मूर्खता जन्मजात नहीं होती
नवजात शिशु भी कहाँ होता है मूर्ख
चीख कर दे देता है अपने आगमन की सूचना
माँ की गोद में ढूंढ लेता है
अपनी भूख -प्यास का इंतजाम ...
मचलता है ,जमा देता है लातें भी
बात पसंद ना आने पर!
प्रतिक्रियाएं बता देती हैं मन के भाव
अच्छा- बुरा कुछ नहीं छिपाता...
हंसने की बात पर हँसता है दिल खोल कर
रोने की बात पर रोता ही है
बुरा मानने की बात पर बुरा ही मान लेता है
ज़ाहिर कर देता है अपने भय भी उसी समान ...
बढती उम्र चढ़ा देती है परतें
नहीं रह पाता है वही जो वह है
और बदलती जाती हैं उसकी प्रतिक्रियाएं...
हंसने की बात पर डर जाना
रोने की बात पर हँस देना
डरने की बात पर हँसना ...
समझदार होने के क्रम में
प्रतिदिन मूर्खता की ओर बढ़ता है !
दरअसल
लोग मूर्ख नहीं होते
मूर्ख बन जाते है
मूर्ख बना दिए जाते हैं
या फिर
छलना छलनी ना कर दे
सिर्फ इसलिए ही
मूर्ख बने रहना चाह्ते हैं !
नवजात शिशु भी कहाँ होता है मूर्ख
चीख कर दे देता है अपने आगमन की सूचना
माँ की गोद में ढूंढ लेता है
अपनी भूख -प्यास का इंतजाम ...
मचलता है ,जमा देता है लातें भी
बात पसंद ना आने पर!
प्रतिक्रियाएं बता देती हैं मन के भाव
अच्छा- बुरा कुछ नहीं छिपाता...
हंसने की बात पर हँसता है दिल खोल कर
रोने की बात पर रोता ही है
बुरा मानने की बात पर बुरा ही मान लेता है
ज़ाहिर कर देता है अपने भय भी उसी समान ...
बढती उम्र चढ़ा देती है परतें
नहीं रह पाता है वही जो वह है
और बदलती जाती हैं उसकी प्रतिक्रियाएं...
हंसने की बात पर डर जाना
रोने की बात पर हँस देना
डरने की बात पर हँसना ...
समझदार होने के क्रम में
प्रतिदिन मूर्खता की ओर बढ़ता है !
दरअसल
लोग मूर्ख नहीं होते
मूर्ख बन जाते है
मूर्ख बना दिए जाते हैं
या फिर
छलना छलनी ना कर दे
सिर्फ इसलिए ही
मूर्ख बने रहना चाह्ते हैं !
काश हम हम उस नैसर्गिकता को सहज पाते जो हमने ईश्वर ने प्रदान की थी तो आज इन्सान के यह हालात भी नहीं होते ,वह अपने हालातों के लिए स्वयं ही जिम्मेवार है जैसे- जैसे उसकी समझ बढती जाती है संसार के आवरण उस पर चढ़ते जाते हैं और एक दिन इंसान इस मायावी संसार में इतना रम जाता है कि अपने मूल मंतव को भूलते हुए अपनी अस्मिता को ही खो देता है , फिर उसके पास शरीर चाहे इंसान का होता है लेकिन कर्म .......???? सोचने वाली बात है सब कुछ आज हमारे सामने है .....आपका आभार
जवाब देंहटाएं@ केवल राम
जवाब देंहटाएंआजकल ऐसी नैसर्गिकता रखने वालों को ही मूर्ख कहा जाता है ...क्या कहा जाए !
मायालोक की हवा लगते ही,माया उसमें समा जाती है।
जवाब देंहटाएंनीर-क्षीर और विवेक वासना,सांसारिक एषणाएं पाती है।
सार्थक तत्वज्ञान के लिए आभार
सच में कितना चाहो सहज बन कर जीना ...मुमकिन हो पता है क्या ...?
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रियाएं भी तो कुछ हलचल पैदा करतीं हैं मन में ...!!
सुंदर सोच देती रचना ...!
समझदार होने के क्रम में प्रतिदिन मूर्खता की ओर बढते हैं .. बहुत सही !!
जवाब देंहटाएंऔर आस पास लोग अपनी विद्वता का ढिंढोरा पीटते फिरते हैं, स्वयं को बुद्धिमान सिद्ध करने की चेष्टा में लगे रहते हैं.. जबकि मूलतः वे मूढ़ हैं और कमाल का निरीक्षण है कि यह बीमारी जन्मजात नहीं.. और अब तो लाईलाज है यह बीमारी!!
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह अनोखी और नए भावों से रची कविता!
हम कृत्रिमता ओढ़ने लगते हैं और मूर्ख हो जाते हैं। बहुत ही तार्किक पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही आपने इस कविता में.
जवाब देंहटाएंसादर
इन एहसासों को समझना ...... सबके वश की बात नहीं . यह जीवन का सूक्ष्म विश्लेषण है , यह वही कर सकता है , जो उन रास्तों की पकड़ रखता है . और उसके निष्कर्ष ही उसकी थाती बनते हैं !
जवाब देंहटाएंWyakti janmjaat moorkh nahee hota....sach hee to hai!
