- मेरे घर में नहीं है
- सिर्फ मेरी किताबों से भरी
- बड़ी आलमारियां !
- मेरी आलमारी भरी है
- मेरी कुछ ही किताबोँ से
- कुछ में सजी है
- पति और बच्चों की क़िताबें भीं !
- कुछ आलमारियों मे
- गृहस्थी के जरुरी सामान
- राशन बर्तन भांडे कपड़े लत्ते
- कैंची सुई धागा मशीन भी !!
- अतिथियों के स्वागत सत्कार के साथ
- रखती हूँ दाना पानी
- चिड़िया, गाय तो कभी कुत्ते के लिये भी !!
- कभी किसी भूखे नंगे की गुहार सुन
- खाना- कपड़ा देती हूँ कुछ उपदेशों के साथ भी !
- कभी पैसा- अनाज ले जाते हैं ढोल पिटते
- आशीषें बांटते लोग भी .... !!
- अपने बच्चों की किलकारियां -झगडे भी
- द्वार पर अनाथ बच्चों की खिलखिलाहट
- रिरियाने की मजबूरी भी !
- पढ़ने से कुछ अधिक ही
- जीती हूँ रिश्तों को !
- लड़ना , कुढ़ना , हँसना , प्रेम
- नफरत , उपेक्षा , चिढ़ना
- भी जिया है साथ ही .... !!
- जो जीती हूँ ,
- जीते देखती हूँ
- वही लिखती भी हूँ !!
- कभी इसके सिवा भी
- जो जीते देखना चाहती हूँ …… !!!
- कभी कुछ लिखती हूँ जो जीती नहीं
- कभी कुछ जीती हूँ जो लिखती नहीं !!!
- क्रांति की मोटी पुस्तकों से सजी
- आलमारियों वाले घरों मे
- क्रांति के बड़े किस्से पढ़नें वाले
- गढ़ते है झूठे किस्से !
- एसी में बैठे ज़ाम ढालते
- मुर्ग मुसल्लम , पकवानों की दावत उड़ाते
- लिखते हैं शोषित , गरीब , भूखों की बाते!
- महज़ अपनी आजादी को जीते
- करते हैं परिवारों की बाते !
- अक्सर लिखते हैं , जो जीते नहीं
- अक्सर जो जीते हैं , लिखते नहीं !!
- -एक गृहिणी के दिल से, कुछ अव्यवस्थित विचार , शायद कभी श्रेष्ठ कविता मे भी ढलें !!
- आलेख समझो कि कविता , पढ़ने वाले (पाठक ) की समझ !!
रविवार, 11 मई 2014
महज़ अपनी आजादी को जीते , करते हैं परिवारों की बाते !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत ही सुन्दर विचार और अभिव्यक्ति .... !!
जवाब देंहटाएंSargrbhit abhivykti
जवाब देंहटाएंसही कहा वाणीजी...जो लिखते हैं वह जीते नहीं ...जो जीते हैं वह लिखते नहीं....कितना सार गर्भित ......बहोत सुन्दर..!!!
जवाब देंहटाएंकहानी कहें या काव्य या इससे अलग कोई विधा
जवाब देंहटाएंजहाँ प्रकृति है, प्यार से, रिश्ते हैँ
और छोटे छोटे ख्वाब और खुशियाँ
वहाँ जीवन की कई क़िताबें मिलती हैं
पढ़नेवाला पढ़ता जाता है
कोई कहे या ना कहे ....
कुछ ऐसे ही रहस्य मैं टूटे फूटे शब्दों में लिख रही हूँ !
विचार प्रभावी होते हैं .. भाव मन में उठते हैं ... व्यवस्था कोई भी हो .. आलेख या कविता ... मन को झंझोड़ते हैं ये शब्द ....
जवाब देंहटाएंकाव्य हो न हो
जवाब देंहटाएंभाव होना चाहिए
जैसी हो ज़िन्दगी
वही आधार होना चाहिए ।
ज़िन्दगी के जो करीब हो
वो लिखा सार्थक है
तल्ख़ हो या ख़ुशी
ज़िन्दगी का यथार्थ है ।
भवों का गहन समंदर ..... पढना और गुनना अच्छा लगा ।
अपने को बड़ा और सिंगल को छोटा साबित करना , सो कॉल्ड भारतीये गृहणी
जवाब देंहटाएंकी पुरानी आदत हैं। गृहणियां
इस शब्द को आज कि स्थितियों मे कैसे परिभाषित करेगे ।
अपने देश कि राष्ट्रपति एक महिला हैं , विवाहिता हैं क्या वो गृहणी हैं ????
