पन्ने जिन्दगी के , कैसे उसे दीवानी लिखू , तेरा मुझमे मिल जाना , जैसे आसमा का जमीन पर आना , तू बोल दे आज तो मै तुझ सा होता हूँ .सभी कविताये प्रेम -कस्तूरी की सुगंध से सुवासित हैं .
२२. अन्जू (अनु )चौधरी --. कस्तूरी काव्य संकलन के मध्यम से अंजू जी ने संपादन के क्षेत्र में अपना पहला कदम रखा है . कवितों के चयन में उनकी परिपक्वता संपादक के रूप में उनकी भूमिका की श्रेष्ठता प्रमाणित करती है .
उनकी कविताओं में सामाजिक सरोकार से लेकर रिश्तों की दुरुहता भी प्रतिध्वनित होती है . मेरा तमाशा , मेरा दर्द में दुशासन के हाथो प्रताडित स्त्री कृष्ण को पुकार रही थी . स्त्रियों के साथ होने वाली घटनाओं के प्रति मिडिया की सम्वेदनहीनता पर तंज करती है जो सम्वेदनाओ की आंच पर अपनी लोकप्रियता की रोटी सेकता है. उनके लिये औरत की आबरू पर हमला सिर्फ़ एक समाचार है , मनोरन्जन है.
जिन्दगी के करीब आते , दूर जाते जीवन एक लम्बी खामोशी सा लगता है .
जीवन गुजर तो रहा है , मगर अभी तेरे संग जीना बाकी है " कि अभी बहुत कुछ बाकी है ".
प्रतिध्वनि सन्देश देती है कि जब प्रतिक्रियात्मक विचार से विचलित हुए बगैर जीवन को उसकी विभिन्नता को स्वीकार किया जाये तो जीवन सरल हो जाता है .
बुरा वक़्त स्वयं अपनी कहानी कह रहा है , कई बार भाग्य के आगे हाथ बांधे हुए ही मालूम होते हैं .
अपने लिए में प्रेम के प्रति स्त्री और पुरुष के विरोधाभासी दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया गया है .स्त्री और पुरुष के लिए प्रेम की परिभाषा भिन्न हो जाती है . स्त्री प्रेम में समर्पित होती है जबकि पुरुष अधिकार मांगता है . पुरुष स्त्री को सम्मान प्रेम देता है सिर्फ अपने लिए , नारी क्या चाहती है ,यह प्रश्न उसके ह्रदय - कन्दरा के द्वार पर लगी सांखल को नहीं खटखटाता . जबकि प्रेम वह नहीं है जो अपने जीवन साथी या प्रेमी को अपनी पसंद का भार लादते हुए स्वयं की सुविधानुसार दिया जाये. प्रेम वह है जो प्रेमी या प्रेमिका को प्रसन्नता देता है .अंजू जी ने रिश्तों और प्रेम की इस जटिलता को कविता में प्रस्तुत किया है .
23. मुकेश कुमार सिन्हा -- अंतर्जाल पर अपनी अभिव्यक्ति को शब्द देते मुकेश रचनाधर्मिता में उत्तरोत्तर प्रगति करते गये और पाठक से लेखक , कवि , समीक्षा और संपादक भी हो गये.
कविता स्मृतियाँ में दर्द भरे , भीषण कठिनाईओं भरे दिन जब गुजर जाते हैं तो स्मृतियों में आकर अपने संघर्ष के प्रति अपने हौसले को याद करते गर्व की अनभूति होती है तथा स्वयं की पीठ थपथपाने का मन होता है.
मुकेश अपनी कविता में आतंकवाद का राजनीतिक चेहरा उघाड़ते हैं . दो समुदायो के मध्य अफ़वाहो द्वारा गलतफहमियां उत्पन्न कर दंगे फ़साद कराने वाली राजनीति का पर्दाफ़ाश करते है . इन दिनो असम मे होने वली घटनाएँ और उसकी प्रतिक्रिया मे बंगलौर और और अन्य दक्षिण भारतीय शहरों से से प्रवासियों के पलायन की गाथा कहती नजर आती है ..
यूटोपिया में प्यार जहाँ हैं , तकरार वही होगी . प्रेम मे रूठना - मनाना , दर्द -विषाद , वितृष्णा -दुराव एक ही सिक्के के दो पहलू से नजर आते हैं ..
एक नदी का मरसिया नदियों के दूषित जल से दुखी व्यक्ति या समाजों की पर्यावरण के प्रति चेतना को भी प्रदर्शित करते हैं .
" पता नही क्यो " में सत्य कहने की शिक्षा देना जितना सरल दिखता है उसे निभाना, उस पर अमल कर पाना उतना ही मुश्किल है नजर आता है .
जीवन के लिए रोटी -पानी के साथ प्रेम भी एक आवश्यक खुराक है , नफरत भरी इस दुनिया में प्रेम पर विश्वास बनाये रखना ही जीवन्तता का द्योतक है . हालाँकि मैं यह मानती हूँ कि प्रेम पर जितना लिखा गया है , इसका शतांश भी जी लिया गया होता तो इस दुनिया का रंग कुछ और ही होता . प्रेम लिखने -कहने से ज्यादा महसूस करने की भावना है मगर
दस्तावेजों में प्रेम लिख कर ही प्रदर्शित किया जा सकता है . प्रेम के प्रति मुग्धता का भाव है लिख रहा है कही कोई प्रेम -पत्र में . चारदीवारियों से घिरे मकान में खुली हवा और धूप के लिए खिडकियों का खुला होना ज़रूरी है जैसे कि समाज के स्वस्थ विकास के लिए खुले दिमागों का होना .