स्त्रियाँ होती हैं ऐसी भी
स्त्रियाँ होती हैं वैसी भी
स्त्रियाँ आज भी होती हैं
वैदेही -सी
चल देती हैं पल में
त्याग राजमहल के सुख- वैभव
खोलकर हर रिश्ते की गाँठ
जीवन -पथ गमन में
सिर्फ पति की अनुगामिनी
मगर सती कहलाने को
अब नहीं सजाती हैं
वे स्वयं अपनी चिता
अब नही देती हैं
वे कोई अग्निपरीक्षा....
स्त्रियाँ आज भी होती हैं
पांचाली- सी
अपमान के घूंट पीकर
जलती अग्निशिखा -सी
दुर्योधन के रक्त से
खुले केश भिगोने को आतुर
किन्तु अब नहीं करती हैं
वे पाँच पतियों का वरण
कुंती या युधिष्ठिर की इच्छा से
स्त्रियाँ ऐसी भी होती हैं
स्त्रियाँ वैसी भी होती हैं
बस तुमने नहीं जाना है
स्त्रियों का होना जैसे
खुशबू, हवा और धूप