शनिवार, 20 अगस्त 2011

तुम्हारा पिता होना !




 प्रिय 
तुममे में जो मुझे सबसे प्रिय है
वह है
तुम्हारा पिता होना ...

सृष्टि का नियम
माँ के गर्भ में पलना
एक जीवन को
आकार में ढलते देखना
सींचा जिन्हें अपने रक्त से
अपने गर्भ में
जुड़े रहे गर्भनाल से ...
आश्रित रहे माँ की गोद में
ममता का उफान ही
करता काया का विस्तार
उनसे तन और मन का जुड़ जाना
विस्मित करता है
मगर फिर भी
प्राकृतिक ही तो है ...

मगर
गोद में दे दी गयी संतान को
यह बता भर देना कि तुम्हारी है
कितनी पुलक से भर देता है तुम्हे ...
जागते -सोते तुम उसके साथ
उँगलियाँ पकड़कर कर चलाना
पीठ पर सवारी कराना
नन्हे क़दमों की रुनझुन को
मुग्ध निहारते
छिले घुटने झाड़ते
उनकी छोटी सी उपलब्धि से
छलछलाते मोहित नयन
अपनी सीमा से बढ़ कर
हर ख्वाहिश पूरी करने की होड़ ...


सच में
विस्मित करता है मुझे
वह कौन सी अदृश्य डोर है
जो तुम्हे बांधती है
अपनी संतान से ...

मुग्ध नयनों में
दृष्टिगोचर होता है
उन्ही क्षणों में ...
उन मेघों के पीछे
चतुर्दिक दिव्य प्रकाश है
जिसका
वही दिनकर
हम सबका पिता !



चित्र गूगल से साभार !

बुधवार, 17 अगस्त 2011

रचना क्या है .....हुआ स्वप्न का दास !

कविता कम शब्दों में गहरी बात कहने में सक्षम होती है । ये कवि की कोरी कल्पना हो जो शब्दों के सिर चढ़कर अनदेखे , अनचीन्हे मधुरिम काल्पनिक लोक की सैर करा लाये या शब्दों से टपकती क्रूर निर्मम हकीकत , मुझे कवितायेँ बहुत लुभाती हैं .

ब्लॉग दुनिया में प्रवेश करते ही सर्व प्रथम हिमांशुजी और रश्मि प्रभा जी की कविताओं /रचनाओं से परिचय हुआ था , इसलिए कविताओं के लिए कविताकोश के बाद सबसे ज्यादा इन दोनों कवि /कवियत्री का ब्लॉग ही पढ़ा अब तक । बहुत समय पहले इन दोनों से ही अपने ब्लॉग पर इनकी कवितायेँ प्रकाशित करने की अनुमति ले ली थी। बहुत कुछ लिखा या संकलित रह जाता है आजकल करते हुए , कोशिश कर रही हूँ एक- एक कर पोस्ट कर दूं ...

आज हिमांशुजी की कवितायेँ...कविता की कल्पनाशीलता और रचना की उपयोगिता , दोनों अलग भाव है इन कविताओं में !

“रचना क्या है, इसे समझने बैठ गया मतवाला मन
कैसे रच देता है कोई, रचना का उर्जस्वित तन ।

लगा सोचने क्या यह रचना, किसी हृदय की वाणी है,
अथवा प्रेम-तत्व से निकली जन-जन की कल्याणी है,
क्या रचना आक्रोश मात्र के अतल रोष का प्रतिफल है
या फिर किसी हारते मन की दृढ़ आशा का सम्बल है ।

’किसी हृदय की वाणी है’रचना, तो उसका स्वागत है
’जन-जन की कल्याणी है’ रचना, तो उसका स्वागत है
रचना को मैं रोष शब्द का विषय बनाना नहीं चाहता
’दृढ़ आशा का सम्बल है’ रचना तो उसका स्वागत है ।

’झुकी पेशियाँ, डूबा चेहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
’मानवता पर छाया कुहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
विषय बनाना हो तो लाओ हृदय सूर्य की भाव रश्मियाँ
’दिन पर अंधेरे का पहरा’ ये रचना का विषय नहीं है ।

रचना की एक देंह रचो जब कर दो अपना भाव समर्पण
उसके हेतु समर्पित कर दो, ज्ञान और अनुभव का कण-कण
तब जो रचना देंह बनेगी, वह पवित्र सुन्दर होगी
पावनता बरसायेगी रचना प्रतिपल क्षण-क्षण, प्रतिक्षण ।

