शनिवार, 8 मई 2010

मैं और क्या कर सकती हूँ मां ....





माँ ...
मैं झूठ नहीं बोलती
सच ही कहती हूँ
जब देखती हूँ तुम्हारी आँखों में
तुम्हारे चेहरे को
तुम कही नजर नहीं आती मुझे
नजर आता है
सिर्फ
पिता का चेहरा ...

तुम्हारी सूनी मांग
सूना ललाट
बुझी वीरान आँखें
उदास मुस्कराहट
इन सबमे
नजर आता है मुझे
सिर्फ पिता का चेहरा ....

देखती रही तुम्हे ताउम्र
थर -थर कांपते
पिता से
पिता के पिता से
पिता के पुत्र से
मगर तब भी
तुम्हारे चेहरे पर
ऐसा रूखापन
कभी नहीं पाया ...

कई बार सोचती हूँ
क्या यह थी
पिता के होने
और उनके कमाए
धन की ही माया ....
गहन उदासी के
क्षणों में भी
तुम्हारे चेहरे पर
नहीं रही कभी
ग़मों की छाया ....

पिता के जाते ही
जैसे - जैसे कम होता गया
उनका संचित धन
उसी शीघ्रता से कम हुई
तुम्हारे चेहरे की रौनक
तुम्हरे चेहरे पर
कितनी जल्दी
उतर आया बुढ़ापा ....

मगर ...
आज कल
जब भी निहारती हूँ
पिता की तस्वीर
रुंधे गले
आंसू भरी
धुंधलाई आँखों में
तस्वीर भी धुंधला जाती है
तुम उसमे से झाँकने लगती हो मां ...
और मैं
घबरा कर
आँखें बंद कर लेती हूँ ....

मैं और क्या कर सकती हूँ मां ....




चित्र गूगल से साभार .....


30 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द, ........और माँ और माँ के जीने के ढंग को शब्द शब्द में उतारा है,
    एक माँ क्या नहीं सह जाती है, क्या नहीं बन जाती है .......
    मैं भी मौन हूँ तुम्हारे साथ

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  2. बहुत ही झकझोर देने वाली रचना ! आपकी व्यथा ने मुझे भी अंदर तक भिगो दिया ! निशब्द एवं स्तब्ध हूँ मैं भी अतीत की ऐसी ही मिलती जुलती यादों में ! अति सुन्दर !

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  3. saty, maarmik, gahan aur sahi chitran...
    matri diwas ke uplaksh mein atyant sundar kavita..
    aabhaar...

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  4. माफ कीजिए, चित्र नहीं जमा।
    इसलिए और कि इस रचना की बहुआयामी, अनके परतों वाली सम्वेदना से मेल नहीं खाता।
    बस इतना कहूँगा कि कोई धर्मवीर भारती इसे पढ़ता तो कनुप्रिया या अन्धा युग सरीखा काव्यखण्ड रच देता जिसमें मिथकीय नहीं आधुनिक कथा होती - घर घर की कहानी, जाने कितने परतों को समेटती, उघारती। 'तुम्हारी सूनी माँग ..... सिर्फ पिता का चेहरा' तो अद्भुत बन पड़ा है।
    कभी कभी लगता है कि हम ब्लॉगर त्वरा में कितनी ही कालजयी रचनाओं की सम्भावनाओं से टकराते हैं , अभिव्यक्त करते हैं और भूल जाते हैं। ब्लॉग माध्यम का यह एक दोष है।

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  5. मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ peeda khol kar rakhi hai aapne...

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  6. सुन्दर प्रस्तुति ...चित्र वाली बात पर गिरिजेश जी से सहमति ..हो सके तो चित्र बदलिये !

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  7. सुंदर कविता...मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

    http://athaah.blogspot.com/2010/05/blog-post_08.html

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  8. इस रचना पर चित्र कहाँ है?????????

    वो तो ब्लॉग का चित्र है.....

    रचना एक सत्य को उजागर करती हुई...बहुत मार्मिक....जब जब माँ का चेहरा देखा तब पिता की तस्वीर दिखाई दी....और जब पिता की तस्वीर देखि तो माँ कचेहर दिखा....ये भाव बहुत खूबसूरत हैं...

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  9. रुला ही दिया आपने तो,बहुत ही सुन्दर कविता है,मातृ दिवस की शुभकामना!

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  10. बहुत संवेदन-शील ,एक बेटी खूब समझती है माँ के दिल का दर्द ...वो उमँगों का आसमान तो पिता के दम पर ही था ।

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  11. बहुत ही मार्मिक चित्रण्…………॥

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  12. देखती रही तुम्हें ताउम्र
    थर- थर कांपते
    पिता से
    पिता के पिता से
    पिता के पुत्र से

    वाणी जी मातृत्व दिवस पर उसका मार्मिक रूप इस सच्चाई से पेश करने के लिए आभार .....
    सभी ने इस दिवस पर कवितायेँ लिखी पर आपकी बिल्कुल अलग लगी ....अच्छा लिखती हैं आप ......!!

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  13. marmik kavita. maa ke bahane pitaa ko bhi aapne yaad kiyaa. maa to kendra mey hai hi. sarthak lekhan yahi hai jo sochane par majboor kar de.

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  14. तक़लीफ़देह होने की सीमा तक बढ़िया रचना।

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  15. मेरे जैसे फूहड़ आदमी को भी इमोशनल कर दिया आपने.....

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  16. मार्मिक रचना .....शब्द नहीं बयाँ करने के लिए

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  17. वाणी जी मातृत्व दिवस पर उसका मार्मिक रूप इस सच्चाई से पेश करने के लिए आभार .....

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  18. निशब्द हूँ इस कविता पर!!

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  19. bahut santulit bhaw se ukera hai apne dard ko kagaj ke pannon par .....vaani jee ....

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  20. किसी भी टिप्पणी से परे है यह रचना । सच भी और टीस से भर देने वाली ...प्रत्येक पंक्ति और भाव ।

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  21. रुला देने वाली रचना ...एक सत्य को उजागर करती हुई...बहुत मार्मिक....एक बेटी खूब समझती है माँ के दिल का दर्द ...

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