राजनीति की चौसर पर बिछती हैं बिसातें
नैतिकशास्त्र की बलिवेदी पर
गृहविज्ञान का समीकरण गड़बड़ाता है
रिश्तों का रसायन
नफा नुकसान के
गणित में उलझ कर
स्वार्थपरकता के
अर्थशास्त्र से परिभाषित हो
समाजशास्त्र के निर्देशों पर
देह के भूगोल तक सिमटता है
तब
भौतिकी के माप पर खौल कर
परिमाण और मात्रा में शून्य हो जाता है !
और
प्रेम इतिहास हो जाता है !
क्योंकि
प्रेम किसी यूनिवर्सिटी में नहीं पढाया जा सकता !!
प्रेम मिश्रित अलंकार अथवा छंदों में
हिंदी , अंग्रेजी या अन्य किसी भाषा में पूर्णतः व्यक्त नहीं होता .
प्रेम एक अनुभूति है
जो
बुद्धि से टकराकर
हृदय की मौन वाणी में
एक ह्रदय से दूसरे ह्रदय के बीच संचारित
महज़ हृदय से ही संपूर्णतः अभिव्यक्त होती है !
नोट --
कविता का शीर्षक जम नहीं रहा ...कोई सुझाव ??
shandar prastuti
जवाब देंहटाएंप्रेम एक अनुभूति है..सच कहा वाणी जी प्रेम किसी विषय का मोहताज नही...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..,..मेरे विचार से शीर्षक .. "प्रेम कोई विषय नहीं" भी होसकता है..
जवाब देंहटाएंशीर्षक सुझाने का शुक्रिया , सोचा जा सकता है इस पर :)
हटाएंविषयों का जुड़ाव..
जवाब देंहटाएंPREMSHASHTRA ki bakhiya udher di didi aapne..
जवाब देंहटाएंachchha laga!
अर्थशास्त्र से परिभाषित हो
जवाब देंहटाएंसमाजशास्त्र के निर्देशों पर
देह के भूगोल तक सिमटता है
तब
भौतिकी के माप पर खौल कर
परिमाण और मात्रा में शून्य हो जाता है !
कितनी सटीक बात कही है ..... विषयों से परे प्रेम भी शीर्षक हो सकता है
प्रेम तो बस सपनों का सच है
जवाब देंहटाएंदिल से पढ़ते हैं
किसी और से नहीं पढ़ते
न सीखते ही हैं प्रेम ....
यह प्रकृति के कण कण में है
तभी तो सौंदर्य है
प्रेम तो काटा छांटा जा रहा है
या ले रहा है बोनसाई की शक्ल
फ़ैल रहा है कृत्रिम प्रेम
यह वहम हमारा है
प्रेम प्राकृतिक है
कोई गुरु नहीं ....
प्रेम एक नक्षत्र है
ध्रुवतारे सा
हिस्से आना होता है तो आता ही है
पर लाया नहीं जा सकता
कक्षा के हर विषयों के मध्य .... किसी किसी की आँखों में होता है !
प्रेम है तो फिर बहस ही नहीं ........ यानि प्रेम बस एक स्वीकृति है
कविता पर कविता जम गई !
हटाएंविषयों से परे प्रेम ,यह भी जम रहा है:) ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया!
विषय से अछूता रहा प्रेम ...!!
जवाब देंहटाएंसच मे बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ....!!
jaa mera likha ?
जवाब देंहटाएंये कहानी फिर सही ....
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर और सार्थक रचना ....
जवाब देंहटाएं*ढाई अक्षर का संसार* जिसे समुंदर को
स्याही और आकाश को कागज़ बना
बर्णन करने का प्रयास करें तब भी शायद ना
कर सकें फिर किसी एक विषय - वस्तु में क्यों ढूंढें .... ??
वर्णन सही है गलती से बर्णन हो गया है ....
जवाब देंहटाएंप्रेम...प्रेम तो बस हो जाता है और विषयों को औकात बता कर साँसों में समा जाता है..
जवाब देंहटाएंLoveology सबसे जटिल विषय है. इसको समझ पाना थोड़ा मुश्किल है.
जवाब देंहटाएं@ काव्यशास्त्रीय समीक्षा : जहाँ भी उपमान और उपमेय में संबंध का अभेद स्थापित किया जाये वहाँ रूपक अलंकार हो जाता है. लेकिन यहाँ उपमान और उपमेय अलग-अलग 'बिम्ब' भी निर्मित करते चल रहे हैं जो मिलकर एक वास्तविकता का उदघाटन कर रहे हैं. ..... मुझे तो यह पूरा काव्यचित्र 'सांग रूपक' का अच्छा उदाहरण प्रतीत हो रहा है.
