रविवार, 11 मई 2014

महज़ अपनी आजादी को जीते , करते हैं परिवारों की बाते !


  • मेरे घर में नहीं है 
  • सिर्फ मेरी किताबों से भरी 
  • बड़ी आलमारियां !
  • मेरी आलमारी भरी है 
  • मेरी कुछ ही किताबोँ से  
  • कुछ में सजी है 
  • पति और बच्चों की क़िताबें  भीं !
  • कुछ आलमारियों मे 
  • गृहस्थी के जरुरी सामान  
  • राशन बर्तन भांडे कपड़े लत्ते  
  • कैंची सुई  धागा मशीन भी  !!

  • अतिथियों के  स्वागत सत्कार के साथ 
  • रखती हूँ दाना पानी 
  • चिड़िया, गाय  तो कभी कुत्ते के लिये भी !!
  • कभी किसी भूखे नंगे की गुहार सुन 
  • खाना- कपड़ा  देती हूँ  कुछ उपदेशों के साथ भी !
  • कभी पैसा- अनाज ले जाते हैं ढोल पिटते 
  • आशीषें बांटते लोग भी .... !!
  • अपने बच्चों की किलकारियां -झगडे भी 
  • द्वार पर अनाथ बच्चों की खिलखिलाहट 
  • रिरियाने की मजबूरी भी !

  •  पढ़ने से कुछ अधिक ही 
  • जीती हूँ रिश्तों को !
  • लड़ना , कुढ़ना , हँसना , प्रेम 
  •  नफरत  , उपेक्षा , चिढ़ना 
  • भी जिया है साथ ही .... !!
  • जो  जीती हूँ , 
  • जीते देखती हूँ 
  • वही लिखती भी हूँ !!
  • कभी इसके सिवा भी 
  • जो जीते देखना चाहती हूँ …… !!!
  • कभी कुछ लिखती हूँ जो जीती नहीं 
  • कभी कुछ जीती हूँ जो लिखती नहीं !!!
  •   
  • क्रांति की मोटी  पुस्तकों से सजी 
  • आलमारियों वाले घरों मे 
  • क्रांति के बड़े किस्से पढ़नें वाले 
  • गढ़ते है  झूठे किस्से ! 
  • एसी में बैठे ज़ाम  ढालते 
  • मुर्ग मुसल्लम , पकवानों  की दावत उड़ाते 
  • लिखते हैं शोषित , गरीब , भूखों की बाते! 
  • महज़  अपनी आजादी को जीते 
  • करते हैं परिवारों की बाते !  
  • अक्सर  लिखते हैं , जो जीते नहीं 
  • अक्सर जो जीते हैं  , लिखते नहीं !!
  •   
  • -एक गृहिणी के दिल से,  कुछ अव्यवस्थित विचार , शायद कभी श्रेष्ठ कविता मे भी ढलें !! 
  • आलेख समझो कि  कविता , पढ़ने वाले (पाठक ) की समझ !!