सोमवार, 19 जुलाई 2010

प्रेम की ही है यह माया




सुहाना मौसम ठंडी बयार
एक सुन्दर छोटी चिड़िया
फुदकती डाली डाली
कभी इस डाली कभी उस डाली

बादशाह था शिकारी
उसपर बहेलिया से यारी
बहेलिया
ने फैलाया जाल
करता इन्तजार, दाना डाल

चिड़िया रानी बड़ी सयानी
दादी
नानी से सुनी थी कहानी
आती
नहीं पास जाल के
भयभीत फिरती दूर गगन में
धीमी
सुस्त होती परवाज़
रहती
थी बहुत ही उदास

चतुर विज्ञ बहेलिया
सुन ओ प्यारी चिडिया
तू अपने पर खोल
स्वतंत्र विचर गगन में
भर ले मुक्त उड़ान
न संशय रख मन में

जागा चिडिया में विश्ववास
धीमे
आई जाल के पास
ची
-ची करती चुगती दाना
साहस
का पहने बाना

गूंजा सुन्दर वन कलरव से
मुग्ध हुआ उस कोलाहल से
बहेलिया भूला जाल समेटना
चिडिया भूली फर- फर उड़ना
वही वन है , वही उपवन
वही चिडिया , वही कलरव

बहेलिया जाल समेट सकता , समेटता नहीं
चिडिया
उड़ सकती , उडती नहीं ...

सुन्दर चिडिया प्यारी चिड़िया
कैसा मधुर हुआ वह गान
भिगोती पंख , फुदकती जी भर
नहीं अब भय , बस स्वतंत्र उड़ान

निर्विकार बादशाह के लबों पर कोमल मुस्कान
मौन
देखता बहेलिया प्रकृति का रखता मान

जीवन का आनंद प्रेम में
प्रेम की ही है यह माया
स्वतंत्र हुआ भय, नफरत से
तब प्रेम में ही समाया ......




चित्र गूगल से साभार ...



41 टिप्‍पणियां:

  1. चक्कर क्या है...?
    बहेलिये भी बदल रहे हैं क्या अब..?
    क्या गज़ब करती हो जी....प्रेम की बातें लिखती हो जी...
    सुन्दर कविता...

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  2. जीवन का आनंद प्रेम में
    प्रेम की ही है यह माया
    स्वतंत्र हुआ भय, नफरत से
    तब प्रेम में ही समाया ......parivartan ka sandesh parivartan ka aagaz bane

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  3. @ @ कल "रावण" देखी ...तभी यह कल्पना मन में जगी ..
    परिवर्तन होगा...उम्मीद का यही सिरा पकड़ रखा है ...!

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  4. गिरिजेश जी की मेल से प्राप्त टिप्पणी ....

    बहुत ही प्रतीकात्मक रचना। बड़ों और बच्चों दोनों के लिए उपयुक्त।
    मुक्त प्रवाह, सरल शब्दावली
    बहुत दिनों के बाद टकसाली कविता पढ़ने को मिली।
    सहजता चकित कर गई।
    आभार।

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  5. बहुत ख़ूबसूरत...खासकर,

    बहेलिया जाल समेत सकता, समेटता नहीं.
    चिड़िया उड़ सकती, उडती नहीं...

    लेकिन कोई "रावण" देख कर भी इतना अच्छा कैसे लिख सकता है??

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  6. बहेलिये का हृदय परिवर्तन, कविता के माध्यम से हो सकता है।

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  7. कविता पर गिरिजेश जी की टिप्पणी से पूर्णतः सहमत !

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  8. only love can bring change to people by heart....like it vry much....

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  9. राजा , बहेलिया सभी बदल गए हैं और चिड़िया का हृदय भी भयमुक्त हुआ...उन्मुक्त विचरण करने को मिला...परिवर्तन शाश्वत नीयम है...और सुखद हो तो क्या बात है....सुन्दर रचना...

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  10. बहेलिये ने जाल नहीं समेटा और चिड़िया नहीं उडी...बस इसी आशा और विश्वास पर कायम है दुनिया....भले ही हज़ारों में एक हो ऐसा बहेलिया....है तो..:)
    सुन्दर कविता

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  11. ऐसा बहेलिया ना सुना ना देखा - अनोखी सोच - काश कुछ और इंसानी प्रजातियाँ भी बहेलिया से सबक लें और बदलने की कोशिश तो करें - चाहें तो क्या नहीं हो सकता?
    इतनी सुंदर, सहज, सरल और प्रेरक रचना के लिए आभार तथा बधाई

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  12. सहज और सरल तरीके से एक कथा जैसी रचना ।

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  13. श्रेष्ठ रचना. बहेलिया अब बहेलिया न रहा.