---------------------------------------------------

मैं हुआ स्वप्न का दास मुझे सपने दिखला दो प्यारे ।
बस सपनों की है आस मुझे सपने दिखला दो प्यारे ॥

तुमसे मिलन स्वप्न ही था, था स्वप्न तुम्हारा आलिंगन
जब हृदय कंपा था देख तुम्हें, वह स्वप्नों का ही था कंपन,
मैं भूल गया था जग संसृति
बस प्रीति नियति थी, नियति प्रीति
मन में होता था रास, मुझे सपने दिखला दो प्यारे ।

सपनों में ही व्यक्त तेरे सम्मुख था मेरा उर अधीर
वह सपना ही था फूट पडी थी जब मेरे अन्तर की पीर,
तब तेरा ही एक सम्बल था
इस आशा का अतुलित बल था
कि तुम हो मेरे पास , मुझे सपने दिखला दो प्यारे ।

सोचा था होंगे सत्य स्वप्न, यह चिंतन भी अब स्वप्न हुआ
सपनों के मेरे विशद ग्रंथ में एक पृष्ठ और संलग्न हुआ ,
मैं अब भी स्वप्न संजोता हूँ
इनमें ही हंसता रोता हूँ
सपने ही मेरी श्वांस, मुझे सपने दिखला दो प्यारे ।

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

तू बतला दे मेरे चंदा ....




लाता है सन्देश पिया का ,
उस तक भी पहुंचाता होगा
तू बतला दे मेरे चंदा ,
पी तुझसे तो बतियाता होगा ...

करवट बदलूँ जब रातों में
वो भी नींद गंवाता होगा
जी भर कर जब देखूं तुझको
वो भी नैन मिलाता होगा ...

मद्धम तेरी चांदनी हुई आज
प्रिय छत पर आता ही होगा
अवगुंठन जब खोले सजनी
तू बादल में छिप जाता होगा ...

शीतल चांदनी अंग जलाये
दाह से वो जल जाता होगा
याद उसे जब वो लम्हे आये
लाज से वो शरमाता होगा ...


पलकें मेरी भीगी -सी हैं
वो भी नीर बहाता होगा
फूलों- सी शबनम की चादर
ओढ़ सुबह सो जाता होगा ...


मीठे गीतों की स्वर लहरी
बंसी धुन वो बजाता होगा
तेरे जाने की आहट सुन
अब वो भी घर को आता होगा ...
................................

रविवार, 7 अगस्त 2011

जिंदगी का गणित ऐसा ही है !




बदलते मौसम पर
हैरान क्यों हो !!

नदी का पानी
सोख लेती है कड़ी धूप
बन जाते हैं बादल
बादल घुटेंगे तो
फटेंगे ही ...

प्यार , नफरत ,
ख़ुशी और भय
लौटा देती है
द्विगुणित कर ...
इसका गणित ऐसा ही है !

सरल ,अबोध ,
मासूम,नादान
फिर भी अगम्य ...
इसी का तो नाम है
जिंदगी !

------------------------------------------------------------------
एहतियात जरुरी है 
बोलने -बतियाने में 
लौटा देती है वही 
अनुपात में कुछ अधिक 
तो हैरान क्यूँ।

बताया तो था 
उसने अपना नाम 
जिंदगी!
---------------------------------
मुंह मोड़ कर
हाथ छुड़ा कर
पीठ फेर ली
और चलते गये
नाक की सीध में
भूल गये थे कैसे...
दुनिया गोल है !


शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

जा कर दिया आजाद तुझे ....


जा कर दिया आजाद तुझे मैंने दिल की गहराईओं से

ना माने तो पूछ लेना अपनी ही तन्हाईओं से ...

बादे सबा नहीं लाएगी अब को पैगाम बार
ना करना कोई सवाल आती जाती पुरवाईयों से ...

पीछे छोड़ आये कबकी वो दरोदीवार माजी की
चढ़ने लगे थे रंग जिनपर ज़माने की रुसवाइयों से ...

नजरें चुराए फिरते थे जिन गलियों चौबारों में
अच्छा नहीं था बचते रहना अपनी ही परछाईओं से...

टीसते थे इस कदर जख्म गहरे बेवफ़ाईओं के
भरते नहीं अब किसी बावफा की लुनाईओं से ...



ज्ञानवाणी से प्रकाशित....