शनिवार, 23 अप्रैल 2011

मौन ....स्वयं एक जवाब !




चपल रसना के लिए
कत्तई मुश्किल नहीं है
धृष्ट से धृष्टतम
सवालों का जवाब
देना इस तरह कि
निर्लज्जता भी
लज्जा से
पानी- पानी हो जाए ...

मगर
मर्यादा
और विश्वास
चुन लेते हैं
कई बार
मौन
और बन जाते हैं
स्वयं एक जवाब

उनके लिए
जो जानते हैं
किसी को
हराने के जूनून से
हर हाल में
बेहतर है
जीतने की सनक ....




सोमवार, 18 अप्रैल 2011

प्रेम क्या इसके सिवा कुछ और भी है !!!

कविता घर -घर की !!

सर दुखता है , दबा दूं ...
भूख लगी है , खाना लगा दूं ...
मैले लिहाफ बदल दूं ...
आँगन बुहार लूं ...
दोस्तों के लिए चाय -नाश्ता बना दूं
रिश्तेदारों को मना लूं ...
बच्चों को नींद से जगा दूं
बिखरी किताबें रैक में लगा दूं ...
महीने का राशन लाना है
बिजली का बिल भर देना ...
कितना बोलती हो
तुम कुछ कहते क्यों नहीं ...

गुलदस्ते में फूल सजा दूं
पौधों को पानी पिला दूं ..
छनका दूं चूड़ी या पायल
संवर लूं कि भा जाऊं ...
चलो कही घूम आयें
मंदिर में दर्शन ही कर आयें ..

हम कितने खुश हैं ...
अभी कितना झगडे थे !

प्रेम क्या इसके सिवा
कुछ और भी है !!!

और
प्रेम यदि इसके सिवा कुछ और भी है ...
मैंने- तुमने जाना नहीं तो
अब शिकायत कैसी
कुसूर किसका !!!



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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

ध्रुवतारा और धरा ...


ध्रुवतारा और धरा
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धरा घूमती है सूर्य के चारो ओर
और अपने अक्ष पर भी
तभी तो मौसम बदलते हैं
दिन- रात होते हैं ...
गुलाबी सर्दियों की गुनगुनी दोपहर
तपती गर्मियों की शीतल शामें
मिट्टी की गंध सावन की फुहारें
बौराया फागुन में महका महुवा
धरती पर इतने मौसम
सिर्फ इसलिए ही संभव है कि
घूमती है धरा अपने अक्ष पर भी
और सूर्य के चारों ओर भी ...

उसकी परिधि से खिंची गयी
समानांतर रेखा सीधी जाती है
ध्रुवतारे के पास ...

ध्रुवतारा जो अडिग अटल है अपनी जगह
उत्तर दिशा में
सभी तारों से अलग
जो घूमते है इसके चारो ओर
चट्टान से उसकी स्थिरता ही
बनाती है उसे सबसे चमकदार
बंधा है वह भी सृष्टि के नियमों से
उस समानांतर रेखा से
जो धरा के दोनों छोरों के मध्य से
सीधी उसके पास आती है....

धरा पर प्रतिपल बदलते
खुशगवार मौसम
के लिए जरुरी है
ध्रुवतारे का स्थिर होना ...

बादलों में छिपा हो
घडी भर को
कि दिख रहा हो निर्बाध
खुले आसमान में
होता ध्रुवतारा अपनी जगह
अटल अडिग स्थिर
उत्तर दिशा में ही
धरा का यह विश्वास
तभी तो
आसमान में छाई घटायें घनघोर हो
मेघ-गर्जन के साथ डराती बिजलियाँ हो
धरा अपने अक्ष पर भी घूमती है
और सूर्य के चारों और भी
कभी शांत -चित्त , कभी लरजती
मगर रुकता नहीं चक्र
धरा के मौसम का
पतझड़ सावन वसंत बहार
दिन और रात का ...
क्योंकि
धरा को है विश्वास
उसकी परिधि की समानांतर रेखा
सीधी जाती है ध्रुवतारे के पास ....

धरा पर हर पल बदलते
खुशगवार मौसम के लिए
जरुरी है
ध्रुवतारे की स्थिरता !