जवाब देंहटाएंराजनीति की चौसर/ नैतिकशास्त्र की बलिवेदी/ गृहविज्ञान का समीकरण/ रिश्तों का रसायन/ नफा नुकसान के गणित/ स्वार्थपरकता के अर्थशास्त्र / देह के भूगोल/ आदि ....
@ 'संबंध कारक' के भरपूर उपयोग से उपमानों को आपने शृंखलाबद्ध कर दिया है.... जो अच्छा लग रहा है.
@ वाणी जी, 'प्रेम ही नहीं सभी मनोभाव अनुभूतिपरक हैं.' कुछ संचारी हैं तो कुछ स्थायी हैं. संचारियों की संख्या अधिक है और 'स्थायी' की संख्या कम है.
जवाब देंहटाएं'प्रेम' बहुआयामी है. आत्मीयता का भाव प्रेम है.
नन्हा शिशु 'अपने खुराक के ठिकाने' को बंद आँखों से भी खोज लेता है. 'खिलौने' को छूकर भी खुश होता है. कोमल स्पर्श से स्मिति संभाल नहीं पाता.
उसे देखने वालों में उसके प्रति वात्सल्य का भाव भी प्रेम का रूप ही है. उसके शारीरिक और पहनावे के सौन्दर्य के आधार पर 'प्रेम' (वात्सल्य) कम-ज़्यादा हो सकता है.
'प्रेम' का विषय आध्यात्म से भी जुड़ा है और साहित्य से भी, धर्म से भी और योग से भी, मनोविज्ञान से भी और समाज से भी.. और न जाने कितने ही क्षेत्रों से....यहाँ तक कि रोमांच से भी और जोखिमों से भी.
यह सच है कि प्रेम को पूर्णतः व्यक्त नहीं किया जा सकता.... उसका स्पष्ट कारण है उसके क्षेत्र का अति-विस्तृत होना. उसका विस्तार न केवल विषयों में व्याप्त है अपितु भाषागत सामान्य व्यवहारों में भी निहित है.
कोयल की बोली से प्रेम सर्वग्राह्य है.. लेकिन कौव्वे की बोली से प्रेम समय-विशेष की अपेक्षा लिये है.... 'प्रिय-प्रतीक्षा' का इंडिकेशन कौव्वे की बोली रूप में रूढ़ है... तो 'प्रिय-वियोग' में कोयल की बोली बुरी भी लगती है.
माखनलाल जी की कविता 'कैदी और कोयल' में बंदीगृह में बंद कवि को 'कोयल की कुहुक से शिकायत है... वह उसके प्रेम का आलंबन नहीं.
कविता का शीर्षक जम नहीं रहा ...कोई सुझाव ?? ...................
जवाब देंहटाएं@ जब किसी का नामकरण किया जाता है ... जरूरी नहीं कि दिया गया नाम वस्तु, व्यक्ति या भाव को पूरा अभिव्यक्त करे... फिर भी नाम दिया जाता है.
कविता में तमाम भावों को व्यक्त किया जाता है... कभी-कभी उन्हें 'एक नाम/ एक शीर्षक' देना सरल होता है... तो कभी-कभी बहुत कठिन.
फिर भी कविता की अपनी एक पहचान हो .... इसलिये शीर्षक की खोज पहले तो कविता के शब्द-शरीर में से ही की जाती है.
इस दृष्टि से ......... कविता का उपयुक्त शीर्षक होगा "रिश्तों का रसायन"
गज़ब कर देती हैं आप कभी कभी तो..क्या कविता लिखी है.कमला है बस.
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी का सुझाया शीर्षक बेस्ट लग रहा है.
