मंगलवार, 17 जुलाई 2012

अधमुंदी पलकों में मुट्ठी भर ख्वाब ज़रूरी है ....



सागर की वंशज की आँखों में ख्वाब 
भागीरथ की गंगा बन धरती पर आया 
पंछियों से उड़ने का ख्वाब 
राईट बंधुओं की हकीकत बन आया 
चाँद को पा लेने का ख्वाब पला कितनी आँखों में 
मानव चाँद पर भी हो आया 
इन बड़े- बड़े ख़्वाबों के बीच 
छोटे ख्वाब भी होते हैं 
जो किसी गरीब की आँखों में पलते हैं 
दिन भर की मशक्कत के बाद भी 
भूख से कुलबुलाती अंतड़ियों में 
अन्न का एक दाना नहीं तो 
पत्थरों की खुरदरी जमीन पर 
ख्यालों की मसनदें सुनाती है लोरियां 
स्व को बचाए उस आने वाले कल तक 
खुद को जिन्दा रखने के लिए 
सूखी आँखों में ख्वाब ज़रूरी है .... 
उजड़ा चमन , बिखरे पत्ते 
स्याह बियाबान में 
सर्द हवाओं से कंपकंपाते 
अधढके बेजान होते शरीरों में 
कल सुबह सूरज की तपिश का 
ख्वाब ज़रूरी है ...
कडकडाती बिजलियों सी मुश्किलें 
तूफ़ान सी मुसीबते राह राह रोके खड़ी हों 
टूट कर ना बिखर जाएँ शख्सियतें 
ईश्वर के दिए इस जीवन का मान रखते 
चट्टान से अडिग विश्वास के साथ 
अधमुंदी पलकों में 
मुट्ठी भर ख्वाब ज़रूरी है ....

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

प्रेम किस विषय में पढाया जाता ...


राजनीति की चौसर पर बिछती हैं बिसातें 
नैतिकशास्त्र  की बलिवेदी पर 
गृहविज्ञान का समीकरण गड़बड़ाता है 
रिश्तों  का रसायन 
नफा नुकसान के 
गणित में उलझ कर 
स्वार्थपरकता के 
अर्थशास्त्र से परिभाषित हो 
समाजशास्त्र के निर्देशों पर  
देह के भूगोल तक सिमटता है 
तब 
भौतिकी के माप पर खौल कर 
परिमाण और मात्रा में शून्य हो जाता है !
और 
प्रेम इतिहास हो जाता है !
क्योंकि 
प्रेम किसी यूनिवर्सिटी  में नहीं पढाया जा सकता !!
प्रेम मिश्रित अलंकार  अथवा छंदों में 
हिंदी , अंग्रेजी या अन्य किसी भाषा में पूर्णतः व्यक्त नहीं होता .
प्रेम एक अनुभूति है 
जो   बुद्धि   से टकराकर 
हृदय की मौन वाणी में 
एक ह्रदय से दूसरे ह्रदय के बीच संचारित 
महज़ हृदय से ही  संपूर्णतः अभिव्यक्त होती है !



नोट --
कविता का शीर्षक जम नहीं रहा ...कोई सुझाव ??