सोनिया गाँधी कांग्रेस कि नेता हैं , विधवा हैं क्या वो गृहणी हैं ??
सुषमा स्वराज विपक्ष कि नेता हैं , विवाहित हैं क्या वो गृहणी हैं ??
अगर वो गृहणी हैं तो क्या गृहणी वो केवल इस लिये हैं कि वो विवाहित हैं ??
एक अविवाहित नारी , जो अपना घर भी चलती हैं और बाहर काम भी करती हैं क्या वो गृहणी हैं ?? अगर नहीं हैं तो उसके लिये क्या शब्द कहा जायेगा ।
बदलते समय के साथ साथ शब्दों कि परिभाषाये भी बदलती हैं । आज के परिवेश मे सिंगल काम काजी महिला कि संख्या मे बढ़ोतरी हो रही हैं । उनमे से बहुत सी अलग रहती हैं और अपने काम के साथ साथ अपना घर भी चलाती हैं । गृहणी का सीधा अर्थ शायद घर चलने मे सक्षम होना ही होता हैं । लेकिन हमारे समाज मे गृहणी को एक विवाहिता से जोड़ कर देखा जाता हैं ऐसा क्यों । गृहणी को नॉन प्रोडक्टिव वर्कर माना गया हैं यानी जो बाहर काम करता हैं वो प्रोडक्टिव वर्कर होता हैं । हमारे ब्लॉग जगत कि बहुत सी नारियां विवाहित हैं क्या वो अपने को गृहणी मानती हैं ?? क्या ये गृहणी होना उनका स्वेच्छा से चुना हुआ "काम " हैं या समाज कि बनी हुई लकीरों पर चलने के कारण वो "गृहणी " बन गयी हैं ।
क्या बाहर नौकरी करना और अपना घर भी संभलना ज्यादा मुशकिल काम हैं जैसे एक अविवाहित , नौकरी करती नारी करती हैं
या
केवल घर संभालना , पति और बच्चो कि देखभाल करना ज्यादा मुशकिल काम हैं जैसे एक विवाहित नारी करती हैं
या
घर और ऑफिस दोनों संभालना जैसे एक विवाहित नारी करती हैं
यह प्रत्येक व्यक्ति की अपनी सुविधा है कि उसे कौन सा कार्य अधिक मुश्किल लगता है , क्या करता है .... इस कविता में यदि आपको दिख रहा है कि सो कॉल्ड गृहिणी सिंगल को कमतर समझती है , तो यह आपका पूर्वाग्रह है . इस कविता में गृहिणी सिर्फ यह लिख रही है कि वह जो जीती है , लिखती है , कभी जो नहीं लिखती वह भी लिखती है , सो कॉल्ड क्रांतिकारी अक्सर वह लिखते हैं जो जीते नहीं !! और इससे अधिक भी यदि कविता में कोई भाव परिलक्षित हो रहा हो जो किसी को नागवार गुजरता है तो , उसके लिए मैं लिखती भी नहीं , अपनी ख़ुशी के लिए लिखा ही समझे !
हटाएंआप को कैसे पता कि किस कि अलमारी मे क्या रखा हैं महज आप का पूर्वाग्रह हें
हटाएंआप कैसे कह सकती हैं ऐसी मे बैठ कर जाम ढालते हैं , ये भी पूर्वाग्रह ही हैं
आप कुछ भी लिख सकती हैं अपनी ख़ुशी के लिये लेकिन हैं वो पूर्वाग्रह ही क्यूँकि आप के पास बस एक परिवार हैं और दुसरो के पास कई परिवार हैं
@ कभी जो नहीं जीती , वह भी लिखती है !
हटाएंमाँ से अधिक ममता का मोल होता है , परिवार से अधिक रिश्तों का .... यदि किसी ने इसे जीया है तो उसे लिखे , इसमें किसी को क्या आपत्ति है !!
हटाएंमैं तो वही लिख पाउंगी न जो मैं सोचती हूँ , इसका मतलब ये नहीं कि मैं ये मानती हूँ कि जिसका परिवार नहीं , उसमे ममता ही नहीं .... यह कविता मात्र उनके लिए है जिनमे ममता नहीं है , और ऐसे लोग तो परिवार में भी होते हैं !!
रचना जी प्लीज़...
हटाएंइस कविता में या चलिये सुविधा के लिये इसे स्टेटमेण्ट मान लेते हैं कहीं भी न तो कोई जजमेण्ट है, न कोई जेनेरलाइजेशन है. जाम ढलने वाली बात अगर पूर्वाग्रह है तो इनकी बात जाने दीजिये.. अदम गोंडवी साहब को क्या कहेंगी
काजू भुनी प्लेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में!
ये भी पूर्वाग्रह है.. भला हर विधायक निवास में ऐसा कहाँ होता है.
अब इस बात की गारण्टी कोई कैसे ले सकता है कि हर वो गृहिणी, जो समाज द्वारा स्थापित अब तक चली आ रही परिभाषा के अंतर्गत गृहिणी कहकर सम्बोधित की जाती रही है, अपनी मर्ज़ी के विरुद्ध उस रोल में है.
जब जाम का ढलना पूर्वाग्रह हो सकता है तो अपनी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ गृहिणी का चोला पहनना भी पूर्वाग्रह से ग्रसित स्टेटमेण्ट माना जा सकता है!!
बस एक जवाब कुछ तलख सा अलग सा
जवाब देंहटाएंजो आप करती हैं
वो सब मै भी करती हूँ
अपने घर मे
उसके साथ साथ
टैक्स भी भर्ती हूँ
अगर आप से कोई प्रश्न करता हैं
डू यु वर्क ??
तो आप को लगता हैं ये प्रश्न
बेमानी हैं
और आत्म मंथन आप को करना पड़ता हैं
काश आप भी काम करती
और फिर समझती
कितना सुख होता हैं
अपनी आय अर्जित करने का
और उसके साथ साथ
सरकार को टैक्स देने का
ताकि सरकारी योजनाये नयी बन सके
उनके लिये जो काम नहीं करते http://mypoemsmyemotions.blogspot.in/2012/12/blog-post.html
खेतों में पसीने बहाकर अनाज उगाता किसान और 48 डिग्री पर डामर की सड़क पर गिट्टियाँ पसारता मज़दूर भी काम करता है... बेचारे की मिहनत की गिनती कहाँ होती है, उसकी आय का लेखा जोखा कहाँ जी डी पी में हो पाता है.
हटाएंकाम को सिर्फ ऑफिस जाकर करने वाले काम से आँका जाए और सुख का अर्थ सिर्फ अपनी आय से लगाया जाए तो फिर सुख को बड़ा क्षुद्र बना दिया आपने रचना जी!
"आज क्या स्वादिष्ट खाना पकाया तुमने...
तुम्हारा बुना हुआ स्वेटर पहनकर मुझे तुम दिल के करीब लगती हो..
आओ आज हम एकांत में बातें करते हैं.."
ये सुखों के वे छोटे छोटे पल हैं जिनके आगे तथाकथित आय कोई मानी नहीं रखती...
कम से कम मेरी बैक्वर्ड मिडल्क्लास हाउसवाइफ पत्नी तो ऐसा ही सोचती है!!
यह सुख भी अपरिमित है , वैसे प्रत्येक व्यक्ति से व्यक्ति पर निर्भर करता है .
हटाएं:) अव्यवस्थित आलमारियों की तरह विचारों की उठापटक ....... चाहे गृहिणी हो या कोई और !! वाणी दी ........ आप मेरे फेवरिट रचनाकार रहे हो ........ !!
जवाब देंहटाएंथैंक्स मुकेश :)
हटाएं"अक्सर लिखते हैं, जो जीते नहीं/ अक्सर जो जीते हैं, लिखते नहीं" यही सच है. अमीर ग़रीब, स्त्री पुरुष काम करने वाले या आराम करने वाले सभी पर यह सच लागू होता है...
जवाब देंहटाएंसहमत ! बहुत से लोगो पर यह सच लागू होता है , और बहुत लोग जीते भी हैं !
हटाएंएक गृहिणी, जो इस विशाल देश में बहुसंख्यक न भी हो तो अल्पसंख्यक क़तई नहीं है. और उसके लिये प्रगतिशील होने का अर्थ यह नहीं कि वह परम्पराओं, रिश्तों और सामाजिक सम्बन्धों के महत्व को न पहचाने. और यह सब कभी भी, कहीं से भी बन्धन तो नहीं लगता, यदि यह चुनाव स्वयम उसका खुशी किया चुनाव है तो!!
जवाब देंहटाएंहाँ पढना कम और रिश्ते निभाना अधिक (जैसा मैंने कम पुस्तकों और अधिक अन्य सामानों से भरी आलमारी के संकेत से समझा) से अच्छा तब लगता जब वो एक संतुलन बनाती हुई दिखाई गई होती.
