धरा घूमती है सूर्य के चारो ओर
और अपने अक्ष पर भी
तभी तो मौसम बदलते हैं
दिन- रात होते हैं ...
गुलाबी सर्दियों की गुनगुनी दोपहर
तपती गर्मियों की शीतल शामें
मिट्टी की गंध सावन की फुहारें
बौराया फागुन में महका महुवा
धरती पर इतने मौसम
सिर्फ इसलिए ही संभव है कि
घूमती है धरा अपने अक्ष पर भी
और सूर्य के चारों ओर भी ...
उसकी परिधि से खिंची गयी
समानांतर रेखा सीधी जाती है
ध्रुवतारे के पास ...
ध्रुवतारा जो अडिग अटल है अपनी जगह
उत्तर दिशा में
सभी तारों से अलग
जो घूमते है इसके चारो ओर
चट्टान से उसकी स्थिरता ही
बनाती है उसे सबसे चमकदार
बंधा है वह भी सृष्टि के नियमों से
उस समानांतर रेखा से
जो धरा के दोनों छोरों के मध्य से
सीधी उसके पास आती है....
धरा पर प्रतिपल बदलते
खुशगवार मौसम
के लिए जरुरी है
ध्रुवतारे का स्थिर होना ...
बादलों में छिपा हो
घडी भर को
कि दिख रहा हो निर्बाध
खुले आसमान में
होता ध्रुवतारा अपनी जगह
अटल अडिग स्थिर
उत्तर दिशा में ही
धरा का यह विश्वास
तभी तो
आसमान में छाई घटायें घनघोर हो
मेघ-गर्जन के साथ डराती बिजलियाँ हो
धरा अपने अक्ष पर भी घूमती है
और सूर्य के चारों और भी
कभी शांत -चित्त , कभी लरजती
मगर रुकता नहीं चक्र
धरा के मौसम का
पतझड़ सावन वसंत बहार
दिन और रात का ...
क्योंकि
धरा को है विश्वास
उसकी परिधि की समानांतर रेखा
सीधी जाती है ध्रुवतारे के पास ....
धरा पर हर पल बदलते
खुशगवार मौसम के लिए
जरुरी है
ध्रुवतारे की स्थिरता !
और अपने अक्ष पर भी
तभी तो मौसम बदलते हैं
दिन- रात होते हैं ...
गुलाबी सर्दियों की गुनगुनी दोपहर
तपती गर्मियों की शीतल शामें
मिट्टी की गंध सावन की फुहारें
बौराया फागुन में महका महुवा
धरती पर इतने मौसम
सिर्फ इसलिए ही संभव है कि
घूमती है धरा अपने अक्ष पर भी
और सूर्य के चारों ओर भी ...
उसकी परिधि से खिंची गयी
समानांतर रेखा सीधी जाती है
ध्रुवतारे के पास ...
ध्रुवतारा जो अडिग अटल है अपनी जगह
उत्तर दिशा में
सभी तारों से अलग
जो घूमते है इसके चारो ओर
चट्टान से उसकी स्थिरता ही
बनाती है उसे सबसे चमकदार
बंधा है वह भी सृष्टि के नियमों से
उस समानांतर रेखा से
जो धरा के दोनों छोरों के मध्य से
सीधी उसके पास आती है....
धरा पर प्रतिपल बदलते
खुशगवार मौसम
के लिए जरुरी है
ध्रुवतारे का स्थिर होना ...
बादलों में छिपा हो
घडी भर को
कि दिख रहा हो निर्बाध
खुले आसमान में
होता ध्रुवतारा अपनी जगह
अटल अडिग स्थिर
उत्तर दिशा में ही
धरा का यह विश्वास
तभी तो
आसमान में छाई घटायें घनघोर हो
मेघ-गर्जन के साथ डराती बिजलियाँ हो
धरा अपने अक्ष पर भी घूमती है
और सूर्य के चारों और भी
कभी शांत -चित्त , कभी लरजती
मगर रुकता नहीं चक्र
धरा के मौसम का
पतझड़ सावन वसंत बहार
दिन और रात का ...
