सोमवार, 6 मई 2013

जो होता है वह नजर आ ही जाता है...



जो होता है वह नजर आ ही जाता है
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सूरज अपने प्रकाश का विज्ञापन नहीं देता
चन्द्रमा के पास भी चांदनी का प्रमाणपत्र नहीं होता!

बादल कुछ पल, कुछ घंटे , कुछ दिन  ही
ढक सकते हैं ,रोक सकते हैं
प्रकाश को , चांदनी को ...

बादल के छंटते ही नजर आ जाते हैं
अपनी पूर्ण आभा के साथ पूर्ववत!

टिमटिमाते तारे भी कम नहीं जगमगाते
गहन अँधेरे में जुगनू की चमक भी कहाँ छिपती है!

जो होता है वह नजर आ ही जाता है देर -सवेर
बदनियती की परते  उतरते ही ! 
(या मुखौटों के खोल उतरते ही !!)

44 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा आपने, प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता?

    रामराम.

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  2. खुशबू कब और कहाँ छुपी है ।

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  3. सटीक!! और यथार्थ!!
    देर हो सकती है पर सदाकाल अंधेर नहीं रहती!!!

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  4. प्राकृतिक सौन्दर्य नज़र आता है,बर्बादी नज़र आती है ......... पर आदमी का मारा आदमी देखकर भी नहीं देख पाता कुछ ! प्रकृति में भी वही नज़र आता है,जो बिलकुल सामने होता है - अपरोक्ष में कई रहस्य हैं सूरज के चाँद के तारों के पेड़-पौधों के, ..........................

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  5. वाह वाणीजी कितनी प्यारी बात कही है ......आवरण सच्चाई को छिपा नहीं सकते ....फिर आवरण जो भी हो....

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  6. जो होता है ..
    वो नजर आना भी चाहिए !!

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  7. अजी ! ढिठाई भी तो कोई चीज होती है जो उतड़े मुखौटे पर भी मानने को तैयार नहीं होती...

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  8. जो होता है नज़र आ जाता है ......एक न एक दिन सारे मुखौटे उतर ही जाते हैं ..... सुंदर रचना

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  9. बिल्‍कुल सच कहा आपने ... जो होता है वह नज़र आ ही जाता है

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  10. बहुत सुन्दर. आवरण कैसा भी दाल दें , समय के साथ सत्य तो बाहर आ ही आता है.

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  11. सही कहा!
    आज ही हम सोच रहे थे... कि किसी के विचारों का आईना होता है चेहरा! कितना भी कोई छिपाए... चेहरा सच्चाई की झलक दिखा ही देता है...!
    ~सादर!!!

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  12. सच!!!!!

    सच कभी छुपता नहीं......
    सुन्दर सहज रचना..

    अनु

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
    सूचनार्थ...सादर!

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  14. वाह ...क्या सटीक बात कही है.
    एक शेर याद आ रहा है ...पता नहीं किसका है
    सच्चाई छुप नहीं सकती बनावटी उसूलों से
    कि खुशबू आ नहीं सकती कागज़ के फूलों से .

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  15. लाख छुपाओ छुप न सकेगा, राज़ ये इतना गहरा,
    दिल की बात बता देता है असली नकली चेहरा!
    और इस नकली चेहरे की पोल आपने बड़े सुन्दर प्रतीकों के माध्यम से खोली है!!

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  16. सच वो चमकदार शीशा है जो पानी की गहराई में भी चमकता ही रहता है..सुन्दर भाव..

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  17. सच है ! कोई भी आवरण सत्य को हमेशा के लिये छिपा नहीं सकता ! बहुत सुंदर रचना !

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  18. रोशनी भी हो और आँख भी, फिर तो दूध का दूध और पानी का पानी। लेकिन नीर-क्षीर विवेक भी आजकल महंगा हो गया है!

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  19. वाह कितनी सहजता से गहरी बात कही है
    सुंदर रचना
    बधाई






    आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
    http://jyoti-khare.blogspot.in


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  20. बहुत खुबसूरत गीत.... सुंदर प्रस्तुति!!

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  21. वास्तविकता सामने आ कर रहती है !

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  22. सच कहा है ... जो सच है ... सामने आ ही जाता है ... अनेक प्रयत्नों के बावजूद छिपाए नहीं छिपता ...

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  23. मुखौटों में जीने से कोई जिम्मेदारी नहीं बनती...जैसे लोग नकाब लगा के लुटते हैं...काश कि मुखौटे ही सामने आयें...और लोग अपनों के अपना होने का भरम पाले जीते चलें जायें...

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  24. सच कहा वास्तविकता कब तक छुपती है बहुत सुन्दर सन्देश देती हुई प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई

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  25. बहुत सच कहा है.. मुखोटों से सचाई कब तक छुप सकती है..बहुत सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  26. सही बात......सुन्दर कविता........

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें।

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  27. विज्ञापनों की प्रमाण पत्रों की सिर्फ मनुष्यों को छोड़कर और किसी को जरुरत नहीं पड़ती प्रकृति स्वयं प्रमाण है अपने होने का, बेहद सुन्दर लगी रचना ...आभार !

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  28. जहाँ देखें वही मुखौटे ..कहीं भी विश्वास नहीं मिलता !
    बधाई !

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  29. मुखौटे इस लिए हैं कि सच हर किसी को नहीं सुहाता

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  30. एक सवैया याद आया
    सूर्य छिपे अदरी बदरी और चन्द्र छिपे जु अमावस आये .......
    केतुह घूंघट काढ रहे पर चंचल नैन छिपे न छिपाए

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