शनिवार, 15 सितंबर 2012

शाम के साये में ....






थका मांदा सूरज 
जब चलता है अस्तांचल को 
काँधे से उतारता 
रश्मियों को 
सागर  किनारे 
शांत लहरों में ...

अनगिनत रंगों की छटा 
रंग देती है अम्बर को 
पंछी भी छोड़ कर 
उन्मुक्त परवाज़ 
लौटते हैं नीड़ में ...
सूरज की घडी से  
मिलाते हुए 
अपनी घड़ियों को ...

आने - जाने के इस कोलाहल  में 
प्रकृति की इस जादूगरी से सम्मोहित भी 
कभी- कभी  उदास हो जाता है मन !

सोचते हुए उन थके हुए लोगों को 
तोड़ दी गयी है जिनकी घड़ियाँ 
जिनका  समय किसी से नहीं मिलता 
ना सूरज से 
ना पंछियों से ..... 
या फिर सोचते उन बसेरों को 

31 टिप्‍पणियां:

  1. सोचते हुए उन थके हुए लोगों को
    तोड़ दी गयी है जिनकी घड़ियाँ
    जिनका समय किसी से नहीं मिलता
    या फिर सोचते उन बसेरों को
    जहाँ कोई कभी नहीं लौटता !!.....
    जिन्दगी के दुसरे हिस्से का सजीव चित्रण !

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  2. ये मन भी तो एक बसेरा है | अपने मन में हम लोगों को बसाते हैं ,परन्तु लोग इसे सराय समझ आते हैं , ठहरते हैं और चले जाते हैं |

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  3. जागने के बाद और सोने के पहले, दोनों बार ही खुश होता है।

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  4. सूरज के अस्ताचल जाते ही, यथार्थ और सपनो में बंटवारा होगा . अंतिम पंक्तियाँ जीवन के उदास रंग को रेखांकित कर गई . बहुत सुन्दर .

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  5. बहुत सुन्दर....
    जाने क्यूँ शाम अकसर उदास होती है....
    शायद ढलने का गम उसे भी होता होगा....

    सादर
    अनु

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  6. अक्सर हमें भी घड़ियों के टूटने का अहसास शिद्धत से महसूस होता है . फिर तो उदासी..उदासी..

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  7. प्रकृति से सानिध्य दर्शाती सुंदर रचना

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  8. बहुत खूब अति सुन्दर, बेहतरीन रचना

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  9. समय के साथ से वंचित
    किसी इंतज़ार से वंचित ... सिर्फ चलायमान
    शायद सूरज का अस्तित्व उसने लिया है
    सूरज निरंतर उगता है
    अस्त होना तो अपना सौभाग्य है सोने का
    वरना सूरज ...

    आवाज़ रचना को प्रखर कर रही है, किसी की ऊँगली थामे अनजाना संबल बन रही है

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  10. प्रकृति के खूबसूरत रंगों को खूबसूरती से परिभाषित करती सुन्दर रचना |

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  11. काँधे से उतारता
    रश्मियों को
    सागर किनारे
    शांत लहरों में ..

    और
    रश्मियाँ वहीँ
    इन्तजार करती हैं...
    उन्हीं शांत लहरों पर डोलती
    कल सुबह फिर आएगा सूरज
    उठाएगा अपने काँधे पर
    और चल देगा
    दिन भर के सफ़र पर ..:)

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  12. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को आज दिनांक 17-09-2012 को ट्रैफिक सिग्नल सी ज़िन्दगी : सोमवारीय चर्चामंच-1005 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  13. बडा मार्मिक अस्तांचल चित्र

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  14. मन तो है ही बावरा ,कभी अनायास ही उदास हो जाता है शाम को क्या दोष दें ........

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  15. waah aisi hi umda rachna ko padhne ke liye blogjagat meingota lagate firte hain...
    bahut hi sundar hriday kavymay ho gaya..

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  16. ये मन तो आना जाना है ..सुबह, शाम तो एक बहाना है.

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  17. लाजवाब !! मन प्रसन्न हो तो सूर्यास्त भी सुंदर...उदास मन हर घड़ी उदास है|

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  18. डूबते सूरज की छटा को बहुत सुंदरता से बाँधा है इन शब्दों में ...
    अती उत्तम रचना ...

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  19. खूबसूरत कविता ...शाम के कुछ पल को अपने ही भीतर समेटे हुए

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  20. srisht, soory. prakarti ka sundar shabdo se dincharya ka bakhan karti ant me ek udasi ki taraf prasthaan karte manas man ki vanchana.

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  21. कोमल अहसास...शाम के सिंदूरी रंग से रंगे हुए..

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  22. बहुत सुन्दर और संवेदनशील रचना...

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  23. वाणी जी वटवृक्ष पत्रिका के माध्यम से आपको पढ़ने का मौका मिला ...बहुत अच्छा लगा अब आना होता रहेगा ...

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  24. आपकी ये पोस्ट आज के ब्लॉग बुलेटिन में शामिल की गयी है.... धन्यवाद.... एक गणित के खिलाड़ी के साथ आज की बुलेटिन....

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  25. " दिवस का अवसान समीप था गगन था कुछ लोहित हो चला ।
    तरु शिखा पर थी अवराजती कमलिनी कुल वल्लभ की प्रभा ।"
    हरिऔध

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