जब अंतस्तल रोता है,
कैसे कुछ तुम्हें सुनाऊँ?
इन टूटे से तारों पर,
मैं कौन तराना गाऊँ??
सुन लो संगीत सलोने,
मेरे हिय की धड़कन में।
कितना मधु-मिश्रित रस है,
देखो मेरी तड़पन में॥
यदि एक बार सुन लोगे,
तुम मेरा करुण तराना।
हे रसिक! सुनोगे कैसे?
फिर और किसी का गाना॥
कितना उन्माद भरा है,
कितना सुख इस रोने में?
उनकी तस्वीर छिपी है,
अंतस्तल के कोने में॥
मैं आँसू की जयमाला,
प्रतिपल उनको पहनाती।
जपती हूँ नाम निरंतर,
रोती हूँ अथवा गाती॥
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धन्यवाद शुभद्रा कुमारी चौहान की यह रचना पढ़ने की... यदि संभव हो तो '...कदम्ब का पेड़ अगर मान होता यमुना तीरे...' कहीं मिले तो अवश्य पढ़ायें...
जवाब देंहटाएंhttp://kavita-knkayastha.blogspot.com/
आज शुरु किया है ब्लॉग पढ़ना ! आरंभ ही देखता हूँ...गीत मेरे !
जवाब देंहटाएंसोच रहा हूँ..केवल गीतों की प्रस्तुति होगी यहाँ !
कविता-गीत..गीत-सी कविताएं ! यही न !
यह गीत बहुत अच्छा लगा । साहित्यकारों की इस प्रकार रचनाएं इंटरनेट पर आना काफी सराहनीय है ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गीत का चयन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना है....
जवाब देंहटाएंसुभद्रा जी की सभी रचनाये बहुत ही बेहतरीन होती है.....