रही बात "तथाकथित" क्रांतिकारी विचारधारा वाले मुखौटे लगाये लोग, जिनके हाथों में सिर्फ मोटी पुस्तक होती है, उन पुस्तकों में व्यक्त ज्ञान नहीं. मैंने भी कभी एक शे'र लिखा था
ठण्डे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आए!
जैसा महसूसा वैसा लिखा, एक ताज़ा अनुभूति!! स्वच्छ और ईमानदार!
सलिल जी ,
हटाएंआपकी टिप्पणी पक्ष या विपक्ष में , हमेशा उत्साहवर्धक होती है . यह कविता उन गृहिणियों की कविता है जो रिश्तों या जिंदगी को सिर्फ किताबों से नहीं सीखती , वे स्वयं जीती हैं , उसे लिखती है अधिक और जो होना चाहती है , वह भी लिखती है !!
वाणी जी ..आपके विचारों से सहमत हूँ
जवाब देंहटाएंसच है..
जवाब देंहटाएंअक्सर वो जी लिया जो लिखा नहीं , और वो लिख दिया जो जिया नहीं ... :-)
सुन्दर
~सादर
अनिता ललित
ब्लॉग बुलेटिन की ८५० वीं बुलेटिन खेल खतम पैसा हजम - 850 वीं ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंजो अनुभव किया वो लिखा ... हमें तो खूब भाया :)
जवाब देंहटाएंउद्वेलित करते विचार..... सच का आइना लिए हैं
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
जवाब देंहटाएंसही कहा ....बहुत ही सुन्दर सही अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंkhubsurat or sarthak abhiwyakti.....
जवाब देंहटाएंहर अभिव्यक्ति किसी विशेष मनस्थिति को व्यक्त करती है - जो उस क्षण का लेखा है . हम न उसे सब पर लागू कर सकते हैं न उस आधार पर कोई निष्कर्ष निकाल सकते हैं .साहित्य व्यक्तिनिष्ठ होता है
जवाब देंहटाएं- कविता और भी अधिक .यह मान कर चलें तो वह सब उसके घेरे में आ जायेगा जो किसी स्थिति में किसी ने अनुभव किया .और अनुभूतियों की भिन्नता ही जीवन को अधिक संपूर्णता से व्यंजित कर सकती है .
सुंदर भाव, सुंदर चित्रण, श्रेष्ठ कविता! अभिव्यक्ति यूं ही निर्बाध चलती रहे!
जवाब देंहटाएंवास्तविकता में बेहतरीन लेखन है आपका , वाणी जी धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
वाकई विचारों की इस उधेडबुन में ही शायद जीवन छिपा है, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
bahut badhiya....
जवाब देंहटाएंसारगर्भित.सुन्दर भाव..
जवाब देंहटाएंकुछ कवितायें ऐसी होती है जो सीधे ह्रदय में उतरती है. यह वही कविता है. आखिरी दो पंक्तियों में बहुत गहरी बात कही है आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत सजीव लिखा है !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा पढ़ना :)
हर किसी को अपने दिल की बात कहने का हक है...किसी से मेल खाए तो ठीक न खाए तो कोई बात नहीं..सुंदर रचना दिल से कही गयी..
जवाब देंहटाएंजिंदादिल ही जीकर लिखते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
सुन्दर बोध रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक रचना.....रचना और उम्दा प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)
अपने भावों को पूरी सच्चाई के साथ व्यक्त किया है आपने । कविता यही तो है ।
जवाब देंहटाएंयही तो सच्ची और सार्थक कविता है...
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना पर आपका पढ़कर आपके ब्लॉग पर आई हूँ ।अब तक इस ब्लागर मित्र से दूर थी ।अब आना होता रहेगा ।fb पर तो हम frnds हैं ही :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंअक्सर जो जीते हैं,लिखते नहीं !!" लाजवाब
जवाब देंहटाएंगहरी प्रभावशाली अभिव्यक्ति …… मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंसच्ची सरल कविताबहुत गहरे भाव लिये।
जवाब देंहटाएंकथनी और करनी को अलग करके जीने वाले लोग नहीं हम..अच्छी लगी ये अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंबेमिसाल .... गहन बातों को भी जो सहजता से कह जाये
जवाब देंहटाएंवही रचनाकार कलम का धनी है
आप बिल्कुल वैसी ही हैं
.....
सरलता ही साधुता है । सुन्दर कविता । बधाई ।
जवाब देंहटाएं