गुरुवार, 7 जून 2012

मृगतृष्णा .....शब्दों की चाक़ पर ढाले कुछ शब्द



मृगतृष्णा

तपते मरुस्थल में
रेत के फैले समंदर पर
प्यासे पथिक को
मृगतृष्णा  भरमाती है
शहरों में
कोलतार सनी सड़कें भी
भरी दुपहरी में
भ्रम का संसार रचाती है ...
प्रकृति का कोई खेल या भ्रम
यूँ ही नहीं होता ...
प्रकृति रच कर माया
सचेत रहना सिखाती है ...
सीख सके मानव इनसे
जीवन के दुष्कर पथ पर
बच रहना मिथ्या भ्रम से
संदेसा दे जाती हैं!

अनुराग जी की आवाज़ में सुनिए यहाँ  


सनद रहे !


कल्पना के निर्भय लोक में 
पक्षियों सा स्वच्छंद विचरण .
स्वप्न में मन की उड़ान 
कितनी रही बेलगाम .
यथार्थ ने रोका- टोका 
सपनो के आसमान से .
कदम टिकने जमी पर ही है ,
सनद रहे !


काव्य अन्ताक्षरी की महफ़िल  सजायी  है रश्मिप्रभा जी   ने  " शब्दों की चाक़ पर ". हर दिन चाक़ पर चढ़ते हैं कुछ शब्द और  ढलती  हैं दिल और दिमाग की थपकी से  नाजुक कलमों की नोक पर कुछ आशु कवितायेँ !  नई प्रतिभाओं और  पुराने खिलाडियों के साथ मिल कर खेले जाने वाला अनूठा  खेल है , जिसे अपनी आवाज़ के रंग भर और  रोचक बना दिया  अनुराग जी , अभिषेकजी की आवाज़ ने अपनी टीम के साथ मिलकर .  

33 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर वाणी जी...

    अनु

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  2. शब्दों की चाक पर हो
    या चाक पर शब्द
    शब्द तो “गीत मेरे” ही गढ़ेगा

    जो अपने है और नहीं है
    के बीच
    संतुलन धरेगा

    संतोष और असंतोष के बीच
    की खाई को भरेगा

    तो उससे जिंदगी के बीच
    फर्क पड़ेगा।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शब्दों की चाक़ पर गढ़ दिया आपने भी शब्द :)
      आभार !

      हटाएं
  3. चाक का है चक्र
    शब्दों के संग
    एक से बढ़कर एक
    चल रहे हैं संग ...

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  4. चलता चाक कवि का, शब्द गढे हैं जाए
    शब्द शब्द जोड़ के, कविता बनी है आए
    कविता बनी है आए,कवि नौ रस जोड़े
    शब्दों की गागर भर,बीच चौराहे पे फ़ोड़े
    होती रहे हंसी ठट्ठा,होता है गंभीर वाक
    गढ-गढ ढेर लगाता,कवि का चलता चाक

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  5. दोहे छंद में लिखने की तो कुछ और ही बात है , काश हम भी लिख पाते !
    आभार !

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  6. भ्रम का क्रम रह रह कर आता है, बस इतना याद रहे कि कब भ्रम में हैं।

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  7. शब्द गढ़ते हैं हम
    शब्द पढ़ते हैं हम,
    अँधियारा कितना घना हो
    आगे-ही-आगे बढते हैं हम !!

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  8. रश्मि जी का ये प्रयास बहुत अनोखा है ..और आप की प्रस्तुति अति उत्तम...वाणी जी..

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  9. bahut sundar rashmi jee apani kalpana se aur hamare sathi usamen sath dekar ek achchhe srijan ko anjaam de rahe hain.

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  10. प्रकृति माया रचकर प्रतिकूलता में जीना सीकख जाती है। श्रेष्ठ अभिव्यक्ति!!

    सुज्ञ: एक चिट्ठा-चर्चा ऐसी भी… :) में आपकी इस पोस्ट का उल्लेख है।

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  11. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  12. बहुत सुन्दर प्रस्तुति....

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (09-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!

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  14. क्या बात क्या बात क्या बात ..

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  15. ना जाने क्यों ? मुझे तो जीवन के पथिक के अंतर्मन में फैले रेत के समंदर वाली मृगतृष्णाओं का ख्याल आ रहा है !

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  16. ये मृगतृष्णा ही है जो हमें चलायमान रखती है...ये जीवन एक भ्रम ही तो है...

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  17. अति उत्तम प्रस्तुति. और क्या कहूँ.

    शुभकामनायें.

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  18. सुंदर संदेसा ...वाणी जी ...!!
    बहुत सुंदर रचना ...
    शुभकामनायें

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  19. भ्रम से बचे रहें और पैर ज़मीन पर ही रहें .... बहुत अच्छी प्रस्तुति

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