जवाब देंहटाएंबहुत सूक्ष्म अवलोकन .. सच में बच्चा अपनी प्रतिक्रियाओं से सब कुछ बता देता है ... लेकिन जैसे जैसे बड़ा होता है परिस्थितियों के अनुसार ढलता जाता है और उसकी प्रतिक्रियाओं से सही अंदाज़ नहीं लग पाता ..और धीरे धीरे चेहरे पर मुखौटे चढाते चले जाते हैं ..
जवाब देंहटाएंया फिर
छलना छलनी ना कर दे
सिर्फ इसलिए ही
मूर्ख बने रहना चाह्ते हैं !
बहुत सार्थक पंक्तियाँ
शायद यही ज़िन्दगी का सच है।
जवाब देंहटाएंसच को बयान करती एक सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंsahii haen aaklan aur kavita badhiyaa lagii
जवाब देंहटाएंman ko chhuti
आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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आपकी आखिरी पंक्तियों में कही गई बात सबसे ज्यादा खतरनाक है.
जवाब देंहटाएंनए भावों पर रची बेहतरीन रचना.
sach kaha apne
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना ने सोचने पर मज़बूर किया।
जवाब देंहटाएंपहले तो यह गाना गाया, “नक़ली चेहरा सामने आया, असली फ़ितरत छुपी रही” ... फिर एक कोटेशन पढ़ा। सोचा उसे आपसे शेयर कर ही लूं,
यदि आप दूसरों को यह विश्वालस दिलाने की कोशिश करते हैं कि आप वह हैं, जो कि आप नहीं हैं, तो मूर्ख कौन बना?
आदरणीय वाणी शर्मा जी
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है ..इस संसार में मानवीय भावना रखने वाले को लोग कहाँ सहन कर पाते हैं ...लेकिन इस जलते संसार में खुद तो बचा कर रखा जा सकता है ना....और क्या कहा जा सकता है ..!
sach kaha aapne....dono avasthaao ka sunder chitran kiya.
जवाब देंहटाएंaaj kal kaha gayab hai hmare ghar ka rasta bhule baithi hain??????????kyuuuuuuuuuuuuuu?
वाह! कया बात कही है आपने
जवाब देंहटाएंमानव स्वभाव का सही रेखाचित्र खींच दिया..
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता... बहुत सुन्दर...कई बार मुर्ख ओढ़ी और पहनी भी जाती है...
जवाब देंहटाएंमूर्खता उन कई पथों सी है जो जंगल छीलने से उग आते हैं, वरना मूल में प्रकृति ने दिया तो एक हरित वनप्रदेश ही था जहाँ तुलना और होड़ नहीं थी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संदेशपरक कविता हेतु धन्यवाद
सच कहती है आपकी रचना,
जवाब देंहटाएंआभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
कल शनिवार (०९-०७-११)को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी ..नयी -पुरानी हलचल पर ..आइये और अपने शुभ विचार दीजिये ..!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता ....जब तक मनुष्य प्रकृतिस्थ है सहज है ..जब प्रकृति का दामन छोड़ता है मूर्ख या धूर्त बनता है !
जवाब देंहटाएंसत्य वचन दोस्त जी क्युकी इन्सान कभी अपने कहने पर नहीं चलता वो तो सिर्फ और सिर्फ दिखावे पर जीता है की कही कोई बुरा न मान जाये कही कोई मुझसे खफा न हो जाये उससे तो अपनों से ज्यादा दुसरे को खुश करने की चिंता होती है और न चाहते हुए भी वो खुद अपनी न सुनकर घुट - घुट कर जीता न खुद खुश रहता है और न रहने देता है |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना |
Bahut badi baat kah di aaapne.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति,हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंआपने सही राग पे हाथ रखा है ... मूर्ख नहीं होते मूर्ख बने रहना चाहते हैं ... इसी में आज कल भलाई है ...
जवाब देंहटाएंगहन सत्य को चित्रित करती बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंआदरणीय वाणी शर्मा जी
जवाब देंहटाएंनए भावों पर रची सुन्द रचना....
मनोज जी की टिप्पणी बहुत सटीक लगी.
जवाब देंहटाएंबच्चे की मूर्खता भरी प्रतिक्रियाएं भला एक मां से बेहतर और कौन समझ सकता है.....बहुत सुंदर कविता...
जवाब देंहटाएंaaj murkh koun naheen hai kyonki prakriti kee saralta uske pass naheen hai . sunder kavita
जवाब देंहटाएंVery impressive creation !
जवाब देंहटाएंhmm!! kash ham bade na ho pate aur wahi bachpan rahta taaki murkh na to ban pate ya banane ki koshish karte..:)
जवाब देंहटाएंbahut hi accha likha hai sathak aur sahi .....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति....धन्यबाद....
जवाब देंहटाएंबेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
bahut hi shandar rachna
जवाब देंहटाएंjanmjaat naisargikta ko chhod kr mukhauta odh lena
जवाब देंहटाएंinsaan ki fitrat hai ya majboori?kavita goodh aur sochne ko majboor karne wali hai .
चलो इसी बहाने खुशी मिली कभी किसी जमाने में चाहे पालने में ही सही हम भी कभी मूर्ख नहीं रहे होंगे !:)
जवाब देंहटाएंबहुत गहन और सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएं