गुरुवार, 30 जनवरी 2014

खामोशियों में है शोर इतना .... .....



चमचमाती फलैश लाईटें 
बना देती हैं चमकदार 
या चमकते ही है शोख -से चेहरे 
अमीरी, नाम , शोहरत  औ  रुतबे से !

चमक होती है डायमंड फेशियल की 
या परत दर परत चढ़े  मेकअप की 
या फिर ढक जाते है 
चेहरों की कालिमा 
मन के स्याह अँधेरे  
दनदनाते चमकते कैमरों में !!

जीवन से भरी नजर आती जिंदगानियां 
खिलखिलाती हैं बेतहाशा 
मंच  पर हाथ हिलाते 
शोर में डूबी रश्क करती 
तमाशबीन -सी नीचे खड़ी जिंदगानियां को 
उतना ही शोर  जिनके जीवन में भी !

कुछ पल के लिए 
महीने के खर्चों के शोर से निजात पाते 
इस शोर में खींचे  चले आते हैं। 
शोर मचाते ही जीते हैं , 
जीते जाते हैं 
मर जाते हैं 
खामोशियाँ इनको नसीब नहीं !!

मगर मंच पर
चमचमाते कैमरों में जगमगाती जिंदगानियां
मंच के पीछे  
ख़ामोशी में ही 
जीती हैं 
जीती जाती हैं 
मर जाती हैं 
शोर इनके नसीब में नहीं !! 



 चित्र गूगल से साभार !आपत्ति होने पर हटा दिया जायेगा !