बुधवार, 12 मार्च 2014

तुम्हारा आना वसंत हुआ मन जैसे पतझड़ में ...!

ऋण स्नेह का 
चुकाया साथ रह  
चुपचाप ही !

मन बंजर 
स्नेह वृष्टि से तर 
उर्वर हुआ !

तुम्हारा आना 
वसंत हुआ मन  
पतझड़ में !

इश्क हकीकी 
ना समझे है कभी 
इश्क मिजाजी !

आँखें मीचें क्यों 
भटकता है राही 
मन कस्तूरी  !

मौन की भाषा 
पढ़े न सब कोई 
मौन ही जाने !

नैनन देखे 
पिया ही  दिखे
झूठे दर्पण !

चढ़ते रहे 
उम्र की थी सीढियाँ 
जीवन भर !

रिश्तों की नमी 
स्वार्थ की तीखी धूप 
सुखा ही गई !

लफ्ज बेमानी 
ख़ामोशी कह जाती 
सारी कहानी !


मैं उदास हूँ
पढ़ा  उसने कैसे 
लिखे बिना ही !


हायकू वह विधा जहाँ पूरी बात 17 अक्षरों में कहनी हो।  सिर्फ 17 अक्षर जोड़ देने से बात नहीं बनती , कम शब्दों में गहरी बात निकले तो बात होती है।  
बंदिशों में लिखना थोडा मुश्किल है , कोशिश कर  देखा ! कैसा है प्रयास ?!!

शनिवार, 1 मार्च 2014

मेरे अच्छे समय के साथी!


मेरे अच्छे दिनों के साथी ,
बचा रखी है कुछ तुम्हारी कल्पनाएँ 
बुरे दिनों के लिए मैंने !
जब कभी बेचैनी में नींद न आये 
दुबक कर स्मृतियों की दोहर में 
लिपट सो रहती हूँ !

मेरे अच्छे समय के साथी! 
तुम्हारा हाथ थामे चलते 
इन पगडंडियों पर 
कुछ हसीं लम्हे चुरा कर रखती गयी हूँ
स्मृतियों की तिजोरी में !
उन दिनों के लिए
जब तुम साथ होकर भी साथ नहीं होते!!