रविवार, 11 अप्रैल 2010
जिंदगी मुझसे यूँ मिली ......
जिंदगी बस उस दम ही लगी भली
जब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिली
पसरा रहा दरमियाँ खुला आसमां
संकरी लगने लगी रिश्तों की गली
जज्बातों ने ले ली फिर अंगड़ाई
अरमानों की खिलती रही कली
पलकों की सीप में अटके से मोती
राह आने की तकती रही उसकी गली
दामन खींचती हवा चुपके से पूछ रही
आज किसकी है कमी तुझको खली
जिन्दगी पहले तो नही थी इतनी हसीं
आती जाती रही लबों पर जो इतनी हँसी
तुझसे मिलकर ही जाना जिन्दगी
तू है वही जो ख्वाब बनकर आँखों में पली
जिंदगी पहले कभी ना लगी इतनी भली
जब तलक उससे मैं मैं बनकर ना मिली
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नया ब्लॉग और मैडेन गीत -सुभान अल्लाह -शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंजिंदगी बस उस दम ही लगी भली
जवाब देंहटाएंजब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिली....nice
जिंदगी पहले कभी ना लगी इतनी भली
जवाब देंहटाएंजब तलक उससे मैं मैं बनकर ना मिली
yahi to sach hai ... khoobsurat ehsaas
जिंदगी बस उस दम ही लगी भली
जवाब देंहटाएंजब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिली
बहुत खूब .....!!
सुन्दर गीत ! कभी मैंने ही लिखा था :
जवाब देंहटाएं'ज़िन्दगी !
जब भी मिला तुझसे
यकीन मुश्किल से हुआ
कि वो तू ही है
जिसने गिरफ्त में
ड़ाल रखा है मुझे !...'
यह बंद बहुत कुछ कहता लगा :
'पसरा रहा दरमियाँ खुला आसमां
संकरी लगने लगी रिश्तों की गली !'
साभिवादन --आ.
kya baat hai ji , zindagi ki khoobiyo ko darshaati hui rachna .. padhkar to mera aaj ka din ban sa gaya hai .. aapki lekhni ko salam ...
जवाब देंहटाएंaabhar aapka
vijay
pls read my new poem on my blog
www.poemsofvijay.blogspot.com
दामन खींचती हवा चुपके से पूछ रही
जवाब देंहटाएंआज किसकी है कमी तुझको खली
क्या बात कही है...बेहद ख़ूबसूरत...बड़ी प्यारी सी रचना है...
जिंदगी पहले कभी ना लगी इतनी भली
जब तलक उससे मैं मैं बनकर ना मिली
बहुत खूब ...
नए ब्लॉग की अनेकों शुभकामनाएं...यहाँ गीत ऐसे ही हँसते मुस्कुराते,गुनगुनाते रहें.
जवाब देंहटाएंजिंदगी बस उस दम ही लगी भली
जवाब देंहटाएंजब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिली
वाह वाह..!!
क्या बात है...
और क्या गीत है वाणी गीत के ..
कभी हमसे भी तो जरा मुस्कुरा कर मिलो
हम भी झूम लेंगे गुनगुना कर मिलो.....
जिंदगी बस उस दम ही लगी भली
जवाब देंहटाएंजब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिली
-बहुत सुन्दर भाव!! शानदार है जी.
बढ़िया है जी।
जवाब देंहटाएंart ke taur pe sahi hai ...craft pe thoda aur dhyaan dena hoga...aisa laga...shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजब जिंदगी से खुद की मुलाकात हो तो क्या बात है...बहुत खूबसूरत रचना....
जवाब देंहटाएंजिंदगी बस उस दम ही लगी भली
जवाब देंहटाएंजब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिली
जिंदगी पहले कभी ना लगी इतनी भली
जब तलक उससे मैं मैं बनकर ना मिली...
इतना ही कह दिया होता हम सभी वाह-वाह करते ना थकते... अब तो थकावट हावी हो रही है लिखने की सोचते-सोचते///
खुबसूरत पंक्तियाँ हैं ! ज़िन्दगी से खुद बनकर ही मिलना चाहिए । सबको धोखा दिया जा सकता है, खुदको कोई कैसे धोखा दे !
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDAR RACHNA
जवाब देंहटाएंSHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
’मैं’ अनोखी प्रतीति का संवाहक है ! कई बार विपरीततः आचरण करता !
जवाब देंहटाएं’मैं’ कई बार स्वतः की प्रतीति है, तो ठीक...पर कभी यह प्रतीति ’पर’ को विचलित करे, तो ठीक नहीं !
"पसरा रहा दरमियाँ खुला आसमाँ
संकरी लगने लगी रिश्तों की गली "
मुझे तो खूब भायी ये पंक्तियाँ !
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
जवाब देंहटाएंजिंदगी बस उस दम ही लगी भली
जवाब देंहटाएंजब मैं जिंदगी से मैं बन कर ही मिली
बहुत खूब .....!!
दामन खींचती हवा चुपके से पूछ रही
जवाब देंहटाएंआज किसकी है कमी तुझको खली
क्या बात कही है....;बेहद खूबसूरत।