गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

प्रेम , बर्फ , रिश्ते बदलते ही हैं समय के साथ …


प्रेम  भरा रहा  भीतर है
 जमी बर्फ -सा
पिघल जाएगा  अहसास  पाकर ही
 नदी -सा
सोचा होगा  भूल जाएंगे 
भूल भी रहे  हैं  … 
मगर,  नही भ्रम रहा था सब  
आज जब देखा  
देखा वह भी ख्वाब में
सीने में भर आया 
उबाल -सा
आँखों में उतर आया 
दरिया -सा
प्रेम भरा रहा  भीतर है  
जमी बर्फ सा
पिघल गया  अहसास पाकर ही 
नदी -सा!!
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बर्फ का होना रिश्तों में
स्वीकारा होगा  इस उम्मीद में 
पिघलेगी तो तर होंगे एहसास 
जज़्बात का समंदर ठाठे  मारेगा  
प्रेम  लहरों सा उछलेगा … 
मगर तब तक जाना नहीं होगा  
बर्फ पिघलेगी तो 
शेष कुछ न रहेगा !!
पिघली बर्फ की ठंडक में 
पहले सिकुड़ेगी रुमानियत 
धीरे  बढ़ता पानी होगा सैलाब 
बहा ले जाएगा अहसासों  की नरमी 
बतकही होंगी सुनामियां 
 भंवर में डूबेगा रिश्ता ! 
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