मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

प्रेम में सब जायज़ है ....

रोज एक झूठ
कितने बहाने
विजयी मुस्कान
असत्य के हिंडोले में
झूलते कई बार
तड से ताड़ लेती हैं
आँखें मन की
मन की बातें !
दन से मुस्कुरा देती है...
इस अमृतमयी मुस्कान को ही तो
पिया जाता है हर रोज
गरल असत्य का ...

बुद्धू बनाया!
बुद्धू कही का!
दो चेहरे
आमने -सामने
मुस्कुराते हैं
एक दूसरे के लिए ही!
हर असत्य से बढ़कर
सत्य यही है ...

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

लिख देने भर से कुछ होता है/नहीं है ....




कभी कभी खयाल आता है
लिख देने से भला क्या होता है
लिखते तो हो तुम रोज अख़बारों में
धन्ना सेठों की बड़ी गाड़ियाँ
जहाँ रूकती हैं देर रात गये
उसी फलानी रोड पर रेड लाईट एरिया है !
उस नुक्कड़ के पान की दूकान पर नशे के सौदागर ...
उसे जला दिया दहेज़ के लोभी ससुराल वालों ने
या हो गयी बहू चम्पत सारे गहने रूपये समेट कर..

छोटे मासूम बच्चे को बहला फुसला ले गया कोई
किसी फ़कीर की खोली से मिला वही डरा सहमा -सा .
इबादत/ पूजा के पवित्र स्थल के अंडर ग्राउंड में
गुरु चेले पकडे गये आपत्तिजनक अवस्था में ...
पत्नी को लिवा लेने जाने वाला पुरुष
मृत मिला ससुराल की चौखट पर ...
एक स्त्री जिन्दा या मुर्दा झोंक दी गयी
जब तक अस्थियों की वकालत ना मिले
उसे जिन्दा /मुर्दा कैसे माने...
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ना लिख दे जब तक !

पकडे गये घोटालों / कालाबाजारी/ सट्टे के अपराधी
निचले स्तर के चोरों /आम इंसानों के लिए
नरक से बदतर जिंदगी है जहाँ
पकड़े जाते हैं कुछ ऊँचे रसूख वाले
उनके लिए जेल भी घर -सा ही होता है !

और ऐसी ही अनगिनत घटनाएँ भी
जिनको पढना सिर्फ पढना नहीं होता
बारहा उस भयानक दर्द से गुजरना होता है !

लिख देने से क्या बदल जाता है यह सब ...
नहीं ना ....

तभी तो कभी- कभी ख्याल आता है
आखिर लिख देने भर से क्या होता है !!

मगर तुम ही तो हो ,जो कहते हो
लिखने से बहुत कुछ होता है !
लिखने से जिन्दा मुर्दा साबित किये जा सकते हैं
मुर्दा दिलों में हरकत की जा सकती है
लिख कर ही तो बांटे जाते हैं चरित्र के प्रमाणपत्र
लिख कर ही किया जाता है साबित सच का झूठ
लिख कर ही तो किया जाता है लिखने वाले पर तंज
लिखने से ही तो सब होता है ...
फर्क इतना है, लिखते सब अपनी सुविधा से हैं ...
श्रम कानून पर लिखने वाले बच निकलते हैं
दुराचार की ख़बरों से...
नारी के आंसूंओं पर पिघलने वाले मुंह फेर लेते हैं
प्रताड़ित पुरुषों की समस्या से ...
विदेशी कुसंस्कारों की पड़ताल करने वाले
स्वदेशियों के अमर्यादित आचरण पर पर्दा डाल देते हैं ...
लिखते सब है ,बस अपनी -अपनी सुविधा से !

तुम्हे ही तो विश्वास है
लिखने से सब होता है ....
तुम्हारे इसी विश्वास को कायम रखने वाले ही
कुछ और लोंग लिखते हैं तुमसे अलग ...
जो तुम्हे नजर नहीं आता , वे देख पाते हैं !!
उन्होंने सोचा होता है वैसा
जलप्रलय के बाद पर्वत- शिखर पर
बैठ कर मनु के ही जैसा ...
जैसे वह बच्चा निकल पड़ा था
बरसात से बचने के लिए छतरी लेकर
ईश्वर के आगे कड़ी धूप में
प्रार्थना करते लोगों के बीच ...
ज्वालामुखी के लावे की आंच पर
तपे हुए ये लोंग लिखते हैं
फूल, चाँद, तारों पर कवितायेँ ....
दृढ विश्वास, आस्था, शक्ति के प्रवचन ,
गहन निराशा में भी आशा के प्रतीक
अन्धकार में प्रकाश के दिग्दर्शक !!
ये वही लोंग हैं जो गाते हैं
युद्ध में प्रेम के गीत ...
इस सच्चाई से रूबरू हैं ...
प्रेम की आवशयकता अधिक है
युद्ध के दिनों में ही ...
वही सुनाते हैं तुम्हे
मौत के जलसे में जीवन के गीत ...
जब लड़कर थककर घर आयेंगे
किसी दिन वे लोंग
किसी दिन जीत कर तो
किसी दिन हार कर भी ...
लौट कर आना होगा
इन्ही के पास
जैसे अंगुलिमाल , आम्रपाली
या अशोक लौटे थे एक दिन ...
नवजीवन संचार के यही गीत
हर नए दिन की आस जगायेंगे
तब ही कर पाएंगे फिर से
एक नए दिन की शुरुआत ...
वरना गहन अँधेरे में डूबकर सिसकते -घिसटते
मार दिए जायेंगे अपने ही अंधेरों के हाथों ...

इसलिए मेरे दोस्त
जब तुम्हे है विश्वास
तुम्हारे लिखने से कुछ होता है
तो दूसरों के लिखने से भी कुछ होता है जरूर !

इसलिए ही आज भी सार्थक है
सिद्धार्थ का बुद्धत्व !
अंधे सूरदास का वात्सल्य !
कबीर की वाणी के संग
बुल्ले शाह का अशरीरी प्रेम !
रहीम , रसखान, मीरा के गीत !
बिहारी के दोहे और कान्हा की प्रीत !