कभी कभी खयाल आता है
लिख देने से भला क्या होता है
लिखते तो हो तुम रोज अख़बारों में
धन्ना सेठों की बड़ी गाड़ियाँ
जहाँ रूकती हैं देर रात गये
उसी फलानी रोड पर रेड लाईट एरिया है !
उस नुक्कड़ के पान की दूकान पर नशे के सौदागर ...
उसे जला दिया दहेज़ के लोभी ससुराल वालों ने
या हो गयी बहू चम्पत सारे गहने रूपये समेट कर..
छोटे मासूम बच्चे को बहला फुसला ले गया कोई
किसी फ़कीर की खोली से मिला वही डरा सहमा -सा .
इबादत/ पूजा के पवित्र स्थल के अंडर ग्राउंड में
गुरु चेले पकडे गये आपत्तिजनक अवस्था में ...
पत्नी को लिवा लेने जाने वाला पुरुष
मृत मिला ससुराल की चौखट पर ...
एक स्त्री जिन्दा या मुर्दा झोंक दी गयी
जब तक अस्थियों की वकालत ना मिले
उसे जिन्दा /मुर्दा कैसे माने...
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ना लिख दे जब तक !
पकडे गये घोटालों / कालाबाजारी/ सट्टे के अपराधी
निचले स्तर के चोरों /आम इंसानों के लिए
नरक से बदतर जिंदगी है जहाँ
पकड़े जाते हैं कुछ ऊँचे रसूख वाले
उनके लिए जेल भी घर -सा ही होता है !
और ऐसी ही अनगिनत घटनाएँ भी
जिनको पढना सिर्फ पढना नहीं होता
बारहा उस भयानक दर्द से गुजरना होता है !
लिख देने से क्या बदल जाता है यह सब ...
नहीं ना ....
तभी तो कभी- कभी ख्याल आता है
आखिर लिख देने भर से क्या होता है !!
मगर तुम ही तो हो ,जो कहते हो
लिखने से बहुत कुछ होता है !
लिखने से जिन्दा मुर्दा साबित किये जा सकते हैं
मुर्दा दिलों में हरकत की जा सकती है
लिख कर ही तो बांटे जाते हैं चरित्र के प्रमाणपत्र
लिख कर ही किया जाता है साबित सच का झूठ
लिख कर ही तो किया जाता है लिखने वाले पर तंज
लिखने से ही तो सब होता है ...
फर्क इतना है, लिखते सब अपनी सुविधा से हैं ...
श्रम कानून पर लिखने वाले बच निकलते हैं
दुराचार की ख़बरों से...
नारी के आंसूंओं पर पिघलने वाले मुंह फेर लेते हैं
प्रताड़ित पुरुषों की समस्या से ...
विदेशी कुसंस्कारों की पड़ताल करने वाले
स्वदेशियों के अमर्यादित आचरण पर पर्दा डाल देते हैं ...
लिखते सब है ,बस अपनी -अपनी सुविधा से !
तुम्हे ही तो विश्वास है
लिखने से सब होता है ....
तुम्हारे इसी विश्वास को कायम रखने वाले ही
कुछ और लोंग लिखते हैं तुमसे अलग ...
जो तुम्हे नजर नहीं आता , वे देख पाते हैं !!
उन्होंने सोचा होता है वैसा
जलप्रलय के बाद पर्वत- शिखर पर
बैठ कर मनु के ही जैसा ...
जैसे वह बच्चा निकल पड़ा था
बरसात से बचने के लिए छतरी लेकर
ईश्वर के आगे कड़ी धूप में
प्रार्थना करते लोगों के बीच ...
ज्वालामुखी के लावे की आंच पर
तपे हुए ये लोंग लिखते हैं
फूल, चाँद, तारों पर कवितायेँ ....
दृढ विश्वास, आस्था, शक्ति के प्रवचन ,
गहन निराशा में भी आशा के प्रतीक
अन्धकार में प्रकाश के दिग्दर्शक !!
ये वही लोंग हैं जो गाते हैं
युद्ध में प्रेम के गीत ...
इस सच्चाई से रूबरू हैं ...
प्रेम की आवशयकता अधिक है
युद्ध के दिनों में ही ...
वही सुनाते हैं तुम्हे
मौत के जलसे में जीवन के गीत ...
