प्रेम भरा रहा भीतर है
जमी बर्फ -सा
पिघल जाएगा अहसास पाकर ही
नदी -सा
सोचा होगा भूल जाएंगे
भूल भी रहे हैं …
मगर, नही भ्रम रहा था सब
आज जब देखा
देखा वह भी ख्वाब में
सीने में भर आया
उबाल -सा
आँखों में उतर आया
दरिया -सा
प्रेम भरा रहा भीतर है
जमी बर्फ सा
पिघल गया अहसास पाकर ही
नदी -सा!!
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बर्फ का होना रिश्तों में
स्वीकारा होगा इस उम्मीद में
पिघलेगी तो तर होंगे एहसास
जज़्बात का समंदर ठाठे मारेगा
प्रेम लहरों सा उछलेगा …
मगर तब तक जाना नहीं होगा
बर्फ पिघलेगी तो
शेष कुछ न रहेगा !!
पिघली बर्फ की ठंडक में
पहले सिकुड़ेगी रुमानियत
धीरे बढ़ता पानी होगा सैलाब
बहा ले जाएगा अहसासों की नरमी
बतकही होंगी सुनामियां
भंवर में डूबेगा रिश्ता !
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बहुत सुन्दर..... समय रहते सचेत न हों तो रिश्ते भी कहाँ बचते हैं.....
जवाब देंहटाएं.....लेकिन हम फिर भी उसी मोड़ पर खड़े ..उसी रूप में उसे देखना चाहते हैं...जहाँ जिस रूप में उसे आखरी बार देखा था ....जिस हाल में उसे आखरी बार छोड़ा था ......जो वैसा फिर कभी नहीं मिलता ......
जवाब देंहटाएंप्रेम - लहरें तेज तेज उठती हैं
जवाब देंहटाएंअकस्मात् दिशा बदल जाती है
सूखे एहसासों सी मिटटी करती है आह्वान
पर - बर्फ का पिघलना,
रिश्तों का जमना
और फिर कुछ नहीं .... बस बढ़ती तपिश
बदलाव समय की जरूरत ..... रिश्ते में भी शायद ....... !!
जवाब देंहटाएंयहाँ सब कुछ बदल रहा है सिवाय 'उस' एक के...रिश्ते भी इसके अपवाद कहां हैं..
जवाब देंहटाएंअहसास की गर्मी से
जवाब देंहटाएंपिघलेगा जब
बर्फ सा जमा प्रेम
भरभरा कर आ सकती है
सुनामी
वो तीव्र लहरें
बहा कर ले जाएँगी
सारी शिकवे शिकायतें
और फिर रिश्तों को
मजबूती से खड़ा करने के लिए
प्रयास करना होगा कि
डाल सकें मजबूत नीव
इसके आगे आपके शब्दों की कारीगरी जोड़ भी दे रिश्तों को !!
हटाएंसुन्दर एहसास...आइस ब्रेकिंग ज़रूरी है रिश्तोँ के लिये...
जवाब देंहटाएंबर्फ, समंदर, नरमी , पानी सब जरुरी है रिश्तों में। अच्छा कहा है.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबर्फ सा जमा हो या पिघलता हो या रिस्ता हो बूँद-बूँद, फिर भी अंतस की गहराइयों में बचा रह जाए जो, वही होता है, रिश्ता …… बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंबर्फ़ सा जमा प्रेम और बर्फ़ से सर्द रिश्ते... दोनों का पिघलना बड़ी ही सुन्दरता से दिखलाया है आपने.. दोनों के अलग-अलग परिणाम.. वैसे प्रेम बहुत देर तक जमा या जमकर नहीं रह पाता, ज़रा सी हरारत से पिघल जाता और वो कहते हैं ना
जवाब देंहटाएंसिमटे तो दिले आशिक़
"पिघले" तो ज़माना है!! :)
रिश्तों और प्रेम के बदलते रूप कोई फ़ार्मूला या समीकरण नहीं जो पहले से हिसाब लगाना लेना संभव हो जाए ! .
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना..दिल में यदि प्रेम की बर्फ न हो तो सोचिए कितनी उग्रता बढ़ जायेगी अंतस में।
जवाब देंहटाएंप्रेम और रिश्ते ... दोनों चाहे पिघल जाएँ नमी रहती है ... गीलापन रहता है जहां एहसास खिल उठते हैं बीज बोते ही ... चाहे प्रेम के हों रिश्तों के हों जुदाई के हों ....
जवाब देंहटाएंबर्फ जरूर पिघलेगी....शानदार रचना
जवाब देंहटाएंमन को गहरे तक छू गई एक-एक पंक्ति...
जवाब देंहटाएंएक-एक शब्द.... सुन्दर बिम्ब प्रयोग....
सार्थक रचना....!!
बदलते रिश्तों में प्रेम का स्वरुप भी बदल रहा है,इस बदलाव में रिश्ते
जवाब देंहटाएंबचाने की कोशिश जारी रखनी पड़ेगी
बर्फ की तरह पिघलती और जमती रचना ----
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है----
और एक दिन
PREM KEE AANCH PAKER TO BARF SEE JAMI BHAWNEN BHEE PIGHAL JATI HAIN.
जवाब देंहटाएं☆★☆★☆
आज जब देखा
देखा वह भी ख्वाब में
सीने में भर आया
उबाल -सा
आँखों में उतर आया
दरिया -सा
प्रेम भरा रहा भीतर है
जमी बर्फ सा
पिघल गया अहसास पाकर ही
नदी -सा!!
अत्यंत भावपूर्ण !
आदरणीया वाणी जी
कविता का दूसरा पहलू भी भिगो देन वाला है...
पिघली बर्फ की ठंडक में
पहले सिकुड़ेगी रुमानियत
धीरे बढ़ता पानी होगा सैलाब
बहा ले जाएगा अहसासों की नरमी
बतकही होंगी सुनामियां
भंवर में डूबेगा रिश्ता !
आपकी लेखनी से होता रहे श्रेष्ठ सृजन अनवरत ऐसे ही...
बहुत बहुत
मंगलकामनाएं...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
गहरे अर्थ लिए हुए...
जवाब देंहटाएंबर्फ होना रिश्तों का स्वीकारना होगा....वाह!
जवाब देंहटाएंबर्फ होना रिश्तों का....काफी दर्द छुपाए है यह कविता।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंशानदार
सादर
कब कौन बदल जाय कोई नहीं जानता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
प्रेम और रिश्ते इतने भंगुर नहीं होते -कहींन कीं बचे रह जाते हैं.
जवाब देंहटाएंवाह👌👌👌
जवाब देंहटाएंबर्फ जमे रिश्तों पर कितना सुन्दर लिखा आपने ....बहुत खूब👌
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही सुंदर। सच में, बर्फ का जमना, रिश्तों में कभी नहीं स्वीकारना चाहिए। वैसे ही, जैसे कीट के लिए अतिथि देवो भवा नहीं कहती फसल।
जवाब देंहटाएंरिश्तों का आनंद अब कहाँ ?
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