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जवाब देंहटाएंभावना हैं प्यार बहता है निरंतर
जवाब देंहटाएंप्यार को बाँधना नही
प्यार मे बंधना सीखो
जिसने भी कोशिश कि है
प्यार को बांधने की
प्यार उससे दूर ही रहा है
पर जो बंधा है प्यार मे
प्यार ने उसको सरोबर किया है
प्यार नहीं है कोई वस्तु
प्यार नहीं है कोई जीव
कि हम तुम उसे बाँध सके
भावना हैं प्यार बहता है निरंतर
जिस को भी सरोबर करता है
वो ही इसको समझ सकता है
बाक़ी तो सब रिश्तो मे बंधते है
प्यार मे जो बंधता है
वो भावना और विश्वास मे
बंधता हैhttp://mypoemsmyemotions.blogspot.in/2008/02/blog-post_10.html
अधिकार
जवाब देंहटाएंमैने तो ऐसा कोई अधिकार
कह कर तो
कभी तुम्हें दिया नहीं
की तुम जो कहोगे
मै मानूगी
फिर भी
जब भी तुमने
कुछ भी कहा मैने माना
क्योकी मै मानती हूँ
की तुम्हारा पूरा अधिकार है
मुझ पर
अधिकार की परिभाषा
रिश्तों की भाषा से
अलग होती है
कुछ रिश्ते अधिकार से बनते हैं
और कुछ रिश्तों मे अधिकार होता है
बिना नाम के रिश्तों मे
अधिकार नहीं प्यार होता है
और प्यार के बन्धन
बिना नाम के
एक दूसरे को
बंधते हैं ता उम्र
और इस बन्धन को
जो स्वीकारते है
वह दुनिया मे
अकेले नहीं होते है
पर अलग जरुर होते हैhttp://mypoemsmyemotions.blogspot.in/2007/10/blog-post_23.html
अनूठी कविता..
जवाब देंहटाएंअरे जो शीर्षक लिख दिया वही सबसे बेहतर है..बाक़ी लोग सुझाव दे ही रहे हैं...
जवाब देंहटाएंहम तो शीर्षक से ज्यादा कविता अपनाते हैं..
कविता आपकी बहुत खूबसूरत है...
हम हूँ लिखे थे कभी..
आपके टक्कर की तो नहीं ही है, न ही सन्दर्भ वैसा गूढ़ है...हाँ, लेकिन कुछ सब्जेक्ट्स की याद ज़रूर दिलाती है..जिनको भुलाए-बिसराए एक ज़माना हो गया..
सब्जेक्टिया मिलन..
हमारे प्रेम में इक तो,
ज्योग्राफी का लफड़ा है ।
केमिस्ट्री ठीक है लेकिन,
हिस्ट्री का झगड़ा है ।
लिटरेचर पर बहस नहीं,
सोसिओलोजी का रगडा है ।
हैं हम आर्ट्स के बन्दे,
मैथ समझ नहीं पाते,
बायोलोजी के बंधन में,
वो कॉमर्स क्यूँ बतियाते ।
ह्युमानीटी तुम समझ जाओ,
एथिक्स घर में समझा दो ।
तुम्हें जूलोजी भाती है,
मुझे बोटनी सुहाती है,
बनेगी बात अब कैसे,
इकोनोमिक्स गड़बड़ाती है ।
साइकोलोजी की अगर मानो,
मैनेजमेंट तुम अब कर लो,
अपने घरवालों के,
भेजे में सिविक्स भर दो ।
तुम्हारे घर जब आऊँगी,
सबको बिजिनेस पढ़ाऊँगी,
करुँगी ला की कुछ बातें,
पोलिटिकल साइंस हटाउंगी ।
एन्वैरंमेटल की खातिर,
कम्युनिकेशन खुला होगा,
लोजिकल बातें बस होंगी,
लोजिस्टिक्स भी जुड़ा होगा,
फिलोसोफी के नियम पहले,
उन सबको बताउंगी,
अगर वो फिर भी न माने,
फिजिक्स का थर्ड ला लगाऊँगी ।
गर बात बिगड़ जाए,
एविएशन मैं न लाऊँगी,
अड्मिनिसट्रेशन कड़ा करके,
टूरिज्म फिर अपनाउंगी,
मेडिकल बेसिस पर सबको,
रिटायरमेंट मैं दिलाउंगी ।
बुरा मत मानियेगा, अपनी कविता चेप दी है ..
आपने बहुत ही अच्छी लिखी है कविता, बहुत-बहुत आभार
धन्यवाद..
अदा जी और रचना जी की कविताओं ने मंत्रमुग्ध कर दिया...
जवाब देंहटाएंवाणी जी,
आपके बहाने ही सही छोटी-सी कविगोष्ठी ही हो गई. आनंद आ गया.
प्रेम है ही ऐसा अबूझ विषय...पूरी तरह किसी के पल्ले नहीं पड़ता...
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता..