क्योंकि
धरा को है विश्वास
उसकी परिधि की समानांतर रेखा
सीधी जाती है ध्रुवतारे के पास ....
धरा पर हर पल बदलते
खुशगवार मौसम के लिए
जरुरी है
ध्रुवतारे की स्थिरता !
यकीनन किसी की स्थिरता किसी को गति देती है. बिना स्थिर आधार बिन्दु के गति का आकलन भी तो नहीं हो सकता है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ....
एक कविता यहां http://rajeshakaltara.blogspot.com/पर देखा-
जवाब देंहटाएंपढ़ते-पढ़ते
जब जाना
ध्रुव तारा भी
अटल नहीं
तब से
किसी एक जगह
जम जाना
टलता रहा.
@ क्या संयोग है ..
जवाब देंहटाएंजो मैंने पढ़ा है , एक न एक तारा ध्रुवतारे की तरह स्थिर रहता है ,
जिस ध्रुव तारे से हमारी जान-पहचान सदियों पुरानी है वो अपनी जगह पर अब कुछ हजार साल का ही मेहमान है। उसे अपनी जगह छोड़नी होगी। इसकी जगह लेने आ रहा है आसमान का सबसे चमकदार सितारा वेगा। 16 हजार साल बाद वेगा पृथ्वी का ध्रुवतारा बन जाएगा।...
साभार ..http://sandeep-nigam.blogspot.com/2009/04/blog-post_8247.html
खगोल शास्त्र के माध्यम से स्थिरता , बदलते मौसम को सुरुचिपूर्ण रूप से अभिव्यक्ति मिली है .
जवाब देंहटाएंसूर्य का चक्कर लगाती पृथ्वी से ध्रुवतारा सदैव स्थिर उत्तर में ही कैसे दिखाई देता हैं?
जवाब देंहटाएंअडिगता एवं नित्यता ही इसे ध्रुव तारा बनती है,.......
जवाब देंहटाएंआपकी कविता अपनी जगह दुरुस्त है -ध्रुव तारा भी ध्रुव नहीं है ..आपने खुद लिखा है आज का ध्रुव तारा कल का ध्रुव तारा नहीं होगा ..
जवाब देंहटाएंमगर धरती की नियति ही है किसी भी ध्रुव तारे की प्रदक्षिणा!
वैसे वैज्ञानिक सत्य यह है कि धरती सूर्य की परिक्रमा करती है -और ध्रुव तारे की जगह वह जगह है जहाँ से धरती की सूर्य की प्रदक्षिणा पथ के प्रेक्षण जो घड़ी की उल्टी दिशा में है सटीक तरीके से हो सकता है ..
कोई जरुरी नहीं .की कवि सत्य और वैज्ञानिक सत्य सामान हों !
जो अडिग है, उसे ही सब प्रगति दिखायी पड़ती है।
जवाब देंहटाएंधरा पर हर पल बदलते
जवाब देंहटाएंखुशगवार मौसम के लिए
जरुरी है
ध्रुवतारे की स्थिरता !
...
ठीक उसी तरह , जिस तरह परिवर्तित मान्यताओं के निकट पुराने संस्कारों की अडिगता - ज़रूरी है
विज्ञान की बातों से जीवन को परिभाषित करती कविता..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंरचना पर वैज्ञानिक सोच हावी है.
ध्रुव तारे का स्थिर होना धरा के बदलते मौसमों के लिए जरूरी है?
कवि कुछ भी लिख सकता है.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंध्रुव के केन्द्र में ज्ञान का प्रकाश.
