आभार प्रेम का मनाती कैसे .....
आलेख प्रेम का लिखा हो
बारूद की कलम से
किस्मत के हाथों उसे
बंचवाती कैसे !
तुम ही कहो ...
आभार प्रेम का मनाती कैसे !!
कंटीली पथरीली राहों पर
लहूलुहान कदमों से भी
चल पड़ती साथ
लाशों की नींव ...
बेजुबान आहों की कंक्रीट ..
भय से निर्मित डगर पर
कदम बढाती कैसे !
तुम ही कहो ...
आभार प्रेम का मनाती कैसे !!
मेहनतकश हाथो के छालो से
लहू भरी गुलाबी हथेलिओं को
थाम भी लेती..
बेगुनाह मासूमों के
रक्त सने हाथों में
मेहंदी भरे हाथ
थमाती कैसे !!
तुम ही कहो ...
आभार प्रेम का मनाती कैसे !!
किसी मासूम को कर दिया
अनाथ तुमने...
कभी तुमसे भी छिना था
बचपन किसीने
यह कह देने भर से तो
गुनाह तुम्हारा कम ना होगा
खुदा के घर जवाब
तुम्हे भी तो देना ही होगा
जो भर लाई थी प्रेमाश्रु ...
ह्रदय की अथाह गहराइयों से
खींच कर ...
बेगुनाह आहों से श्रापित ह्रदय पर
अर्ध्य चढाती कैसे !
तुम ही कहो ...
आभार प्रेम का मनाती कैसे !!
बारूद की कलम से
किस्मत के हाथों उसे
बंचवाती कैसे !
तुम ही कहो ...
आभार प्रेम का मनाती कैसे !!
कंटीली पथरीली राहों पर
लहूलुहान कदमों से भी
चल पड़ती साथ
लाशों की नींव ...
बेजुबान आहों की कंक्रीट ..
भय से निर्मित डगर पर
कदम बढाती कैसे !
तुम ही कहो ...
आभार प्रेम का मनाती कैसे !!
मेहनतकश हाथो के छालो से
लहू भरी गुलाबी हथेलिओं को
थाम भी लेती..
बेगुनाह मासूमों के
रक्त सने हाथों में
मेहंदी भरे हाथ
थमाती कैसे !!
तुम ही कहो ...
आभार प्रेम का मनाती कैसे !!
किसी मासूम को कर दिया
अनाथ तुमने...
कभी तुमसे भी छिना था
बचपन किसीने
यह कह देने भर से तो
गुनाह तुम्हारा कम ना होगा
खुदा के घर जवाब
तुम्हे भी तो देना ही होगा
जो भर लाई थी प्रेमाश्रु ...
ह्रदय की अथाह गहराइयों से
खींच कर ...
बेगुनाह आहों से श्रापित ह्रदय पर
अर्ध्य चढाती कैसे !
तुम ही कहो ...
आभार प्रेम का मनाती कैसे !!
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भावपूर्ण मन की संवेदना भरी अभिव्यक्तियाँ -अच्छी लगीं ! व्याकरणीय अल्प त्रुटियों के लिए गिरिजेश जी तो हैं हीँ !
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना!
जवाब देंहटाएंbhavpurna rachna sir...
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
तुम ही कहो ...
जवाब देंहटाएंआभार प्रेम का मनाती कैसे !!
wonderful creation !
बहुत भावपूर्ण मार्मिक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंतुम ही कहो ...
जवाब देंहटाएंआभार प्रेम का मनाती कैसे !!
wonderful creation !
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
गिरिजेश राव जी के मेल से प्राप्त सुझाव ...
जवाब देंहटाएंलाशों की नींव - लाशों की जमीं
की कभी - कि कभी
छिना - छीना
ना होगा - न होगा
ह्रदय - हृदय
श्रापित - शापित
अर्ध्य - अर्घ्य
प्रेम में आभार मनाना कुछ समझ में नहीं आया लेकिन भाव अच्छे उतरे हैं । ...
संवेदनापूर्ण अभिव्यक्ति ! आभार !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंभावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंभावो को खूबसूरती से उकेरा है।
जवाब देंहटाएंkhuda ke ghar jawab tumhen hi dena hoga .... bilkul dena hoga .
जवाब देंहटाएंतुम ही कहो ...
जवाब देंहटाएंआभार प्रेम का मनाती कैसे !!
भावमय करते शब्द ।
बहुत सुंदर प्रेमपूर्ण रचना....लाजवाब।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएं