प्रत्युष के है सतरंगी उजाले
तुषारावृत श्रृंग से धीमे -धीमे
रविकर झुका आता है रीझता
सीली लजाती धरती पर
इन दिनों !
पीले गुलबूटे हरी किनारी
बीच थरथराये पाटल अधर
प्रेमासिक्त नयन जल
सिहरती है हौले सरसों
इन दिनों!
दिवस के मुखड़े पर
आरक्त कपोल खिले कचनार
पायल रुनझुन मंद बयार
सरकाती घूंघट शोख दुपहरी
इन दिनों !
छूकर लहर किनारा गुनगुन
ह्रदय मधुर मुरली सितार
गगन यवनिका सरकती धीमे
निशा आँचल जड़े सितारे उतरती
इन दिनों !
नेत्रों में भरकर
अनिंद्य सुंदरी प्रकृति रूप
मोहित मधुकर विहग कलरव
गीत प्रेम के ही रच रहे मधुर
इन दिनों !
द्रुत-रथ आरोहित समय भी
विस्मृत अपलक
वसंत लीला स्पंदित हो
थमा -सा रहने को व्याकुल है थिरकता
इन दिनों !
प्रेम विभोर मन ह्रदय तन
अनहद नाद पुलकित नयन
अतुलित वैभव भाव अनुभव
वसंत रूप -लावण्य मेरे लिए ही धरता
इन दिनों!
और मैं …
सद्यस्नात सिहरती निरखती
गुनगुनी धूप - सी बिखरी आँगन
पी रही प्रेम -चषक में जीवन -रस
आकण्ठ तुम्हारे प्रेम में हूँ जिंदगी
इन दिनों !!
( अद्भुत है प्रकृति , वसंत , जिंदगी , प्रेम। जिसने सुना/ महसूसा प्रकृति का अनहद नाद , प्रेम में डूबा रहा जीवन भर ! )
प्रकृति के इतने मन-भावन रूप जब विभोर कर दें तो मौसम ही ज़िन्दगी से प्रेम करने का है -धन्य हैं आप !
जवाब देंहटाएंपूरा दृश्य इन दिनों सुबह मेरी खिड़की के फ्रेम में फ्रीज़ हो जाता है। प्रकृति को आज तक माँ ही कहता आया हूँ, पर अब इस गीत के बाद प्रेयसी कहना होगा। ठीक ही कहा है
जवाब देंहटाएंकब तेरे हुस्न से इंकार किया है मैंने
ज़िन्दगी तुझसे बहुत प्यार किया है मैंने।
प्रकृति के मनमोहक दृश्यों को बहुत सुंदर शब्दों में उकेरा है आपने बहुत सुंदर....!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्र , मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .....बज उठे है वीणा के तार .....मचल उठा वाणी का प्यार ....
जवाब देंहटाएं....
वाणी जी .....अद्भुत है आपकी रचना .....मेरे प्रकृति प्रेम को और प्रगाढ़ कर दिया है इसने ........तरंगित हो गया मन .....!!उत्कृष्ट रचना .....बहुत सुंदर .....माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे आप पर ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और मधुर गीत, बसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत प्यारी और मनभावन रचना !
जवाब देंहटाएंअद्भुत प्रकृति वर्णन
जवाब देंहटाएंसाथ में
प्रेम मयी समर्पण
चकित करने वाले भाव
सुन्दर शब्द संयोजन
करने लगीं हैं
आप इन दिनों .....
बहुत खूबसूरत रचना
प्रकृति के हर तार को छेड़ा है शब्द उँगलियों से, ऋतुराज बसंत का रोम रोम खिल उठा है
जवाब देंहटाएंवाह वाह ...... नाच उठी विभा तो पढ़ कर आपकी कविता
जवाब देंहटाएंवसंत का वर्णन इतनी सुंदर कहीं और पढ़ने को नहीं मिली
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत प्यारी रचना ..... <3
बहुत ही प्यारी,सुन्दर और मनभावन रचना.....
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी कि हार्दिक शुभकामनाएँ...
http://mauryareena.blogspot.in/
वाह...वसंत के आगमन का बहुत सुंदर शब्द चित्र ढाला है आपने..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंअति सुंदर..... प्रेम के वासंतिक भाव बने रहें जीवन भर....मगंलकामनाएं
जवाब देंहटाएंआह हा ..प्रकृति, प्रेम और ये शब्द भाव
जवाब देंहटाएंसुंदरम् सुन्दरम.
खूबसूरत उत्कृष्ट रचना. बहुत सुंदर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है
वसंत का सशक्त चित्रण
जवाब देंहटाएंमनमोहक मौसम सा ...मन मोहने वाले कविता
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंप्रेम के सुंदर वासंतिक भाव ......
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर कृति..
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंप्रत्यूष से पिरोयी सुन्दर कविता ।
जवाब देंहटाएंपंत जी की याद आ गई :)
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