जवाब देंहटाएंइस जग में कहाँ कुछ भी स्थिर है |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रायोगिक कविता |
कविता के माध्यम से जीवन यथार्थ कह दिया……सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंधरा और ध्रुव तारे का संबंध इतना तो है ही की ध्रुव इसी धरती का प्यारा पुत्र था, भक्ति के कारण ही उसे स्थिरता का वरदान मिला ! गति और स्थिरता दोनों जरूरी हैं, इसे दर्शाती सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता जो व्यापक और आवश्यक सन्देश छोडती है।
जवाब देंहटाएंआभार।
bahut sundar abhivykti
जवाब देंहटाएंआज तो भूगोल से दर्शन समझा दिया ..बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएं@सुज्ञ ,
जवाब देंहटाएंधरती अपनी धुरी पर घूमती रहती है तो जहाँ अन्य भू भागों के सापेक्ष आसमान का हिस्सा बदलता हुआ लगता है -इसके उत्तरी ध्रुव का आसमान स्थिर सा लगता है और वहां उपस्थित तारा भी स्थिर लगता है -एक दक्षिणी ध्रुव तारा भी है ! धरती भी चूंकि अपने अक्ष से लम्बे समय में थोडा विचलित होती है अतः जो ध्रुव तारा हम देख रहे हैं वही अतीत में वहां न होकर कोई और था ..और भविष्य में कोई और उसकी जगह लेगा ..
कुछ चीज़ें स्थिर रहकर कुछ चीज़ों को गति प्रदान करते हैं। जीवन दर्शन को निरूपित करती यह रचाना बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंjiwan me kuchh cheezo ka sthir rahna bahut jaruri hai jo dhuri ka kaam karte hain...jiwan ko prilakshit karte hue dhruvtare ka sunder bimb prayog kiya hai.
जवाब देंहटाएंइस रचना के माध्यम से स्थिरता को बहुत महत्त्व दिया गया है ...जीवन को भी मौसम की तरह परिवर्तित होना होता है पर फिर भी जीवन मूल्यों में स्थिरता ज़रूरी है ...गहन रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ध्रुव तारे का वैज्ञानिक तथ्य है की अभी जो ध्रुव हमें दिखा रहा है उसका नाम पोलारिस है इसके आलावा दो अन्य ध्रुव तारों के नाम ड्रेकोनिस और वेगो है जो निश्चित समय के बाद एक दुसरे को प्रतीस्थापित करते है यानि ध्रुव तारे का स्थान अटल है ध्रुव तारा नहीं. लेकिन कविता सुंदर है.
जवाब देंहटाएंआपकी कविता में हमेशा एक नया आयाम दिखता है. विज्ञान के तथ्य जो भी हों.. आपका सन्देश अटल है. विचारणीय.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदरता से अबिव्यक्त हुए हैं भाव!!
aapki rachna ziwan se judi hai ........gahre bhav hain iske .
जवाब देंहटाएंविज्ञान की बातों से जीवन को परिभाषित करती कविता|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंGood.
जवाब देंहटाएंHappy to see a poem with scientific approach.
@ अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंकवि का सत्य बनाम वैज्ञानिक सत्य पर इतना ही कहूँगा कि क्या फर्क पड़ता है कि ध्रुव तारा कौन है अगर कविता की शल्यक्रिया यूंहीं की जाती रही तो लोग कविता लिखना और उसके लिए बिम्ब गढना छोड़ देंगे :)
बंदे , माशूक को फूल गुलाब का या चंद्रमुखी कहना छोड़ देंगे अगर आप लोग इसी तर्ज़ पर वैज्ञानिक सत्य की खोज करते रहे तो :)
कल को कोई आशिक संवेदनाओं / स्वप्नों को पंख लगाने जैसा कुछ लिख बैठे तो आप सब कुछ छोड़ कर पंख के पीछे मत पड़ जाइयेगा :)
@ वाणी जी ,
कवि के जीवन काल में ध्रुव तारे की स्थिति बदलने वाली नहीं है और ना ही ध्रुव तारा खुद भी इसलिए आपने जो बिम्ब गढा है मुझे उचित ही लग रहा है ! कविता में अभिव्यक्त ध्रुव तारे , धरा, मौसम , सूर्य और परिक्रमा पथ वगैरह वगैरह में मुझे हम जैसे इंसान और उनके जीवन के बहुआयाम ही नज़र आ रहे हैं ! मुझे नहीं लगता कि इस कविता को शब्दशः अनूदित किया जाना है ! मै तो बस ब्रम्हांड जीवन और इंसानी जिंदगियों में लयात्मक सातत्य की कल्पना कर रहा हूं !
