मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

मुझमे मेरा विश्वास...


जीवन  की उबड़ खाबड़ पगडण्डी पर चलते हुए कई बार राह बहुत कठिन हो जाती है ...
पथरीली राहें पैरो को लहू लुहान कर जाती है ... राह के कांटे भी गहरी टीस दे जाते हैं ....
मगर आपका स्वयं  पर विश्वास हो तो राह के कंटीले पंथ ख़ुद आपका रास्ता छोड़ कर खड़े हो जाते हैं....



रूखे सूखे थे होंठ कभी
बिखरे भी हुए रहते थे बाल
विदीर्ण हुआ था ह्रदय कभी 
ना सध पाती थी चाल

ख़त्म होने को लगती थी 
जीवन की हर आस
मगर नही टूटा जो वह  था
मुझमे मेरा विश्वास

अपनों ने फेरी थी नजरें 
गैरों के भी थे व्यंग्य बाण
हर अंगुली उठ जाती थी 
कम करने को आन औ मान

घिरते थे संशय के बादल 
शाम रहती  थी उदास
मगर नही टूटा जो वह  था 
मुझमे मेरा विश्वास

मुश्किल लगती थी हर डगर
 पलकों पर अटके थे मोती
कम होती मुखड़े पर रौनक 
उम्मीदों की बुझती ज्योति

ख़त्म होने को लगता था 
जीवन का यह मधुमास
मगर नही टूटा जो वह था 
मुझमे मेरा विश्वास...


चित्र गूगल से साभार