मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

तुम्हारे प्रेम में हूँ जिंदगी इन दिनों .....


किनारे झील के 
प्रत्युष  के है सतरंगी उजाले 
तुषारावृत श्रृंग से धीमे -धीमे 
रविकर झुका आता है रीझता 
सीली लजाती धरती  पर 
इन दिनों !

पीले गुलबूटे हरी किनारी 
बीच थरथराये पाटल अधर
प्रेमासिक्त नयन जल 
सिहरती है हौले सरसों 
इन दिनों! 

दिवस के मुखड़े पर 
आरक्त कपोल खिले कचनार 
पायल रुनझुन मंद बयार 
सरकाती घूंघट शोख दुपहरी 
इन दिनों !

छूकर लहर किनारा गुनगुन 
ह्रदय मधुर मुरली सितार  
गगन यवनिका सरकती धीमे 
निशा आँचल जड़े सितारे उतरती 
इन दिनों ! 

नेत्रों में भरकर 
अनिंद्य सुंदरी प्रकृति रूप 
मोहित मधुकर विहग कलरव 
गीत प्रेम के ही रच रहे मधुर   
इन दिनों !

द्रुत-रथ आरोहित समय भी
विस्मृत अपलक   
वसंत लीला स्पंदित हो 
थमा -सा रहने को  व्याकुल है थिरकता  
इन दिनों !

प्रेम विभोर मन ह्रदय तन 
अनहद नाद पुलकित नयन 
अतुलित वैभव भाव अनुभव    
वसंत रूप -लावण्य मेरे लिए ही धरता 
इन दिनों! 

और मैं …
सद्यस्नात सिहरती निरखती 
गुनगुनी धूप - सी बिखरी आँगन
पी रही प्रेम -चषक में जीवन -रस 
आकण्ठ तुम्हारे प्रेम में हूँ जिंदगी 
इन दिनों !!


( अद्भुत है प्रकृति , वसंत , जिंदगी , प्रेम।  जिसने सुना/ महसूसा  प्रकृति का अनहद नाद , प्रेम में डूबा रहा जीवन भर ! )