जब लड़कर थककर घर आयेंगे
किसी दिन वे लोंग
किसी दिन जीत कर तो
किसी दिन हार कर भी ...
लौट कर आना होगा
इन्ही के पास
जैसे अंगुलिमाल , आम्रपाली
या अशोक लौटे थे एक दिन ...
नवजीवन संचार के यही गीत
हर नए दिन की आस जगायेंगे
तब ही कर पाएंगे फिर से
एक नए दिन की शुरुआत ...
वरना गहन अँधेरे में डूबकर सिसकते -घिसटते
मार दिए जायेंगे अपने ही अंधेरों के हाथों ...
इसलिए मेरे दोस्त
जब तुम्हे है विश्वास
तुम्हारे लिखने से कुछ होता है
तो दूसरों के लिखने से भी कुछ होता है जरूर !
इसलिए ही आज भी सार्थक है
सिद्धार्थ का बुद्धत्व !
अंधे सूरदास का वात्सल्य !
कबीर की वाणी के संग
बुल्ले शाह का अशरीरी प्रेम !
रहीम , रसखान, मीरा के गीत !
बिहारी के दोहे और कान्हा की प्रीत !
शाश्वत सत्य हर युग मे शाश्वत ही रहता है…………बहुत सुन्दर भाव भरे हैं।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंलिख देना, रंग देना, गढ़ देना कहीं बेहतर है भूल जाने से।
... सुकून से सोने के लिए एक ही सुराख से हवा मिले पर मिले... वैसे ही दुनिया से , मन से , पहचान से करीब होने के लिए लिखना सार्थक है, उसे पढ़ना सार्थक है ... लिखने की सार्थकता हमेशा रही है... वह झूठ हो या सत्य,धर्म हो या अधर्म , पर ज़रूरी है ! इन पंक्तियों में सार है -
जवाब देंहटाएंइसलिए ही आज भी सार्थक है
सिद्धार्थ का बुद्धत्व !
अंधे सूरदास का वात्सल्य !
कबीर की वाणी के संग
बुल्ले शाह का अशरीरी प्रेम !
रहीम , रसखान, मीरा के गीत !
बिहारी के दोहे और कान्हा की प्रीत !
Bahut hi sundar...
जवाब देंहटाएंwww.poeticprakash.com
बहुत गहरे सोचविचार से उपजी पंक्तियाँ... सार्थक अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंantim panktiyaan bahut khoob.
जवाब देंहटाएंआपकी मान्यता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। लेखन की सच्चाई को सच साबित करती एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंइसे पढ़ते हुए मुझे धूमिल बार-बार याद आते रहे।
और अंत में लिखने की महत्ता पर अज्ञेय जी की एक कविता
पहाड़ नहीं कांपता न पेड,
न तटाई
कांपती है ढाल के घर से
नीचे झील पर झरी
दिए की लौ की नन्हीर परछाई
कई आयामों को समग्रता से समेटती रचना अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंवाह क्या भाव हैं कविता के ..बहुत ही सुन्दर ..और सटीक भी.
जवाब देंहटाएंकई आयामो को समेटे एक सुन्दर सच्ची और सटीक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंसच्चाई और सार्थकता को रेखांकित करती सुन्दर कविता !
जवाब देंहटाएंआभार !
शुरू से अंत तक एक प्रवाहमय अभिव्यक्ति .. आभार ।
जवाब देंहटाएंBahtareen prastutee...likhnese kuchh to asar zaroor hota hai!
जवाब देंहटाएंअंत की पंक्तियाँ पूरी कविता की सार्थकता स्वतः स्पष्ट कर देती हैं।
जवाब देंहटाएंसादर
इस कविता ने जहाँ एक ओर एक बड़ा ही ज्वलंत प्रश्न उठाया है, वहीं हमें हमारे मूल की तरफ लौटाया है, बहा ले जाने की कोशिश की है.. वेदों की ऋचाएँ, पवित्र कुरान की आयतें और समबुद्ध ओशो के वचन कोई लिखे नहीं गए.. अवतरित हुए और कहे गए.., लिखने वालों ने बाद में उन्हें लिपिबद्ध किया और वहीं से उपद्रव शुरू हुआ.. जितने लेख उतनी व्याख्या, उतने ही मतभेद...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता!!
