रविवार, 26 जून 2011

मिलता है इनाम आजकल गुर्ग आशनाई में.....


उर्दू के शब्द सीखते कल यूँ ही कुछ पंक्तियाँ लिख ली ...लिखने के बाद देखा कि क्या इसे ग़ज़ल कहा जा सकता है ...ग़ज़ल सीखने के नियम , कायदे , कानून ....अच्छी कक्षा है मगर पढ़ते सिर चकराने लगा...इतनी बंदिशों में ग़ज़ल!!
अब सीखते तो वक़्त लगेगा या कहा नहीं जा सकता कि तमाम वक़्त में भी शास्त्रीय परम्परा अनुसार ग़ज़ल लिख भी पाए या नहीं ,तब तक इन पंक्तियों को पढ़े और बताएं ...




पशोपेश में थमी थी साँसें उसकी गली से गुजरते
मुश्किल था बच निकलना पासबाने नजर से!

क्या बुरा था जो लिया इलज़ाम बदसलूकी का
हासिल कब क्या हुआ था उसे तोहफगी से!!

मिलते ना शामो- शहर ग़र हमें खबर होती
इज़्तिराब होंगे बहुत पुरसां की नजरंदाजी से!

दोस्त- अहबाब ही तो थे कि निभ गयी गोशानशीं
वरना दस्तंदाजी बहुत होती है कराबतदारी में!!

इख़्तिलात में होती है जो रुसवाई इतनी
मजलिस में रूबरू होते हम भी मगरूरियत में!

जान -ओ -दिल लुटाने वाले मुसलसल रुसवा हुए
मिलता है इनाम आजकल गुर्ग आशनाई में!!


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इख़्तिलात --मेलजोल , परिचय
गुर्ग आशनाई - कपटपूर्णमित्रता
पुरसाँ - खबर लेने वाला
पासबान ---द्वारपाल ,पहरेदार
मुसलसल-- लगातार
गोशानशीं--
अकेलापन
कराबतदारी-- रिश्तेदारी
इज़्तिराब -- बेचैन
तोहफगी --अच्छाई
दस्तंदाजी--हस्तक्षेप