वाह .. नूतन अंदाज़
जवाब देंहटाएंक्या कहने
कविता का शीर्षक 'ढ़ाई आखर' कैसा रहेगा :)
जवाब देंहटाएंआपने बहुत कठिन मुद्दे पे कविता लिख दी है इसका वास्ता अनुभूतियों से तो है पर इसके वास्ते कोई सुनिश्चित फार्मूला , कोई पक्का सिद्धांत , कोई कारगर नुस्खा नहीं है ! विषयों के बही खाते में यह हो ही नहीं सकता क्योंकि इसको हानि लाभ से कोई लेना देना नहीं !
हटाएंशायद इंसान खुद को पढ़ना सीख ले तो वही प्रेम हो ! अपने अन्दर का आलोक ही उसका रिजल्ट कार्ड है, उसकी सनद है और उसकी यूनिवर्सिटी का दायरा भी ,वो ही गुरु और वो ही चेला प्रेम पंथ का अजब झमेला !
कविता दमदार है पर उसमें उठाये गये मुद्दे पर हमारी समझदारी निस्तेज हुई जाती है !
prem par jitna kahogi kam hi hoga.....yah bhi ek aisi bala hai jo ishwar ki tarah kan-kan me basa hai lekin fir bhi logo k vikaar is par haavi ho jate hain aur apki likhi kavita ki upri panktiyon me aisi shobha paata hai.
जवाब देंहटाएंप्रेम सबसे जटिल विषय है ना ही मुझको ज्ञान
जवाब देंहटाएंशीर्षक रचना का होना चाहिए,"प्रेम और विज्ञान",,,,,,
RECENT POST...: दोहे,,,,
दो में से एक टिप्पणी स्पैम हुई है !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (07-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आभार !
हटाएंबहुत अच्छा !!
जवाब देंहटाएंवाह, शीर्षक के बहाने बहुत कुछ मिला टिप्पणियों में पढने।
जवाब देंहटाएंवाह ! आपने तो आज के सन्दर्भ में प्रेम पर बड़ी गहन शोध कर डाली ! आनंद आ गया ! अंतिम पंक्तियाँ मन को बहुत प्रभावित करती हैं ! बधाई आपको !
जवाब देंहटाएंवाह!वाह!वाह!
जवाब देंहटाएंशीर्षक के लिए पहले आए सुझाव अच्छे हैं फिर भी 'अभिव्यक्ति'के लिए सोचा जा सकता है।
नए अंदाज में लिखी बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर:-)
्प्रेम विषय हो ही नही सकता क्योंकि प्रेम भावना है और भावनाओं का कोई स्कूल नही होता ।
जवाब देंहटाएं" विषय " से जुड़ते सभी विषय |
जवाब देंहटाएंसफल शब्द प्रयोग।
जवाब देंहटाएंहमारे शास्त्र को आपने छोड़ ही दिया। (जीव विज्ञान)
जवाब देंहटाएंप्रेम मानव मन की नैसर्गिक क्षुधा है। प्रेम के लिए किसी प्रकार की संहिता (शास्त्र) का बनाया जाना संभव नहीं है। प्रेम अतर्कपूर्ण है। इसलिए तर्कशास्त्र से इसका छत्तीस का आंकड़ा है। तर्क और प्रेम एक साथ नहीं रह सकते। तर्क प्रेम का निषेध करता है। प्रेम का अनुभव हर जीव का नितांत वैयक्तिक होता है। इसलिए जीव विज्ञानियों के अनुसार कुछ खास हार्मोन इसके लिए उत्तर्दाई है। और एक शे’र
मुहब्बत के लिये कुछ ख़ास दिल मखसूस होते हैं,
यह वह नग़्मा है जो हर साज पे गाया नहीं जाता।
तमाम विषय को साथ लेकर विषय से परे रह कर विषय पे लिखी विशेष कविता ... और उसपे आए इतने विशेष कमेन्ट ... आनद भी विशेष हो गया ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही जबरदस्त चिंतन, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
बहुत बढ़िया विश्लेषण ,साथ में और भी कवितायें और टिप्पणियों में तो आनन्द आ गया खूब रुचि से की हैं सब ने -विषय ही ऐसा है !
जवाब देंहटाएंकाश प्रेम मे भी कोई डिग्री मिलती तो ये कविता पाठ्यक्रम में होता :)
जवाब देंहटाएंप्रेम कोई भाषा नहीं अपितु संवाद है ,कोई विषय नहीं एक एहसास है ।
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