बाजी -दर -बाजी
चल रहा है चाल कोई
गोटियाँ बैठाता
इधर से उधर कोई ...
उन्माद का मारा
भय फैलाता
दवा के भ्रम में
दर्द बांटता कोई ....
दर्प में अपने
इंसान को बनाता मोहरा
कठपुतलिया
नचाता कोई ....
कैसे भूल जाता है
उस नियंता को
कि नचा रहा है
अपनी अँगुलियों पर वही ....
ईश्वर , खुदा , जीसस
नहीं मानते होगे
कैसे भूल सकता है
प्रकृति को कोई ...
सुनामी ने कितने डुबोये
उड़ा ले गए कितने तूफ़ान
धरती हिल कर जज्ब कर गयी
कितने ये ना पूछे कोई ...
कब तक खुश होते रहेंगे
बिसाते बिछाने वाले
जान ले कि प्रकृति भी
चल रही चाल कोई
देर -सवेर उसकी जद में
आने वाले सभी
किसी का वक़्त अभी हुआ
किसी का कभी
उस एक नियंता के आगे
टिक सका कब है कोई ...
छोड़ अपनी चिंताएं उस पर
चुन कर सत्य पथ
चल पड़ निडर प्राणी
जो होई सो होई ...
चल रहा है चाल कोई
गोटियाँ बैठाता
इधर से उधर कोई ...
उन्माद का मारा
भय फैलाता
दवा के भ्रम में
दर्द बांटता कोई ....
दर्प में अपने
इंसान को बनाता मोहरा
कठपुतलिया
नचाता कोई ....
कैसे भूल जाता है
उस नियंता को
कि नचा रहा है
अपनी अँगुलियों पर वही ....
ईश्वर , खुदा , जीसस
नहीं मानते होगे
कैसे भूल सकता है
प्रकृति को कोई ...
सुनामी ने कितने डुबोये
उड़ा ले गए कितने तूफ़ान
धरती हिल कर जज्ब कर गयी
कितने ये ना पूछे कोई ...
कब तक खुश होते रहेंगे
बिसाते बिछाने वाले
जान ले कि प्रकृति भी
चल रही चाल कोई
देर -सवेर उसकी जद में
आने वाले सभी
किसी का वक़्त अभी हुआ
किसी का कभी
उस एक नियंता के आगे
टिक सका कब है कोई ...
छोड़ अपनी चिंताएं उस पर
चुन कर सत्य पथ
चल पड़ निडर प्राणी
जो होई सो होई ...
चिंताएं से प्रेरित
इस कविता को पढ़ते हुए जो विचार आये ...सीधे -सीधे लिख दिया ...
चित्र गूगल से साभार ...
इस कविता को पढ़ते हुए जो विचार आये ...सीधे -सीधे लिख दिया ...
चित्र गूगल से साभार ...
इसमें क्या शक हम सभी उसी अनादि अनंत परम पिता परमेश्वर के हाथ की कठपुतली हैं....
जवाब देंहटाएंलेकिन हम इतने अभिमानी हैं कि यही एक बात भूल जाते हैं....
याद दिलाने के लिए आपका आभार...
सुन्दर कविता...
वही गोटिया भी खिलवा रहा है और आपसे इन सुन्दर पंक्तिओं को लिखवा भी रहा है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दरता से विचारों को ढाला है. बधाई.
जवाब देंहटाएंbahut sahi kaha sach me insaan ko kitna ghamand ho gaya hai..ishwar se loha lena chahta hai...par ishwar ki laathi me awaz nahi hoti..
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
उन्माद का मारा
जवाब देंहटाएंभय फैलाता
दवा के भ्रम में
दर्द बांटता कोई ....
और हम उन्मादी हो दर्द ही चुनते जाते हैं
बेहतरीन
sashakt rachana.
जवाब देंहटाएंसर से पाँव तक तलक अद्बुत है। लेकिन फिर भी
जवाब देंहटाएंकब तक खुश होते रहेंगे
बिसाते बिछाने वाले
जान ले कि प्रकृति भी
चल रही चाल कोई
देर -सवेर उसकी जद में
आने वाले सभी
किसी का वक़्त अभी हुआ
किसी का कभी
लेकिन यह कुछ खास है।
vaah kyaa baat hai....subhaanallah....sach kahun to kuchh kah hi nahin paa rahaa main....
जवाब देंहटाएंधत्त.....आप भी ना किस गधे की कविता पर चिंतित हो उठीं.....धत्त......!
जवाब देंहटाएंईश्वर , खुदा , जीसस
जवाब देंहटाएंनहीं मानते होगे
कैसे भूल सकता है
प्रकृति को कोई ...
बस प्रकृति ही सर्वश्रेष्ट है...यही समझना है सबको..बहुत ही सुन्दर रचना..
बहुत सुंदर रचना .....!!
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखती हैं आप ....!!
हरकीरत जी के सुर में हमारा सुर भी शामिल कर लीजिये......!
जवाब देंहटाएंहरकीरत जी के सुर में हमारा सुर भी शामिल कर लीजिये......!
जवाब देंहटाएंbahut hi umda avam sashkt rachna.
जवाब देंहटाएंpoonam
उन्माद का मारा
जवाब देंहटाएंभय फैलाता
दवा के भ्रम में
दर्द बांटता कोई ....
बहुत ही सुन्दर रचना.
आपने तो आज की व्यवस्था को नंगा कर दिया. यही सच है कि बाहुबली बने हुए लोग खुद को खुदा समझ लेते हैं, इंसान को अपनी बिसात के मोहरे और यह भूल जाते हैं कि उनकी सारी कथनी-करनी का लेखा-जोखा कहीं और आँका जा रहा है.
जवाब देंहटाएंआपने स्वयं कह दिया जो विचार मन में आए, उन्हें लिख दिया, इस लिए अब कुछ और नहीं कहूँगा.
बहुत जमाने बाद आ सका हूँ, क्षमाप्रार्थी हूँ.
बहुत सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएं______________
'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करना न भूलें !!
Aap sachme gazabka likhti hain!
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंhttp://athaah.blogspot.com/
एक नियंता...और शेष क्या !
जवाब देंहटाएंहर ढंग से चलती है आपकी कलम !
सुनामी ने कितने डुबोये
जवाब देंहटाएंउड़ा ले गए कितने तूफ़ान
धरती हिल कर जज्ब कर गयी
कितने ये ना पूछे कोई ...
यहाँ हैती में इस प्रकार के ईश्वरीय कहर का मै साक्षी रहा हूँ. जीवन की सारी चालाकिया अर्थहीन ही तो हैं. बहुत सुन्दर रचना... साधुवाद.
बहुत-बहुत सुन्दर भावपूर्ण, अर्थपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
bahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति ! जब ऊपर वाले की खामोश लाठी का वार पड़ता है तभी होश ठिकाने आते हैं ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंवाकई...अर्थपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंमोहरे हैं हम तो-जो होय सो होई !
जवाब देंहटाएं