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गुरुवार, 20 सितंबर 2012

झीलें है कि गाती- मुस्कुराती स्त्रियाँ .....


आनासागर , अजमेर 



सिक्के के दो पहलूओं की ही तरह  एक ही झील एक साथ अनगिनत विचार स्फुरित करती है . कभी स्वयं परेशान हैरान त्रासदी तो कभी झिलमिलाती खुशनुमा आईने सी , जैसे दृष्टि वैसे सृष्टि- सी ...  जिस दृष्टि ने निहारा झील को या कभी ठहरी तो कभी लहरदार झील की आकृतियों के बीच  अपने प्रतिबिम्ब को, अपनी स्वयं की दृष्टि-सा ही दृश्यमान हो उठता है दृश्य .


झील जैसे स्त्री की आँख है 

झील जैसे स्त्री की आँख है
कंचे -सी पारदर्शी पनियाई 
आँखों के ठहरे जल में 
झाँक कर देखते 
अपना प्रतिबिम्ब हूबहू 
कंकड़ फेंका हौले से 
छोटे भंवर में 
टूट कर चित्र बिखरना ही था ...
झीलों के ठहरे पानी में 
कुछ भी नष्ट नहीं होता 
लौटा देती तुम्हारा सम्पूर्ण 
सहम कर भी कुछ देर ठहरना था 
झील के सहज होने तक ! 


 झीलें  है कि  गाती- मुस्कुराती  स्त्रियाँ 

समूह में  गाती- मुस्कुराती स्त्रियाँ 
आत्ममुग्धा आत्मविश्वासी स्त्रियाँ  
दिखती है उन झीलों- सी 
जुडी हुई हैं जो आपस में नहरों से ... 

झीलें जो जुडी हुई आपस में  नहरों से
शांत पारदर्शी चमकदार जल से लबालब 
आत्मसंतुष्ट नजर आती हैं जैसे कि 
करवा चौथ पर या ऐसे ही किसी पर्व पर 
अपनी पूजा का थाल एक से दूसरे तक सरकाते 
और अपनी थाली फिर हाथ तक आते 
एक दूसरे के कान में फुसफुसाती 
ठहाके लगाती ,मुस्कुराती स्त्रियाँ !!

झील की सतह पर तैर आये तिनके 
धूल मिट्टी या कंकड़ 
एक से दूसरी झील तक आते
धुल जाते हैं 
किसी झील की आँख का पानी सूखा कि 
सब बाँट कर अपना जल 
भर देती है उसे 
किसी झील में किनारे पड़ी है गंदगी 
काई होने से पहले 
दूसरी झीलें बाँट कर अपना थोडा जल 
भर देती हैं  लबालब कि छलक जाए 
छलकती झीलें पटक देती हैं  
कूड़े को किनारे से बाहर !

झीलों  के किनारे पड़े 
कंकड़- पत्थर , कूड़ा करकट 
जैसे अवसर की तलाश में हैं 
झीलों के बीच बहने वाली 
नहर के  सूख  जाने को प्रतीक्षारत!!



सोमवार, 6 अगस्त 2012

झील होना भी एक त्रासदी है!






 



कुछ घंटों की अजमेर यात्रा में कुछ देर  आना सागार झील  के किनारे भी खड़े रहने का मौका मिला  . उमस भरी गर्मी में प्राकृतिक दृश्यों के  साथ   झील से होकर आती ठंडी बयार का लुत्फ़ लेना प्रारंभ ही किया था कि बदबू का तेज झोंका नाक को छू गया . पास खड़े एक स्थानीय  नागरिक ने बताया कि पूरे शहर की नालियों का गन्दा पानी इसी झील में आकर मिलता है , तो यह दुर्दशा होनी स्वाभाविक है  . झील के किनारे सुन्दर बाग़ में  पशुओं की सुन्दर आकृतियाँ , मीरा की मूर्ति लगा कर इसे खूबसूरत बनाने का प्रयास किया गया है  परंतु झील के अस्तित्व के लिए  आवश्यक  जल की शुद्धता और स्वच्छता   पर ध्यान दिया जाना था. उसकी ही कोई परवाह नहीं ...नीचे झाँक कर देखा झील का पानी काई के कारण हरियाया था और मनो कूड़ा करकट झील के किनारे पड़ा था.  प्लास्टिक की  बोतलें , जूते -चप्पल , कपड़े और ना जाने क्या -क्या  . दूषित जल झील में नहीं आये यह प्रशासन की जिम्मेदारी है  किंतु किनारे पड़ा कूड़ा करकट पर्यटकों की मेहरबानी है . झील की बेबसी पर दुःख भी हुआ . वह स्वयं तो अपने किनारे पड़े कचरे को साफ़ नहीं कर सकती  ना ही दूषित जल के बहाव को रोक सकती है . नदी होती तो और बात थी , सब कूड़ा करकट समेट ले जाती ...दूषित मानसिकता /आरोपों/ आक्षेपों को झेलते   स्त्रियाँ भी ऐसी झील हो जाती है .  स्त्रियों को नदी ही होना चाहिए , झील नहीं . झील होना भी एक त्रासदी है !  झील के किनारे खड़े "झील से प्यार करते हुए " शरद कोकास और उनके प्रशंसक भी स्मृति में रहे )

झील होना भी एक त्रासदी है!

भूगर्भ में हुई आग्नेय हलचलें 
कभी जन्म देती हैं झीलों को  
कभी नष्ट भी कर देती हैं  
निर्माण और अवसान के मध्य        
शांत गहरे नीले पारदर्शी  जल के किनारे
मुग्ध ठगे दृग  
झीलों के निष्कलंक सौन्दर्य से !!

आप्लावित कुंठित निर्मित दीवारों ने 
निर्मल जल को घेर कर   
निर्मित कर ली कृत्रिम झीलें 
तब भी वे उतनी ही शांत पारदर्शी थी ...









 उछाले कंकड़ बनाते थे जितनी शीघ्रता से भंवर
 अंक में भर कर त्वरित गति से                                
वैसे ही बिसरा देती थी  निर्मल झीलें  !
मगर कूड़ा जो अब किनारे पर 
अटका पड़ा है काई बनकर 
झील  का गहरा नीला रंग 
हल्का होता रह गया  है हरा ...
हवा के झोंके के साथ बतकही करते       
किनारे खड़े मुसाफिर की बढ़ी हुई नाक में 
गंधाती है झीलें  !

अपनी बढ़ी हुई नाक लेकर 
मुंह फेरने से गंध पीछा नहीं छोड़ती 
कि गंधाने में कुसूर झील का नहीं नाक का है 
जो बढ़ते हुए झील के किनारे तक जा पहुंची!
 झील स्वयं चल कर नहीं आती नाक तक .

झीलों के हाथ नहीं है कि बढ़ कर नाक ही दबा दे 
गंधाने की बतकही  ख़तम कर दे सिरे से ही !
झील के शांत निर्मल नीले जल के लिए 
किनारे खड़े मुसाफिर अपने हाथों को बढ़ाये 
और बीन लाये वह कूड़ा 
जो फेंका है हममें से ही 
किसी किनारे खड़े मुसाफिर ने  !