क्या मैं गलत कर रहा हूं ?
कृपया ब्रम्हांड जीवन को ब्रम्हांडीय जीवन पढ़ें :)
जवाब देंहटाएं@ कवि के जीवन काल में ध्रुव तारे की स्थिति बदलने वाली नहीं है और ना ही ध्रुव तारा खुद भी इसलिए आपने जो बिम्ब गढा है मुझे उचित ही लग रहा है !
जवाब देंहटाएंबिलकुल यही तो ...:)
सुशील बाकलीवाल जी ने भी अपनी टिप्पणी में इसे स्पष्ट किया है ...
जो पंक्तियाँ कविता में नहीं हैं , मगर समझी जा सकती हैं ...
जिस दिन ध्रुवतारे के साथ उसे देखा , इस जीवन का ध्रुव अटल सत्य वही हो गया !
@अली भाई ,
जवाब देंहटाएंमैं जानता हूँ आप पर साहित्यिकता हावी है ....तब तो यह भी सोचना पड़ेगा कि धरती सूर्य ध्रुव किनके उपमान हैं?
और जब अपना सूर्य निकट ही है और ऊष्मा भी कोई कम नहीं तो ध्रुव तक की अहक हो ही क्यों ?
सार्थक सन्देश देती एक उत्कृष्ट रचना।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 12 - 04 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
इतनी सुन्दर कविता को क्यों न हम केवल ध्रुव की मानवीय कथा से जोड़ कर देखें? कवि ने कभी विज्ञान के सापेक्ष लिखा है? अगर लिखेगा, तो फिर ये कोमलता कहां से आयेगी?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है वाणी जी.
बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा आपने.रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachana.....
जवाब देंहटाएंlaajabaab...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएं"धरा पर हर पल बदलते
जवाब देंहटाएंखुशगवार मौसम के लिए
जरुरी है
ध्रुवतारे की स्थिरता !"
वाणी जी ,स्थिरता हर परिवर्तन का साक्षी है.ध्रुवतारा मानों साक्षी बन गया है बदलते मूल्यों .अद्भुत एवं नवीन बिम्ब के सहारे बहुत ही गूढ़ बात को सहज ही व्यक्त कर गई है आपकी रचना.
वाह!विज्ञान और कविता का अनोखा मिलन!
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत गहरीबात कहदी आपने।
जवाब देंहटाएं............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
एच.आई.वी. और एंटीबायोटिक में कौन अधिक खतरनाक?
bahut hi badhiya rachna .
जवाब देंहटाएंsomeone has to anchor himself around which the events may occur and life in disguise of progress is visible. excellent configuration of facts and fiction...
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
जवाब देंहटाएंek baar aur padhne aa gayi kavita bahut sundar vishya par likhi gayi hai ,tippani bhi kafi rochak hai .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसोच को नया आयाम देती है आपकी ये कविता.......!!!!
सुमधुर भावों की मनोहारी प्रस्तुति के लिए अछोर बधाई .
जवाब देंहटाएंhttp://abhinavanugrah.blogspot.com
प्रकृति और विज्ञान को एक साथ जोड़ते हुए दिखाने का एक सफल और खुबसूरत प्रयास |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंपरिवार भी तो कुछ ऐसा ही होता है ... धारा खुशी देती है ... खुश रहती है यदि परिवार अटल रहता है स्थिर रहता है ... सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंलिखी जा चुकी है
जवाब देंहटाएंअद्धभूत सच्ची कहानी