उर्दू के शब्द सीखते कल यूँ ही कुछ पंक्तियाँ लिख ली ...लिखने के बाद देखा कि क्या इसे ग़ज़ल कहा जा सकता है ...ग़ज़ल सीखने के नियम , कायदे , कानून ....अच्छी कक्षा है मगर पढ़ते सिर चकराने लगा...इतनी बंदिशों में ग़ज़ल!!
अब सीखते तो वक़्त लगेगा या कहा नहीं जा सकता कि तमाम वक़्त में भी शास्त्रीय परम्परा अनुसार ग़ज़ल लिख भी पाए या नहीं ,तब तक इन पंक्तियों को पढ़े और बताएं ...
पशोपेश में थमी थी साँसें उसकी गली से गुजरते
मुश्किल था बच निकलना पासबाने नजर से!
मुश्किल था बच निकलना पासबाने नजर से!
क्या बुरा था जो लिया इलज़ाम बदसलूकी का
हासिल कब क्या हुआ था उसे तोहफगी से!!
मिलते ना शामो- शहर ग़र हमें खबर होती
इज़्तिराब होंगे बहुत पुरसां की नजरंदाजी से!
दोस्त- अहबाब ही तो थे कि निभ गयी गोशानशीं
वरना दस्तंदाजी बहुत होती है कराबतदारी में!!
इख़्तिलात में होती है जो रुसवाई इतनी
मजलिस में रूबरू होते हम भी मगरूरियत में!
जान -ओ -दिल लुटाने वाले मुसलसल रुसवा हुए
मिलता है इनाम आजकल गुर्ग आशनाई में!!
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हासिल कब क्या हुआ था उसे तोहफगी से!!
मिलते ना शामो- शहर ग़र हमें खबर होती
इज़्तिराब होंगे बहुत पुरसां की नजरंदाजी से!
दोस्त- अहबाब ही तो थे कि निभ गयी गोशानशीं
वरना दस्तंदाजी बहुत होती है कराबतदारी में!!
इख़्तिलात में होती है जो रुसवाई इतनी
मजलिस में रूबरू होते हम भी मगरूरियत में!
जान -ओ -दिल लुटाने वाले मुसलसल रुसवा हुए
मिलता है इनाम आजकल गुर्ग आशनाई में!!
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इख़्तिलात --मेलजोल , परिचय
गुर्ग आशनाई - कपटपूर्णमित्रता
पुरसाँ - खबर लेने वाला
पासबान ---द्वारपाल ,पहरेदार
मुसलसल-- लगातार
गोशानशीं-- अकेलापन
कराबतदारी-- रिश्तेदारी
इज़्तिराब -- बेचैन
तोहफगी --अच्छाई
दस्तंदाजी--हस्तक्षेप
गुर्ग आशनाई - कपटपूर्णमित्रता
पुरसाँ - खबर लेने वाला
पासबान ---द्वारपाल ,पहरेदार
मुसलसल-- लगातार
गोशानशीं-- अकेलापन
कराबतदारी-- रिश्तेदारी
इज़्तिराब -- बेचैन
तोहफगी --अच्छाई
दस्तंदाजी--हस्तक्षेप
इख्तिलात में होती है जो रुसवाई इतनी
जवाब देंहटाएंमजलिस में रूबरू होते हम भी मगरूरीयत में
yahan bhi baazi maar li
@जान-ओ-दिल लुटाने वाले मुसलसल रुसवा हुए
जवाब देंहटाएंमिलता है इनाम आजकल गुर्ग आशनाई में।
मस्त शेर है और बढिया गजल।
आभार
sabhi sher bahut achchhe hain ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ज़नाब!
जवाब देंहटाएंवाणी जी ..बधाई हो आपको इतना खूबसूरत लेखन के लिए ...
जवाब देंहटाएंबात जब दिल से निकलती है ...हिंदी या उर्दू से फर्क नहीं पड़ता ...असर गहरा ही छोडती है ....!!
अच्छा किया शब्दार्थ देकर--
जवाब देंहटाएंअन्यथा अफ़सोस होता पढ़-कर --
आपकी गजल है लाजवाब
सचमुच जेहन पर
गई असर कर | |
मैं भी देखता हूँ गजल की बारीकियां |
जवाब देंहटाएंमिलता हूँ फिर अगले पोस्ट पर ||
बहुत अच्छा लिखा आपने, हमारी तो हसरतें ही रहीं।
जवाब देंहटाएंबाबा रे |
जवाब देंहटाएंआया घूम के ||
नियम कायदे कानून
बस केवल चूम के ||
अपने माथे ये न पड़ने वाला |
गजल का बुखार न चढ़ने वाला ||
बिना मीटर के ही दौड़ा करूँगा |
बस पेट्रोल थोडा ज्यादा भरूँगा --
और क्या ??