लिख देने से वह भाव एक स्थान पा जाता है।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति ..लिख देने से एक उम्मीद तो हो ही जती है ..आखिर
जवाब देंहटाएंकब तक नहीं सुनी जायेगी कलम की आवाज ...कभी ..न कभी तो...चिंतन शील रचना बधाई
sach aur sarthak sacchaayi ki sashakt rachna....
जवाब देंहटाएंहिला दिया इस रचना ने ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें स्वीकार करें !
lagta hai bahut dino baad likha hai aapne ?
जवाब देंहटाएंantim panktiya ek dam kamaal kar gayi....varna me to thak hi gayi thi.:)
इसलिए मेरे दोस्त
जवाब देंहटाएंजब तुम्हे है विश्वास
तुम्हारे लिखने से कुछ होता है
तो दूसरों के लिखने से भी कुछ होता है जरूर !
आपके ख्यालों में सारे ही मुद्दे घूम रहे हैं ... सबसे बड़ी बात कि दूसरों के लिखे को जो लोग निरर्थक समझते हैं उनको सार्थक सन्देश दिया है ..
और जो उदाहरण दिए हैं वो तो गज़ब के हैं
इसलिए ही आज भी सार्थक है
सिद्धार्थ का बुद्धत्व !
अंधे सूरदास का वात्सल्य !
कबीर की वाणी के संग
बुल्ले शाह का अशरीरी प्रेम !
रहीम , रसखान, मीरा के गीत !
बिहारी के दोहे और कान्हा की प्रीत !
स्याही की एक बूँद कई लोगों को विचारमग्न कर सकती है...! लिखने से बहुत कुछ होता है... निश्चित ही!
जवाब देंहटाएंदमदार भावों को दर्शाती कविता,आभार !
जवाब देंहटाएंमल्टीडायमेंन्सल चिंतन.... सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसादर...
वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
शब्द को ब्रह्म कहा जाता है और शब्द हमेशा रहता है। लेखन तो शाश्वत है ही। कोई भी लेखन निरर्थक नहीं है, सभी का समाज पर असर होता है। आपकी रचना यदि पूर्णतया गद्य में होती तो ज्यादा सार्थक लगती।
जवाब देंहटाएंलेखन की सार्थकता कभी भी कम नहीं आंकी जा सकती...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक संदेश देती रचना...
सत्य लिखने भर से ही सत्य नहीं होता ... पर फिर भी उसका कहना जरूरी है .. उसका लिखना जरूरी है सत्य को सार्थक बनाने के लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंएक लम्बी अनिर्णीत लड़ाई है।
जीते नहीं हैं तो हारे भी नहीं हैं।
कभी हारेंगे भी नहीं, इसका सबूत है
सबूत है हमारे पास और दिखेगा सबको
जीत पक्की होने के बाद अवश्य दिखेगा
परंतु तब उसकी आवश्यकता होगी क्या?
सच, लिखने से होता है बहुत कुछ मान गए ..बहुत प्रभावपूर्ण रचना है -मगर लिखने बस लिखने के लिए न हो ईमानदारी लिए हो..कसक लिए हो ....
जवाब देंहटाएंहां सच में, लिखने से क्या होता है और सच में लिखन से बहुत कुछ होता भी है
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।
जवाब देंहटाएंआपकी पवित्र वाणी के गीतों का गुंजन कानों में हो रहा है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक रचना के लिए आभार,वाणी गीत जी.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपके सुवचन मेरा मनोबल बढ़ाते हैं.
बहुत सुन्दर, सार्थक प्रस्तुति, आभार
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें, प्रतीक्षा रहेगी .
सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंsahi n satik bat.
जवाब देंहटाएंसुन्दर ,सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंVah ak behatareen pravishti ke liye abhar
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति,....
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना"काव्यान्जलि".."बेटी और पेड़".. में click करे,.....
लेकिन हम सिर्फ लिख ही सकते हैं :)
जवाब देंहटाएंफेसबुक का शुक्रिया कि एक सार्थक कविता पढ़ने को मिली. "तुम्हारे लिखने से कुछ होता है....तो दूसरों के लिखने से भी कुछ होता है ज़रूर" यह भाव लिखते रहने का प्रेरणा सूत्र बन सकता है...
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