सफ़ेद झक चमकदार
फ्रिल की फ्रॉक पहने
एक बच्ची
मेरे साथ चलती है हमेशा!
बीहड़ सी राह पर
थक कर बैठने को होती हूँ
पकड़ कर साड़ी की पटलियां
झूले सी लटक जाती है !!
जैसे कि
लोहे के गेट पर लूमते
कितने हिंडोले खाये.
शीशे के पीछे जगमगाती
खिलौनों की दुनिया तक
अँगुली पकड़े खींच ले जाती है.
बेखौफ़ बेतकल्लुफ़ बतिया लेती है कभी
कभी ठिठक कर छिप जाती है.
बेध्यानी में
गुड़िया की गोद में
लोरी सुनाती गुड़िया
घर ले आती हूँ.
बच्चे ताली बजा कर खुश हो जाते हैं.
माँ हमारे लिये गुड़िया लाई...
गुड़िया के इर्दगिर्द घूमती तुम और गुड़िया की चमक बच्चों की आंखों में, कितना अनोखा रिश्ता है ... बहुत कुछ कहता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंजैसे अपने बचपन मैं फिर बच्चों के बचपन मैं खो जाते हैं डूब जाते हैं कविता मैं
जवाब देंहटाएंअपना बचपन खोजने जैसा है बच्चों में डूब जाना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण ... 🙏🙏🙏
आशा है आपका स्वस्थ ठीक होगा ... मेरी शुभकामनाएँ ...
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