प्रेम भरा रहा भीतर है
जमी बर्फ -सा
पिघल जाएगा अहसास पाकर ही
नदी -सा
सोचा होगा भूल जाएंगे
भूल भी रहे हैं …
मगर, नही भ्रम रहा था सब
आज जब देखा
देखा वह भी ख्वाब में
सीने में भर आया
उबाल -सा
आँखों में उतर आया
दरिया -सा
प्रेम भरा रहा भीतर है
जमी बर्फ सा
पिघल गया अहसास पाकर ही
नदी -सा!!
-----------------------------
बर्फ का होना रिश्तों में
स्वीकारा होगा इस उम्मीद में
पिघलेगी तो तर होंगे एहसास
जज़्बात का समंदर ठाठे मारेगा
प्रेम लहरों सा उछलेगा …
मगर तब तक जाना नहीं होगा
बर्फ पिघलेगी तो
शेष कुछ न रहेगा !!
पिघली बर्फ की ठंडक में
पहले सिकुड़ेगी रुमानियत
धीरे बढ़ता पानी होगा सैलाब
बहा ले जाएगा अहसासों की नरमी
बतकही होंगी सुनामियां
भंवर में डूबेगा रिश्ता !
-----------------------