बुधवार, 9 जुलाई 2014

प्रेम होने में जो है ....


प्रेम होने में जो है , 
शब्दों में कहीं अधिक है !
शब्दों से कहीं अधिक है !!
जरुरी है प्रेम का होना , 
शब्दों के सिवा ही !
शब्दों के सिवा भी !
(एक दिन कविता की यह शाख सूख जायेगी )
प्रेम शब्दों से फिसलकर 
रिश्तों में साकार होगा 
या कि 
पतझड़ के सूखे पातों-सा 
बिखर जाएगा .
होगा यह या वह 
इन शब्दों के परे 
इन शब्दों के इर्द गिर्द ही मगर !!