गोद मे उठाये एक मासूम
पल्लू से सटे दो नन्हे
कालिख से पुते चेहरे
उलझे बाल जटाओं जैसे
बढे पेट के भार से झुकी
दुआएं देती हाथ फैलाये
आ खड़ी हुई द्वार पर ....
तरस खा कर कभी दिया
कभी अनदेखा भी किया
देखे अनदेखे में मगर
सोचा है कई बार....
पेट की आग से क्या बडी है
इनके तन की आग...
या कि
शीतलता देती हैं उन्हें
जलती हुई नफरत से भरी
कुछ आँखों की आग!!