बुधवार, 9 जुलाई 2014

प्रेम होने में जो है ....


प्रेम होने में जो है , 
शब्दों में कहीं अधिक है !
शब्दों से कहीं अधिक है !!
जरुरी है प्रेम का होना , 
शब्दों के सिवा ही !
शब्दों के सिवा भी !
(एक दिन कविता की यह शाख सूख जायेगी )
प्रेम शब्दों से फिसलकर 
रिश्तों में साकार होगा 
या कि 
पतझड़ के सूखे पातों-सा 
बिखर जाएगा .
होगा यह या वह 
इन शब्दों के परे 
इन शब्दों के इर्द गिर्द ही मगर !!


11 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम...जो बहता रहेगा सांसों में , धड़कन में हमेशा . सुन्दर शब्द दिया है..

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  2. वाह ...प्रेम को इस दृष्टिकोण से भी देखा जाये ....

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  3. शब्दों के सिवा भी शब्दों के सिवा ही....सुंदर परिभाषा प्रेम की..

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  4. जरूरी है प्रेम का होना .......
    .......... अस्तित्‍व तो इसी बात पर टिका है

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  5. यही तो प्रेम है... शब्दों के सिवा भी - शब्दों के सिवा ही... लाख झड़ जाएँ पतझड़ के पात की तरह, लेकिन सूखे फूलों की ख़ुशबू उस एहसास को ज़िन्दा रखती है!!
    एक बहुत ख़ूबसूरत रचना!

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  6. शब्दों के सिवा भी …… बहुत कुछ है !!

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  7. शब्दों में और शब्दों से परे भी ....बहुत सुंदर ,गहन उद्गार वाणी जी ...!!

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  8. प्रेम है होगा ... रहेगा शाश्वत ...
    इसे शब्द मिलें न मिलें जमीन मिले न मिले ...

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  9. मन में जमा बीज है जो समाप्त नहीं होता कभी,दिखाई दे या न दे- मौसम की बात है

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  10. " प्रेम न खेती ऊपजै प्रेम न हाट बिकाय ।
    राजा परजा जेहि रुचय सीस देइ लै जाय ।"
    कबीर

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  11. जरूरी है प्रेम का होना, शब्दों के सिवा ही, शब्दों के सिवा भी...एक सच जो बखूबी उकेरा है शब्दों में...

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