Badhiya prayas,sundar ban padi hai gajal,shukriya
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंchhotawriters.blogspot.com
इतनी कठिन उर्दू .... अर्थ नहीं दिए होते तो सिर के ऊपर से ही निकल जानी थी :):)
जवाब देंहटाएंवैसे गज़ल के कायदे क़ानून कई बार सीखने का प्रयास किया पर बहुत कठिन है डगर गज़ल की ..
आपकी गज़ल के शुरू के तीन अशआर से पर खतम हो रहे हैं और बाकी में पर .. शायद इसे रदीफ कहते हैं ...क्या यह गज़ल के कायदे क़ानून के अनुरूप है ...पता चले तो मुझे भी बताइयेगा :):)
वैसे कायदे क़ानून एक तरफ ... भावों से ओत प्रोत एक खूबसूरत रचना है ... बधाई
वाह, उर्दू शब्द सीख कर आपने इतनी उम्दा गजल लिख डाली... अगली रचना थोड़े से आसान शब्द लेकर लिखें इतनी गुजारिश है...
जवाब देंहटाएंkhoobsurat gazal....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल है
जवाब देंहटाएं-----------------------------------
कल 28/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल
बेहतरीन ग़ज़ल , आभार।
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ जो अर्थ बता दिए...कुछ शब्द ही सीख लिए...
जवाब देंहटाएंबढ़िया...
इतनी जल्दी कितना कुछ सीख लिया ..अब तो हमें तुम्हारी ग़ज़ल पढ़ने को उर्दू सीखनी पड़ेगी.
जवाब देंहटाएंग़ज़ल के भाव अच्छे लगे
ये हुई ना बात :) सहेली का लिखा पढ़ने के वास्ते उर्दू सीखने तैयार :)
हटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 28 - 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच-- 52 ..चर्चा मंच
v nice ghazal ..
जवाब देंहटाएं3rd sher is very good
शानदार नज्म सलीका लिए बेहतरीन ख्यालों का दस्तावेज
जवाब देंहटाएंसुकून दे गया जी ...../ मुबारका जी ......
सर पकड़ लिया मैंने .....अब शेर पढूं या फुट नोट !
जवाब देंहटाएंसुधारें -
जवाब देंहटाएंबदसलूकी या मैं ही गलत ?
अहबाब का matlab ?
जवाब देंहटाएंबाप रे ...
जवाब देंहटाएंआज आपने कहाँ भेज दिया ग़ज़ल सीखने ... :-)
हम तो बिना पढ़े ही भले !
शुभकामनायें आपको !
इख्तिलात मे होती है ---- वाह बहुत खूब। मै भी आजकल गज़ल के व्याकरण मे उलझी रहती हूँ। मुझे लगता है गज़ल सीखते हुये सब कुछ पीछे छूट जाता है देखो अब हफ्ते मे एक पोस्ट मुश्किल से लिख पाती हूँ। मुझे भी उर्दू बहुत अच्छी लगती है मगर आती नही। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार गज़ल्।
जवाब देंहटाएंअर्थ पढ़ते ही ग़ज़ल पढने का मज़ा आ गया ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति ...खूबसुरत गजल....
जवाब देंहटाएंतारीफ़ भी आपकी गज़ल के हिसाब से ही करनी चाहिए... वाह...माशाल्लाह..सुभानल्लाह :)
जवाब देंहटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास बधाई...कई शे’र तो बहुत अच्छं...मेरे ब्लॉग पर आइए उसे भी देखिए...शायद पसन्द आए
जवाब देंहटाएंkitne mukaam aur hansil karengi ? :)
जवाब देंहटाएंkamaal ki gazel.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी गजल ...शुभकामनाएं !!!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने ! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
खूबसूरत गज़ल शब्दों के अर्थ देकर बडा अच्छा किया ।
जवाब देंहटाएंग़ज़ल तो बहुत बढ़िया बन पड़ी है..... बधाई
जवाब देंहटाएंbahut sunder gajal ,,,,,,,,,shubkamnaye.....
जवाब देंहटाएंbahut khoob....sir ji
जवाब देंहटाएंap bhi aaeye.... hamara bhi hausla badhaiye
वाह,
जवाब देंहटाएंबधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
मुझे लगता है भाव होँ तो कोई भी शिल्प सीखा जा सकता है ... अच्छे बाहव लिए हैं आपके शेर ... ऐसे ही लिखती रहें ...
जवाब देंहटाएंगज़ल के कायदे क़ानून तो पता नहीं, पर बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण गज़ल..
जवाब देंहटाएंग़ज़ल और नाप-तोल पर तो कहने योग्य हूँ नहीं कहीं से, तो टिप्पणी नहीं करूँगा लेकिन इतनी बढ़िया उर्दू? मान गए!
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें।
समझ भी गए और मज़ा आया पढ़कर .
जवाब देंहटाएं