मंगलवार, 25 मई 2010

दोस्त बनकर गले लगाता है वही पीठ पर खंजर भी लगाता है वही....

दोस्त बनकर गले लगाता है वही
पीठ पर खंजर भी लगाता है वही....

वफा की जो रोज़ कसमें खाता है
करवटों संग बदल जाता है वही.....


बंद पलकों में हैं ख्‍वाब जिसके सजे
खुले आम लूट ले जाता है वही.....

तोड़ गया है जो इक रिश्‍ते की गिरह
आह किस अदा से मुस्कुराता है वही....

बेवफाई से उसकी अनजान नहीं हरगिज़
मगर यह रस्म भी तो निभाता है वही ....

मुतमईन ना कैसे हो अंदाज- - गुफ्तगू से
झूठ पर सच का लिबास चढ़ाता है वही ....

लबों पर जिसके उदास मुस्कराहट तक मंजूर नहीं
झूठी सिसकियाँ लेकर जार- ज़ार रुलाता है वही ....

साए में जिसके हमें महफूज़ समझता है ये जहाँ
हर सुकून हमारा दिल से मिटाता भी है वही

मेरे लफ़्ज़ों से शिकायत बहुत है जिसको
अपने गीतों में उन्हें सजाता भी तो है वही ....


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पुनः प्रकाशित



22 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे लफ़्जों से शिकायत बहुत है जिसको
    अपने गीतों में उन्हें सजाता भी तो है वही....



    -वाह!! क्या कहने..बहुत खूब!

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  2. अदा ,महफूज शब्दों के लाये बिना भी यह उत्कृष्ट रचना पूरी हो सकती थी -पढने में व्यवधान आया -खेद है !

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति....तोङ गया जो इक रिश्ते की गिरह
    आह किस अदा से मुस्कराता है वही .......शानदार.............

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  4. वाह !!
    बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्तुति...
    लेकिन कुछ शब्दों को पढ़ने से धक् से होने लगा दिल...हा हा हा ...
    लेकिन बहुत अच्छी लगी कविता....
    तूने पूछा था बीजी हूँ क्या....
    हाँ..थोड़ी सी हो गयी हूँ...

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  5. मेरे लफ़्जों से शिकायत बहुत है जिसको
    अपने गीतों में उन्हें सजाता भी तो है वही....

    वाह ! अच्छी पेशकश ......शानदार प्रस्तुति ..बहुत खूब लाये

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  6. बहुत सुन्दर गज़ल प्रस्तुत करने का आभार.
    ॒ अर्विन्द मिश्रा जी अदा अय्र महफ़ूज़ शब्द अपनी जगह पर ही लिखे गये है और मेरा मत है कि लेखक ने ब्लोगर अदा जी और महफ़ूज़ भाई का नाम भी नही सुना होगा.

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  7. hi.

    मेरे लफ़्जों से शिकायत बहुत है जिसको
    अपने गीतों में उन्हें सजाता भी तो है वही....

    Sundar Gazal...

    Deepak..

    Please do visit my blog..
    and meet "WO BHOLI SI LADKI"..

    www.deepakjyoti.blogspot.com

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  8. सारे दोस्त खंजर नहीं चलाते हैं ,कुछ तो दोस्त के लिए खंजर का वार खुद के ऊपर झेल लेते हैं और दोस्त को खरोंच भी नहीं आने देते हैं /

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  9. सबकुछ वही तो करता है, सबकुछ वही बन जाता है....एक पहचान, एक गहरी सोच.. सबकुछ दे जाता है वो

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  10. तोड़ गया है जो एक रिश्ते की गिरह....बहुत दर्द बयां किया इस ग़ज़ल में....किसी की कही ये पंक्तियाँ याद आगयीं---

    जिंदगी में दोस्तों को आजमाते जाइये.
    दुश्मनों से प्यार हो जायेगा...

    खूबसूरत ग़ज़ल..

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  11. मेरे लफ़्जों से शिकायत बहुत है जिसको
    अपने गीतों में उन्हें सजाता भी तो है वही....
    क्या बात कह दी...बड़ी सुघड़ता से पिरोया है, शब्दों को..ग़ज़ल में....बहुत खूब

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  12. @ अरविन्द जी
    लगता है शायरा से लफ़्ज़ों की आजादी छीन लेंगे आप ! इतना काशस कर दीजियेगा तो ...शेर मुकम्मल भी ना हो पायेंगे :)

    @ वाणी जी
    ख्याल बढ़िया है पर बेहतर हो अगर आप किसी अच्छे शायर / कवि से सुझाव भी ले सकें !

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  13. "बंद पलकों में हैं ख्‍वाब जिसके सजे
    खुले आम लूट ले जाता है वही....."

    BAHUT BADHIYA JI....

    kunwar ji,

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  14. दिल टूटता हैं तो ...
    आवाज कहा आती हैं दोस्त..
    तमाम अरमानो की चिता और
    अश्को की बारात सजा करती हैं.

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  15. अरे! वाह.... दी..... बहुत सुंदर रचना लिखी है आपने.....

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  16. अच्छी कविता है.........यदि ग़ज़ल कहूँगा तो कुछ खटका लगेगा......

    अच्छे भावों को अच्छे तरह से गूंथा है आपने.......

    यह तो खास है........
    वफा की जो रोज़ कसमें खाता है

    करवटों संग बदल जाता है वही.....
    और ये तो कमाल की पंक्तियाँ हैं..........वाह वाह.......
    तोड़ गया है जो इक रिश्‍ते की गिरह
    आह किस अदा से मुस्‍कुराता है वही....
    यह तो कत्तई कम नहीं है........

    मुतमईन ना कैसे हो अंदाज- ए - गुफ्तगू से
    झूठ पर सच का लिबास चढ़ाता है वही ....

    बहुत ही बढ़िया,,,,,,,,,,,,,!

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  17. दिल को छू रही है यह कविता .......... सत्य की बेहद करीब है ..........

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  18. vani ji.....
    मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
    क्या गरीब अब अपनी बेटी की शादी कर पायेगा ....!
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_6458.html
    आप अपनी अनमोल प्रतिक्रियाओं से  प्रोत्‍साहित कर हौसला बढाईयेगा
    सादर ।

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  19. बंद पलकों में हैं ख्‍वाब जिसके सजे
    खुले आम लूट ले जाता है वही.....
    वाह क्या बात है
    बहुत खूबसूरत

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