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  14. शानदार अभिव्यक्ति! नि:संदेह अद्वितीय या कहें अकल्पनीय कल्पना है! तभी तो कहा गया है-जहाँ न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवी! उम्मीद पर दुनिया कायम है! प्यार में परमाणू बम से भी अधिक ताकत है! यदि कुछ पाना या करना है तो अपने मन की बात बोलनी ही होगी! इसलिए बोलेन (लिखें) क्योंकि बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?
    शुभकामनाओं सहित।
    आपका
    -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश
    सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है।
    इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, सरकार या अन्य किसी से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३६६ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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  15. sach bahut hi sundar rachna likhi aur ek sandesh bhi shamil hai isme ,aakhri panktiyaan laazwaab .

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  16. Very beautiful blog with sensitive poems.
    I give full marks for the content and technique.Really a pleasure to watch .
    Pl keep writing.
    Regards,
    dr.bhoopendra
    jeevansandarbh.blogspot.com

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  17. ek bahut hi payara msz diya hai aapne is nazm ke jariye... bahut achhi rachna hai ...gulzar saab ki ek nazm hai ..shiqar hai ..lekin uska ant itna sukhad nahi hai ...

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  18. जीवन का आनंद प्रेम में
    प्रेम की ही है यह माया
    स्वतंत्र हुआ भय, नफरत से
    तब प्रेम में ही समाया ......Ekdam sahi kaha apne..shandar post.खूबसूरत....कभी हमारे 'शब्द-शिखर' पर भी पधारें.

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  19. .
    चिड़िया सयानी है। ....सयानी बने रहने में ही भलाई है। .....वैसे प्रकृति का सम्मान करने वाले वाले बहेलिये कभी नहीं देखे । ...थोडा आश्चर्य है इस बात पर...
    .

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  20. चलिए कोई तो पंचतंत्र का नया कहानी लिखने का साहस किया... आभार!!

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  21. काश कि आपकी आशावादी सोच सही साबित हो।

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  22. जीवन का आनंद प्रेम में
    प्रेम की ही है यह माया
    स्वतंत्र हुआ भय, नफरत से
    तब प्रेम में ही समाया
    बेहतरीन प्रस्‍तुति....

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  23. जीवन का आनंद प्रेम में
    प्रेम की ही है यह माया
    स्वतंत्र हुआ भय, नफरत से
    तब प्रेम में ही समाया
    बहुत सुन्दर रचना है बधाई

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  24. कविता तो अच्छी है मगर एक आकाश कुसुम सरीखी ही ..किसी मुगालते में न रहें -यहाँ जो कांपा लगाये बैठे हैं वे ऐसा कुछ नहीं करेगें -चिड़िया जैसे ही उनके झांसे में आयेगी पंख मरोड़ देगें ! फिर किससे फ़रियाद करेगी बिचारी चिड़िया ?
    सो सावधान ,यहाँ कई कापा लगाए चिड़िया को आ फसने को अगोर रहे हैं ! चिड़ियाएँ इतनी मूर्ख क्यों होती हैं ! या मूर्खता ही चिड़िया बन जा फंसती है जूकियों के काँपे में ...

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  25. आप की रचना 23 जुलाई, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
    http://charchamanch.blogspot.com

    आभार

    अनामिका

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  26. उम्मीद पे तो दुनिया कायम है ... ज़रूर परिवर्तन होगा ... उसीका इंतज़ार है !

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  27. चिड़िया के आपने स्वतंत्रता के नए पहलू देखे हैं....अति सुन्दर ! चिड़िया-शिकारी-स्वतंत्रता......का यह संगमन प्रभावशाली है.

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  28. जीवन का आनंद प्रेम में
    प्रेम की ही है माया
    स्वतंत्र हुआ भय, नफरत से
    तब प्रेम में ही समाया
    बहुत ही सुंदर लाइन.....प्रेम ही लोगों की समझ में अ जाए तो फिर काहे का झगड़ा।
    सुंदर रचना

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  29. प्रेम का जादू चल गया जी...ऐसा ही होता है जब प्रेममय कोई होता है तो सबकुछ बदल जाता है ...सुंदर रचना !

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  30. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  31. कितनी गहरी बात कही आपने....वाह !!!
    बहुत बहुत सुन्दर रचना......

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